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मऊ ब्लॉक के 25 से ज़्यादा गांवों के किसान पानी की एक बूंद के लिए तरस रहे हैं। नहर की सफाई न होने से करीब 2,000 एकड़ फसल की बुवाई पर संकट।
रिपोर्ट – सुनीता देवी, लेखन – ललिता
जिला चित्रकूट, ब्लॉक मऊ के गांव करही, सुरौधा और झगरहट के किसान इन दिनों चिंता में हैं। खेत तैयार हैं, बुवाई का मौसम शुरू हो चुका है, लेकिन नहरों में अब तक पानी नहीं छोड़ा गया। नहर की सफाई भी नहीं हुई, जिससे खेतों तक पानी पहुंचना तो दूर, नहर में पानी दिखना भी मुश्किल हो गया है।
किसानों का कहना है कि जब तक नहरों की सफाई और मरम्मत नहीं होगी, तब तक पानी सही तरह से नहीं बहेगा। और जब पानी खेतों तक नहीं पहुंचेगा, तो खेती कैसे होगी?
पलेवा का समय निकल जाएगा, फिर क्या फायदा पानी छोड़ने का?
गांव करही के किसान रामसनेही कहते हैं_पिछले साल भी नहर की सफाई नहीं हुई थी। अब इस साल भी वही हाल है। जब तक सफाई नहीं होगी, पानी खेतों तक नहीं पहुंचेगा। इस समय पलेवा करने का सीजन है, लेकिन नहर में पानी नहीं छोड़ा गया। अगर देरी होगी, तो बोआई का समय निकल जाएगा।
वे बताते हैं कि बच्चों की पढ़ाई, घर के खर्च, शादी-ब्याह और दवाइयों तक का खर्च खेती पर ही निर्भर करता है। “खेती से ही घर चलता है। जब पानी ही नहीं मिलेगा तो हम खेती कैसे करें?”
ट्यूबवेल से खेतों की सिंचाई की, लेकिन कब तक?
सुरौधा गांव के किसान किशोर बताते हैं कि नहर तो है, लेकिन उससे कोई फायदा नहीं मिलता। कहीं पानी छोड़ा भी जाता है तो इतनी झाड़ियां और घास हैं कि पानी रुक जाता है। पिछले साल हमने ट्यूबवेल से सिंचाई की थी, ₹100 घंटे का किराया देकर। लेकिन हर किसान के पास ट्यूबवेल नहीं है। बिजली भी हर समय नहीं रहती।
किशोर बताते हैं कि अगर समय से पानी छोड़ा जाए तो गेहूं की फसल 10 से 12 कुंतल तक निकल जाती है, लेकिन देरी से बोआई करने पर पैदावार घटकर 6–7 कुंतल रह जाती है।
इतनी घास-झाड़ी है कि नहर दिखती ही नहीं
झगरहट गांव के रामबली नहर की हालत दिखाते हुए कहते हैं कि इतना घास-झाड़ी उग आया है कि पानी नहर में दिखेगा ही नहीं। रामा पुल के पास तो नहर टूटी हुई है। अगर पानी छोड़ा भी जाए तो सारा पानी खेतों तक पहुंचने से पहले ही बह जाता है।
वे बताते हैं कि यह नहर करीब 25 गांवों से जुड़ी है। “अगर सफाई और मरम्मत नहीं होगी तो पूरा इलाका पानी से वंचित रहेगा।”
नहर से जुड़े गांव: लगभग 25
प्रभावित किसान परिवार: करीब 1,200 से 1,500
प्रभावित खेती क्षेत्र: लगभग 2,000 एकड़
ट्यूबवेल सिंचाई लागत: ₹80–₹120 प्रति घंटा
रबी सीजन की प्रमुख फसलें: गेहूं, चना, सरसों, मसूर, मटर, जौ
कृषि पर निर्भरता: 85% ग्रामीण परिवार खेती पर निर्भर
किसान बताते हैं कि इन फसलों की बुवाई का समय अक्टूबर के आख़िर से नवंबर की शुरुआत तक होता है। अगर इस दौरान पलेवा (पहली सिंचाई) नहीं हुई तो बीज नहीं फूटता, और उपज पर सीधा असर पड़ता है।
अब तो बस उम्मीद है कि नवंबर तक पानी छोड़ दिया जाए
किसानों की मांग है कि 1 नवंबर तक नहरों में पानी छोड़ा जाए, ताकि खेतों में समय से पलेवा हो सके। वे कहते हैं कि नहर के किनारे और कहीं से सिंचाई का साधन नहीं है। बिजली की समस्या भी बनी रहती है। इसलिए नहर ही हमारी उम्मीद है। अगर सफाई हो जाए, मरम्मत हो जाए, तो सभी किसानों को पानी मिल जाएगा।
सिंचाई विभाग के सहायक अभियंता बसंत लाल का कहना है_ “हर साल बारिश खत्म होने के बाद नहर की सफाई का काम शुरू किया जाता है। इस साल भी सफाई का काम शुरू है। 20 नवंबर तक सफाई पूरी हो जाएगी और उसके बाद नहर में पानी छोड़ा जाएगा। जहां मरम्मत की ज़रूरत होगी, वहां काम कराया जाएगा। उन्होंने बताया कि सफाई और मरम्मत के लिए बजट अलग-अलग फंड से आता है, और काम किया जाता है।
किसानों की आवाज़ अभी भी इंतज़ार में
किसानों का कहना है कि यह काम हर साल देर से शुरू होता है और जब तक पानी छोड़ा जाता है, तब तक फसल बोने का सही समय निकल जाता है। अब सबकी निगाहें सिंचाई विभाग पर टिकी हैं — अगर इस बार समय पर नहर साफ होकर पानी छोड़ दिया गया, तो किसानों की मेहनत रंग लाएगी; वरना खेत फिर सूखे रह जाएंगे।
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