यह फैसला पितृसत्तात्मक सोच को मजबूत करता है, जहां पत्नी की ‘ना’ का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता। महिलाओं के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। पहले भी वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की मांग उठती रही है, लेकिन सरकारें इस पर ठोस कदम उठाने से बचती रही हैं।
लेखन – सुचित्रा
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने एक आरोपी को दोष मुक्त कर दिया क्योंकि अदालत के अनुसार, पति द्वारा किया गया अप्राकृतिक यौन सम्बन्ध अपराध की श्रेणी से बाहर है। यह फैसला न्यायमूर्ति नरेंद्र कुमार व्यास द्वारा सोमवार 10 फरवरी 2025 को एक मामले की सुनवाई के दौरान लिया गया। हालाँकि यह मामला 2017 का बताया जा रहा है। इस मामले में निचली अदालत ने आरोपी को दोषी ठहराया था और गिरफ्तार किया था। आरोपी पर बलात्कार और अप्राकृतिक सेक्स करने का आरोप था जिसकी वजह से उसकी पत्नी की मौत हो गई थी।
भारत में शादी के बाद पति द्वारा जबरन यौन सम्बन्ध बनाना अपराध नहीं माना जाता। देश में इसके लिए किसी तरह का कानून या सजा नहीं है। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने इस बात को सबित कर दिया। छत्तीसगढ़, जगदलपुर के एक निवासी को बलात्कार और अन्य आरोपों में पहले से दोषी ठहराया था।
क्या था मामला?
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 11 दिसंबर 2017 की रात को एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी की सहमति के बिना ही अप्राकृतिक यौन संबंध बनाए। इसके बाद वह बीमार पड़ गई और महिला को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। महिला ने अपने पति के खिलाफ बयान दिया था जिसके बाद अस्पताल में ही उसकी मौत हो गई थी।
क्या शादी के बाद पत्नी की सहमति का कोई मतलब नहीं?
इस फैसले से यह संदेश जाता है कि विवाह के बाद पति को पत्नी पर पूरा अधिकार मिल जाता है और उसकी सहमति का कोई महत्व नहीं रहता। यह महिलाओं की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और शारीरिक आज़ादी पर गंभीर चोट करता है।
निचली अदालत ने आरोपी को सुनाई थी सजा
आईपीसी की धारा 377, 376 और 304 (गैर इरादतन हत्या) के तहत पति को दोषी ठहराया था। इस धारा के तहत आरोपी को 10 साल कैद की सजा सुनाई। इसके बाद उसने हाईकोर्ट में अपील की थी। भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 में शादी को अपवाद के रूप में रखा गया है, जिसके तहत पति द्वारा पत्नी के साथ जबरन यौन संबंध बनाना बलात्कार नहीं माना जाता।
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि यदि पत्नी की उम्र 15 साल से अधिक है, तो पति द्वारा किया गया किसी भी प्रकार का यौन संबंध बलात्कार नहीं कहा जा सकता। इसलिए आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 और 377 के तहत अपराध नहीं बनता।
धारा 377 अप्राकृतिक यौन संबंधों से जुड़ी है, लेकिन इसका वैवाहिक संबंधों पर क्या प्रभाव पड़ता है, यह कानूनी बहस का विषय बना हुआ है।
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय का यह फैसला कई अहम सवाल खड़े करता है, खासकर वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) और महिलाओं की आज़ादी को लेकर।
महिलाओं के अधिकारों पर असर
यह फैसला पितृसत्तात्मक सोच को मजबूत करता है, जहां पत्नी की ‘ना’ का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता। महिलाओं के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। पहले भी वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की मांग उठती रही है, लेकिन सरकारें इस पर ठोस कदम उठाने से बचती रही हैं।
भारत में कई देशों की तुलना में अब भी कानून पुराने दृष्टिकोण पर आधारित हैं। कई देशों में वैवाहिक बलात्कार अपराध है, लेकिन भारत में इसे लेकर अब भी कोई स्पष्टता नहीं है। इस फैसले ने फिर से यह बहस छेड़ दी है कि क्या अब समय आ गया है कि महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कानूनों में बदलाव किया जाए?
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