दीपक समय से परीक्षा केंद्र पहुंच पाए, इसके लिए उसके माता-पिता ने पैसे इकट्ठा करके लगभग 2,500 की लागत लगाकर गाड़ी बुक की थी। यह सोचकर की परीक्षा देने के बीच कोई बाधा न आये। वह अपनी बाधाओं को कम करने के लिए मेहनत कर रहे थे और महाकुंभ की वजह से लग रहे जाम ने पेपर ही रद्द करवा दिया।
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19 वर्षीय दीपक की तस्वीर जो 24 फरवरी को अपनी 10वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा देने वाले थे (फ़ोटो साभार – सुनीता/ खबर लहरिया)
रिपोर्ट – सुनीता, स्टोरी क्यूरेशन – संध्या
“रात-दिन पढ़ाई करते थे, बहुत ख़ुशी थी कि पेपर हो जाएगा। जब पेपर रद्द हो गया तो दिमाग में टेंशन हो गया कि अब क्या होगा। जो याद था, वह भी भूल जाएंगे या तो फिर से तैयारी करें?”
चित्रकूट जिले के मऊ ब्लॉक, बरगढ़ गांव में रहने वाले 19 वर्षीय दीपक सभी छात्रों की तरह 24 फरवरी को अपनी 10वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा देने वाले थे। लेकिन प्रयागराज में चल रहे ‘महाकुंभ’ और उससे होने वाले घंटों के जाम ने जिले में 24 फरवरी को हो रही 10वीं और 12वीं की यूपी बोर्ड परीक्षाओं को रद्द कर दिया। बता दें, 24 फरवरी से 12 मार्च 2025 तक पूरे यूपी में यूपी बोर्ड परीक्षा कराई जा रही है।
प्रयागराज जिले के विद्यायल निरीक्षक पी.एन सिंह ने खबर लहरिया को बताया कि स्थगित परीक्षा 9 मार्च को दोबारा से कराई जायेगी। तब तक महाकुंभ भी खत्म हो जाएगा, जाम नहीं लगेगा तो अध्यापक और बच्चे समय से पहुंच जाएंगे। बच्चों का भविष्य बर्बाद न हो इसलिए पेपर रद्द किया गया।
अधिकारियों ने अपनी तरफ़ से सब स्पष्ट कर दिया लेकिन ज़रूरी सवाल छात्र और उनके परिवार वाले पूछ रहे थे। उनका कहना था कि अगर यही करना था तो पहले क्यों नहीं बताया? पहले बताया होता तो वह परीक्षा सेंटर तक पहुंचने के लिए हज़ारों ख़र्च करके गाड़ी नहीं बुक करते, जो छात्रों के स्थायी स्कूलों से तक़रीबन 100 से 150 किलोमीटर की दूरी पर हैं।
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और ऐसा भी नहीं है कि महाकुंभ की वजह से घंटो का जाम लगना या यातायात बाधित होना, कोई नई बात है। जब से कुंभ से शुरू हुआ है, पूरे जिले में इसकी परेशानी देखी गई है। ऐसे में यूपी परीक्षा बोर्ड की तारीखों को तय करने वाले अधिकारियों पर भी सवाल है कि परीक्षा की तारीखों को तय करते समय, ख़ासतौर से प्रयागराज जिले के छात्रों के लिए विचार क्यों नहीं किया गया? तब यह क्यों नहीं सोचा गया कि जाम से क्या परेशानी हो सकती है?
