बुंदेलखंड में 14 जिले आते हैं जो उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच फैले हुए हैं| इन इलाकों से गरीबी और बेरोजगारी के कारण भारी मात्रा में पलायन होता है| लेकिन जब कोरोना वायरस जैसी महामारी बीमारी आई और पलायन कर के गए हुए मजदूर घर वापस आए तो अनुमान लगाया जा सका कि बुंदेलखंड में लगभग 600000 मजदूर वापस आए हैं, जो पलायन करते थे, लेकिन वह मजदूर जिस तरह की मुसीबत काट कर हजार-हजार दो-दो हजार किलोमीटर पैदल चलकर साइकिल से मोटरसाइकिल से और ट्रकों में कटहल जैसे लद कर भूख और प्यास से तडपते हुए अपने घरों को आए थे और भूखे प्यासे क्वॉरेंटाइन में रहे थे वह अब बुन्देरखण्ड की बेरोजगारी के चलते सारा दुख और मुसीबत भुलाकर पेट के लिए फिर से वापस उसी तरह महानगरो के लिए पलायन करने लगे हैं|
हर रोज हजारों मजदूर महानगरो के लिए कर रहे पलायन
जिला बांदा| लॉकडाउन में घरों को वापस आए प्रवासी मजदूरों की स्थिति काम न मिलने से बहुत ही दैनिये हो गई है और अब वह भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं| साथ ही काम ना मिलने से साहूकारों से लिए कर्ज की चिंता भी अब उनको सताने लगी है और वह फिर उस बढ़ते साहूकारों के कर्ज को अदा करने के लिए उन्हीं शहरों की ओर जाने को मजबूर हो रहे हैं| दिल्ली,जयपुर और सूरत सहित कई महानगरों के लिए पूंजीपतियों द्वारा लगभग 50 प्राइवेट बसें भी जोरों पर शुरू कर दी गई है, तो जो मजदूर ट्रेनों में 200-500 में यात्रा करके
पहुंच जाता था वह अब भारी-भरकम रकम में टिकट बुक करवा कर महानगरों के लिए बड़ी संख्या में जा रहा है|
मजदूरों को पलायन से रोक ना पाई सरकारी योजनाएं
गैर राज्यों से लौटकर आये प्रवासी मजदूरों के लिए सरकार की तरफ से कई तरह की योजनाएं चलाई गई,जिससे प्रवासी मजदूरों को किसी प्रकार की दिक्कत ना हो,जैसे मनरेगा के तहत काफी मात्रा में काम शुरु किया गया,मुफ्त राशन और साथ ही भत्ते की व्यवस्था की गई,लेकिन सरकार की ये व्यवस्था भी किसी के काम ना आ सकी| क्योंकि सरकार की ओर से चलाई गई योजनाओं का लाभ भी मजदूरों को बहुत ही कम मात्रा में मिल पाया और बहुत से मजदूर लाभ पाने के लिए आज भी भटक रहे हैं|
बिना रोजगार कैसे चलेगें घर
प्रेम लाल सकरिहा बताते हैं कि वह मुंबई में रहते थे और पेंटिंग का काम करते थे जिससे उनके परिवार का खर्च चलता था क्योंकि वह एक मजदूरी करने वाले व्यक्ति हैं उनके कोई जमीन जायदाद तो है नहीं कि वह गांव में ही रह कर अपना परिवार चला सके लॉकडाउन के चलते कड़ी मशक्कत के साथ वह मई में अपने घर आ गए थे| अब 3 महीने बीत गए गांव में बेरोजगार बैठे कुछ दिन मनरेगा का काम चला तो किया इसके बाद बरसात आ गई तो वह काम भी बंद हो अब उनके पास खाने के लाले पड़े हैं और इधर-उधर से कुछ कर्ज भी कर लिया है क्योंकि पेट तो मानता नहीं है| इसलिए अब वह दोबारा जाने की तैयारी में है|
बीमारी खत्म नहीं हुई पलायन शुरु हो गया आइए जानते है इस पर मजदूर नेता के विचार
मजदुर नेता राम प्रवेश यादव बताते हैं की बाहर बड़ी बड़ी कम्पनियाँ भले ही नहीं खुली पर बुन्देलखण्ड में खासकर बांदा जिले की बेरोजगारी ने मजदूरों को पेट पालने के लिए फिर से पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया है, हर रोज हजारों की संख्या में मजदूर प्राइवेट बसों में भर कर महानगरो के लिए जा रहा है और दुगना तिगना किराया दे रहा है,क्योंकि उनके पास दूसरा कोई रास्ता नहीं है |
वहां भी जो छोटी मोटी कंपनियां खुली है वो इस सर्त पर मजदूरों को बुला रही हैं की वह महीने दो महीने काम करवा कर देखेंगी अगर उनका माल सही ढग से बाजार में सप्लाई हुआ तो ठीक है और अगर नहीं हुआ तो वापस जाना पडेगा क्योंकि कंपनी वाले भी अपनी रकम फंसा कर नहीं रख सकते, लेकिन सरकार यहाँ की बेरोजगारी पर कोई ध्यान नहीं दे रही सिर्फ घोषणाए कर रही है और मजदूर पेट की आघ मर रहा है| अगर देखा जाये तो बांदा से दिल्ली करीब 1200 किलो मीटर है और यहाँ का किराया भी 1200 रुपये प्रति यात्री निर्धारित है,लेकिन इस समय उन मजदूरों से 1500 रुपये लिये जा रहे हैं|
क्या सरकार के दावे ऐसे में होगें पुरे
सवाल ये उठता कि इस महामारी के चलते वापस आए प्रवासी मजदूरों के लिए सरकार ने कई तरह के रोजगार और योजनाओं की घोषणा की, लेकिन इसका असर धरातल में नहीं दिख रहा है और लोग वापस पलायन कर रहे हैं ऐसे में सरकार के वादे और घोषणाए क्या झुठे सावित होते नजर आ रहे| या फिर सरकार कोई और भी नया कदम उठाएगी और पलायन को रोक पाएगी