चित्रकूट जिले मे अक्सर नवजात शिशू कही कुडे ढेर मे कही जंगल मे पडे मिलते हैं बच्चे जब मिलते हैं लोग इकट्ठा होते हैं पूलिस को फोन करते हैं चाइल्ड लाइन कार्यकर्ता आते है और जब लोगो की बातें शूरू होती हैं उन सब बातो मे सिर्फ महिला को दोषी ठहराते हैं कलंनी मा हमार करते शर्म.नहीं आई पैदाकर के फेक दिया बाल संरक्षण अधिकारी सौरभ सिह ने बताया तीन साल मे 14 नवजात शिशू मिले जिसमे एक लडका.13 लडकी मिली सौरभ सिंह ने भी ये बात स्वीकार करी की लडकियां कोई रखना नहीं चाहता लोग लडकी बोझ समझ कर भेक देते हैं |
चाहे वो अनचाहा गर्भ हो या किसी महिला को बार बार लडकियां होती हैं वो हो लेकिन लडकियां ही ज्यादातर भेकी जाती हैं लडके अगर इस तरह मिले भी तो उनके वारिस सामने आ जाते हैं अपना लेते हैं लडकियों को कोई नहीं आकर कहता की मेरी बेटी है हम दो महिने बाल कल्याण समीति द्वारा जांच कराते रहते हैं शायद असली मां बाप सामने आ जाए लेकिन कुछ पता नही चलता फिर हमे पूरी तरह इलाहाबाद शिशुगृह मे सौपना पडता है यहां कोई व्वास्था नहीं है शिशूग्रह नहीं है इसलिए हमे इलाहाबाद भेजना पडता है जब बच्चा मिलता है हम सबसे पहले अस्पताल लेकर जाते हैं |
टीटमेंट कराते हैं जैसे ही बच्चा स्वास्थ्य होता है इलाहाबाद भेज देते हैं और दो महिने वो बालकल्याण समिति का होता है उसके बाद हम पूरी तरह शिशूग्रह को सौप देते हैं फिर वही से गोद लेने की प्रक्रिया होती है पहले गोद उन परिवार को दे दिया जाता था जिले स्तर से अब बहुत मुश्किल हो गया गोद लेना और गोद देना बहुत लंबी प्रक्रिया होती है अब बात है |
समाज और परिवार की जब भी कोई लावारिस बच्चा मिलता है लोग हमेशा महिला को दोषी ठहराता है उसमे पूरुष दोषी नहीं होता क्या क्या बिना बाप के बच्चा पैदाकर के महिला मां बन जाती है और अगर बच्चा समाजिक तौर से जायज है तो बडी शान से बाप की मोहर लगाई जाती है |
तब पूरूष समाज मां का तो नाम ही नहीं लेते की वो उस महिला का बच्चा है तब तो सिर्फ़ बच्चा बाप के नाम से जाना जाता है लावारिस बच्चा हो कैसे जाता है चाहे वो अनचाहा गर्भ हो या लडके की आस मे लडकियां होती हैं फिर उसे भेक दिया जाता है तो क्या इन सबमे परिवार समाज शामिल नहीं क्यो हर कोई मां को दोष देता है