विश्व भर में फैली कोरोना महामारी ने लोगो को बेरोजगार और बेसहारा बना दिया है। जिससे लोग दाने दाने को मोहताज हो रहे हैं कुछ ऐसा ही हाल है मिट्टी के मूर्ति बनाने वाले कारीगरों का। जिला महोबा के कुलपहाड़ कस्बा के मोहल्ला गोविन्द नगर के मशहूर हेमचंद की मुर्तिया जो दूर दूर से ऑर्डर पर बनाई जाती थी लेकिन कोरोना से मुर्तियो के आर्डर में काफी गिरावट आई है हेमचंद ने मिट्टी के मूर्ति बनाकर रखे लेकिन बिक्री न होने की वजह से खाने के भी लाले पड़ गए हैं।
12 साल की उम्र से उन्होंने 2019 तक लगातार मिट्टी की मूर्ति बनाई है भला ही कभी कम कभी ज्यादा मूर्तियां बनी है जिससे की मूर्तियों से उनकी अच्छी कमाई भी होती थी और जैसे उनका परिवार का भरण पोषण होता था और उनका एक रोजगार भी था मिट्टी की मूर्ति बनाने वाला का कहना है |
पहले से ही हम लोगों के यहां आर्डर आते थे मूर्ति बनाने के लिए जिससे कि 4 से लेकर 10 फोटो तक लंबाई की मिट्टी की मूर्ति बनाकर तैयार किया है हर साल हम लगभग 50 और 60 मिट्टी की मूर्ति बना के तैयार कर लेते थे जिससे हम लोगों के अपना साल भरे का खर्च हो जाता था इस साल पहले से हम लोग बांस बल्ली और पैराशूट की लेकर रख लिया था |
जेवरात और कुछ सामान का भी जिससे लगभग ₹87000 सामान के लिए हम दे चुके थे की मौके पर हमें काम देगा मूर्ति बनाने के लिए जैसे पेंटिंग कुछ आगे से बाहर से मंगाना पड़ता है हमारी मूर्ति महोबा श्रीनगर चरखारी बेलाताल पनवाड़ी कुलपहाड़ नौगांव तक जाती थी। पहले से ऑर्डर भी आ जाते थे मूर्तियों के लिए भादो के महीना में तो मूर्ति बनवाने के लिए आर्डर देने के लिए घर पर लाइन लगी रहती थी जो इस साल नहीं है हमें भी बहुत उत्साह रहता था |
मूर्ति बनाने में रात और दिन बनाते थे चार पांच लोग इससे इस साल हम लोगों के चेहरे में उदासी छाई हुई है आषाढ़ के महीने से हम मूर्ति बनाना स्टार्ट कर देते थे चार पांच महीना मूर्ति बनाते थे क्योंकि मूर्ति बनाने में भी टाइम लगता हैविश्व भर में फैली कोरोना महामारी ने लोगो को बेरोजगार और बेसहारा बना दिया है। जिससे लोग दाने दाने को मोहताज हो रहे हैं कुछ ऐसा ही हाल है मिट्टी के मूर्ति बनाने वाले कारीगरों का। जिला महोबा के कुलपहाड़ कस्बा के मोहल्ला गोविन्द नगर के मशहूर हेमचंद की मुर्तिया जो दूर दूर से ऑर्डर पर बनाई जाती थी लेकिन कोरोना से मुर्तियो के आर्डर में काफी गिरावट आई है हेमचंद ने मिट्टी के मूर्ति बनाकर रखे लेकिन बिक्री न होने की वजह से खाने के भी लाले पड़ गए हैं। |
12 साल की उम्र से उन्होंने 2019 तक लगातार मिट्टी की मूर्ति बनाई है भला ही कभी कम कभी ज्यादा मूर्तियां बनी है जिससे की मूर्तियों से उनकी अच्छी कमाई भी होती थी और जैसे उनका परिवार का भरण पोषण होता था और उनका एक रोजगार भी था मिट्टी की मूर्ति बनाने वाला का कहना है पहले से ही हम लोगों के यहां आर्डर आते थे मूर्ति बनाने के लिए जिससे कि 4 से लेकर 10 फोटो तक लंबाई की मिट्टी की मूर्ति बनाकर तैयार किया है हर साल हम लगभग 50 और 60 मिट्टी की मूर्ति बना के तैयार कर लेते थे |
जिससे हम लोगों के अपना साल भरे का खर्च हो जाता था इस साल पहले से हम लोग बांस बल्ली और पैराशूट की लेकर रख लिया था जेवरात और कुछ सामान का भी जिससे लगभग ₹87000 सामान के लिए हम दे चुके थे की मौके पर हमें काम देगा मूर्ति बनाने के लिए जैसे पेंटिंग कुछ आगे से बाहर से मंगाना पड़ता है हमारी मूर्ति महोबा श्रीनगर चरखारी बेलाताल पनवाड़ी कुलपहाड़ नौगांव तक जाती थी। पहले से ऑर्डर भी आ जाते थे |
मूर्तियों के लिए भादो के महीना में तो मूर्ति बनवाने के लिए आर्डर देने के लिए घर पर लाइन लगी रहती थी जो इस साल नहीं है हमें भी बहुत उत्साह रहता था मूर्ति बनाने में रात और दिन बनाते थे चार पांच लोग इससे इस साल हम लोगों के चेहरे में उदासी छाई हुई है आषाढ़ के महीने से हम मूर्ति बनाना स्टार्ट कर देते थे चार पांच महीना मूर्ति बनाते थे क्योंकि मूर्ति बनाने में भी टाइम लगता है