अयोध्या जिले के आर्य कन्या इंटर कॉलेज में लगभग 900 लड़कियां पढ़ाई कर रही हैं। इस विद्यालय में लड़कियों के स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखा जाता है। हर दिन एक घंटे का खेल कार्यक्रम होता है हालांकि यह खेल पहले भी होता था लेकिन कुछ समय से इन गतिविधियों में कमी आती जा रही है।
रिपोर्ट – संगीता, लेखन – कुमकुम
जैसे-जैसे लोग अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में भेजने लगे हैं वहाँ डिजिटल और मोबाइल गेमिंग ज़्यादा हो गया है लेकिन स्वास्थ्य पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता। धीरे-धीरे सभी लोग स्वास्थ्य के बारे में सोचना ही भूलते जा रहे हैं।
खो-खो, खेल के जरिए बढ़ रहा उत्साह और फिटनेस
आप नीचे दी गई तस्वीर के माध्यम से देख सकते हैं कि यहाँ स्कूल में छात्राओं के बीच खो-खो खेल खेला जा रहा है। एक टीम में 12 खिलाड़ी होते हैं। जो खिलाड़ी बैठकर खेलते हैं वे पहली टीम का हिस्सा होते हैं जबकि तीन खिलाड़ी देखरेख करते हैं और दूसरी टीम की के खेल पर नज़र रखते हैं।
दूसरी टीम का एक सदस्य पहली टीम के किसी खिलाड़ी को छूने की कोशिश करता है। इस प्रक्रिया का समय 7 मिनट रखा जाता है। अगर इस दौरान दूसरी टीम का सदस्य पहली टीम के किसी खिलाड़ी को नहीं छू पाता तो उसका समय समाप्त हो जाता है। फिर दूसरी टीम को मौका मिलता है और पहली टीम उसे छूने का प्रयास करती है।
खो-खो में टीमवर्क और तेज़ी से बढ़ता है बच्चों का उत्साह
जैसा कि आप देख रहे हैं पूरी लाइन में छात्राएँ बैठी हुई हैं और उसी टीम का एक सदस्य दौड़कर आता है। वह अपने ग्रुप की टीम को खो बोलकर संकेत देता है जिससे दूसरी टीम को छूने के लिए दौड़ना पड़ता है। अगर वह किसी खिलाड़ी को छू लेती है तो वह खिलाड़ी टीम से आउट हो जाता है।
इसी तरह धीरे-धीरे पूरी टीम को हटाया जाता है। उसके बाद दूसरी टीम की बारी आती है और वही प्रक्रिया फिर से दोहराई जाती है। यह खेल राउंड में दौड़ते हुए खेला जाता है और हंसी-खुशी के माहौल में खेल समाप्त हो जाता है।
पढ़ाई के साथ खेल ज़रूरी – सुप्रिया
सुप्रिया ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ती है। उनका कहना है कि जब पूरा दिन पढ़ाई करते-करते हम थक जाते हैं तो फिर पढ़ाई में मन नहीं लगता और बोरियत महसूस होने लगती है। ऐसे में जब हमारे टीचर हमें खेल खिलाते हैं तो शरीर में एक ताज़गी आ जाती है और पढ़ाई करना फिर से आसान हो जाता है।
वह कहती है कि पढ़ाई के साथ खेल भी ज़रूरी है। हमारे स्कूल में हर दिन आधे घंटे की खेल प्रतियोगिता होती है। इसमें खो-खो, कबड्डी और चिड़िया जैसे खेल खिलाए जाते हैं। इन खेलों में हमें बहुत मनोरंजन मिलता है क्योंकि वहाँ पर पूरे स्कूल की छात्राएँ इकट्ठा होती हैं। इससे पूरे दिन की थकान मिट जाती है।
जब हम खेलकर घर जाते हैं तो बहुत सुकून महसूस होता है क्योंकि लगातार पढ़ते-पढ़ते बोरियत हो जाती है और खेल मन को फिर से तरोताज़ा कर देता है।
खेलकूद मानसिक और शारीरिक विकास के लिए बेहद जरूरी
खेलकूद कराने वाली टीचर मधुबाला सिंह बताती हैं कि उनकी नियुक्ति यहाँ आर्य कन्या इंटर कॉलेज में एक साल पहले हुई है। तब से वे रोज़ाना लगभग 900 लड़कियां को अलग-अलग समय के अनुसार 40 मिनट का खेलकूद कराती हैं।
उन्होंने बताया कि इससे छात्राओं का मानसिक विकास तो होता ही है। साथ-साथ उनका स्वास्थ्य भी बेहतर रहता है। पूरे दिन की थकान खेलकूद से दूर हो जाती है और लड़किया खुद को तरोताज़ा महसूस करती हैं। खेलकूद का कार्यक्रम हर विद्यालय में होना चाहिए क्योंकि पढ़ाई के साथ-साथ स्वस्थ रहना भी उतना ही आवश्यक है।
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