शोसल मीडिया के प्लेटफार्म फेसबुक और वॉट्सएप्प में लगभग डेढ महीने पहले ऐक विडियो वायरल हुआ जिसमें यह कहा गया कि एक गिरोह है जो बच्चों को पकड ले जा रहे हैं और उनको काटते हुए दिखाया जा रहा वीडियो में दिल, गुर्दे और आंखे निकाल रहे हैं। ऐक दो दिन बाद यह भी आया कि महिलाए और पुरुष बच्चा चोर हैं जो बच्चे पकड़ रहे हैं। गुस्साई भीड़ उनको पीट रही है और पुलिस के हवाले कर दिया। पुलिस इनके ऊपर कार्यवाही कर रही थी। कुछ दिन में ये खबरें बहुत तेजी से वायरल होने लगे।
यह कहानी निर्दोष व्यक्तियों की क्रूर हत्या के साथ समाप्त नहीं होती है। यह आगे चलकर सांप्रदायिक तनाव पैदा कर सकता है, सोशल मीडिया पर युद्ध I करबियों के लिए गुस्सा जंगल की आग की तरह फैल गई। जल्द ही, प्रतिशोध लेने वाले स्थानीय लोगों ने शहर में रहने वाले छात्रों को परेशान करना शुरू कर दिया। इन घटनाओं के मुख्य शिकार मजदूर, बाहरी लोग और मानसिक रूप से विकलांग हैं, अधिकांश हमले आंतरिक क्षेत्रों के भीतर के गांवों में हुए हैं। लिंच मॉब्स की रचना में पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को शामिल किया गया है, लेकिन उनमें से एक बड़ी संख्या में अनपढ़ पुरुष या तो बेरोजगार हैं या दैनिक मजदूरी के रूप में काम कर रहे हैं
15 अगस्त को बांदा शहर में एक विक्षिप्त व्यक्ति को बच्चा चोर के शक में भीड ने पकड़ कर भीड़ ने पीटा। इसीतरह चित्रकूट जिले में भी भीड़ ने एक महिला को 21 अगस्त को पकड़ कर जेल में डाल दिया गया। पुलिस बता रही थी उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी। लेकिन उससे सवाल पूंछने वाली मीडिया को सुनकर एसा लग रहा था मानो उसका गुनाह साबित हो चुका हो। छतरपुर में भी हमारी टीम ने एक केस कवर किया उसको भी विक्षिप्त बताया जा रहा था।
पुलिस इन मामलों को एक्सन मे ली रही है और भीड़ से मारपीट के बाद आरोपित व्यक्ति को पुलिस जेल में डाल दे रही है। पर उस भीड़ को नहीं रोक पा रही जो बेकसूर लोगों को बच्चा चोर के शक में मार डालने का प्रयाश कर रही है। मैं जब इस मामले पर पुलिस से पून्छ्ना चाह रही थी कि आखिर मामला क्यों बढ़ता जा रहा है और पुलिस चुप क्यों है तो लगभग एक हफ्ते पुलिस अधिकारी ये कहते रहे कि ये अफवाह है। ठीक है बच्चा चोर अपवाह है तो मारपीट की घटनाएं क्यों हो रही हैं? क्यों भीड़ इतनी बेकाबू है। और जो शोसल मीडिया में रोज खबरे आ रही हैं उससे तो इन मामलो को और बढावा मिल रहा है। ये तो एक तरह से साइबर क्राइम है तो इसमें क्यों नहीं रोक लगा पा रही पुलिस? खैर पुलिस के पास अपनी सफाई देने के अलावा या ये खबरे अफवाह हैं कहने के अलावा कोई ठोस बात नहीं की।
कई राजनीतिक लोगों का कहना है कि 2014 में भाजपा सरकार बनाने के बाद से फेक्न्यूज और फेक्नूज से होने वाली घटनाए ज्यादा ही बढ़ गईं हैं ये घटनाए इस सरकार के इर्द गिर्द काम करने वाले छोटे बड़े संगठनों के वॉट्सएप्प और फेसबुक ग्रुपों से फैलाने का काम जारी हुआ है। 2018 में राजस्थान के कोटा में पार्टी के सोशल मीडिया स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए, भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि समूह में किसी भी संदेश को वायरल करने की शक्ति है चाहे वह वास्तविक हो या नकली।
इसी तरह मेरे आस पास के लोग, आते जाते, बसों, साधनों में, सिर्फ बच्चा चोर की बात करते हैं। मैं खुद फील्ड गई गिरवां गांव। बस्ती में सब हमें देखकर लोग बच्चा चोर का शक करने लगे। हमने बहूत डीलिंग की तब जाकर उन्हें भरोसा हुआ। लोगों ने बताया यहां इस तरह का दहशत हा कि वह अपने बच्चे स्कूल नहीं भेज पा रहे हैं। जब मैने उनसे पूँछा कि कोई घटना आपके पास घटित हुई तो कई उदाहरण दिए। जब मैने कहा कि आपने देखा है क्या। उन्होने उस विडियो का हवाला देकर कहा जिसमें काट कर अंग निकाले जा रहे हैं। इससे बहुत डर फैला है।
शासन प्रशासन से ये उम्मीद की जाती है कि ऐसे मामलो में रोक लगाने के लिए ठोस रणनीति बनाए और कार्यवाही करे ताकि बेकसूर लोग न पकडे जाए, भीड़ कानून हाथ में न ले सके। हालांकि 29 अगस्त को क्विंट में छपि खबर के हिसाब से उत्तर प्रदेश के डीजीपी ओपी सिंह ने बताया कि एसी अफवाह फैलाने वाले के खिलाफ रासुका की धारा लगाते हुए अब तक में 82 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है।ये था आज के शो की चर्चा। फिर आऊंगी एक नए मुद्दे के साथ तब तक के लिए नमस्कार