दीपक ने हमें बताया कि साल 2023 में भी उन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा दी थी, जब वह 16 साल के थे। लेकिन उस समय वह परीक्षा में पास नहीं हो पाए। इसके बाद उन्होंने महाराष्ट्र जाकर मज़दूरी करने का सोचा और ठाना की उन पैसों से वह अपनी पढ़ाई प्राइवेट स्कूल से पूरी करेंगे। महाराष्ट्र में वह क्रेशर का काम करते थे। कुछ साल क्रेशर में गिट्टी-पत्थर का काम करने के बाद वह पिछले साल अपने गांव लौट आये, अपनी आमदनी से अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए।
उन्होंने बरगढ़ के अग्रवाल विद्यालय में दाखिला करवाया जो कि एक प्राइवेट स्कूल था।
दीपक का कहना था, “मन में आया कि कम से कम दस (दसवीं) पास हो जाए, अनपढ़ न रहे।”
परीक्षा के लिए दीपक का सेंटर प्रयागराज जिले के लालापुर (बारा तहसील) में आने वाले राजकीय इंटर कॉलेज में पड़ा था। बरगढ़ ब्लॉक से लालापुर की दूरी लगभग 150 किलोमीटर की है। परीक्षा के लिए उन्हें सुबह 8 बजे तक सेंटर पहुंचना ज़रूरी था।
यूपी बोर्ड की परीक्षा दो पालियों में सुबह 8:30 बजे और दोपहर 2:30 बजे से कराई जा रही हैं। परीक्षा में कुल 54,37,233 परीक्षार्थियों के शामिल होने की जानकारी है। बताया गया कि इस साल हाईस्कूल में 27,32,216 और इंटरमीडिएट की परीक्षा में 27,05,017 छात्र-छात्राएं शामिल होंगे।
दीपक समय से परीक्षा केंद्र पहुंच पाए, इसके लिए उसके माता-पिता ने पैसे इकट्ठा करके लगभग 2,500 की लागत लगाकर गाड़ी बुक की थी। यह सोचकर की परीक्षा देने के बीच कोई बाधा न आये। वह अपनी बाधाओं को कम करने के लिए मेहनत कर रहे थे और महाकुंभ की वजह से लग रहे जाम ने पेपर ही रद्द करवा दिया।
दीपक के माता-पिता मज़दूर हैं, मिस्त्री का काम करते हैं। उनके लिए ढाई हज़ार की लागत इकट्ठा करना आसान नहीं था। अगर परीक्षा हो जाती तो वह इन पैसों के बारे में नहीं सोचते क्योंकि यह पैसे उनके बच्चे के भविष्य के लिए थे। लेकिन यहां यह पैसे जो उन्होंने पाई-पाई करके इकट्ठा किये, यूंही बर्बाद हो गए।
क्यों दीपक जैसे कई परिवारों के बारे में न तो फ़ैसला लेते समय सोचा जाता है और न ही सुनाते समय?
यह संघर्ष सिर्फ़ दीपक का नहीं बल्कि यहां के कई छात्रों का है। दीपक के अनुसार, उसके यहां से लगभग 100 छात्रों का परीक्षा सेंटर प्रयागराज में पड़ा था। कई छात्र तो अलग से किराए का कमरा लेकर भी परीक्षा की तैयारी कर रहे थे।
दीपक के माता-पिता की तरह अन्य छात्रों के माता-पिता भी मज़दूर हैं जो ईंट-भट्ठा इत्यादि जगहों पर काम करते हैं। इसी काम से वे पैसे इकट्ठा करके अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए सहयोग करते हैं। अब इसमें चाहें किराए के कमरे के लिए पैसे जमा करना हो, स्कूल की फ़ीस हो या फिर परीक्षा केंद्र तक पहुंचने के लिए गाड़ी बुक करना।
परीक्षा रद्द होने के बाद सभी छात्रों और उनके माता-पिता के अंदर यही सवाल रहा कि फ़िर से किराए के लिए पैसे कहां से इकट्ठा किये जाएंगे?
ऐसे में परीक्षा बोर्ड में बैठे अधिकारियों को यह भी सोचने की ज़रूरत है कि जब वह परीक्षाओं के सेंटर निर्धारित करें तो वह सभी वर्गों,समुदाय,इलाकों के छात्रों के बारे में सोचे। यह गौर करें कि उनके लिए परीक्षा केंद्रों तक पहुंच पाना कितना आसान या चुनौतीूर्ण होगा।
और अगर परीक्षाएं यह कहकर रद्द की जा रही हैं कि छात्रों को परेशानी होगी तो यह मुश्किल उनके लिए बस एक और चुनौती है जो उनके संघर्ष में जुड़ जाती है। बिलकुल दीपक और उसके जैसे कई छात्रों की तरह, जो अपना भविष्य पढ़ाई के ज़रिये सुरक्षित तो करना चाहते हैं लेकिन उनके जीवन की परीक्षाएं उनके सामने नई-नई बाधा खड़ी करती रहती है। उनकी परीक्षा सिर्फ परीक्षा सेंटर के अंदर ही नहीं बाहर भी ज़ारी रहती है।
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