झारखंड के गोड्डा जिले के 16 गांवों के लोगों ने 4 फरवरी को राज्य के उच्च न्यायालय में याचिका दी। लोगों के अनुसार अडानी समूह 1032 फूटबॉल के मैदानों के अकार की उपजाउ भूमि का अधिग्रहण कर रहा है, जिसका वे विरोध कर रहे हैं।
लोगों की याचिका में आरोप लगाया गया है कि पूरी भूमि अधिग्रहण अवैध और अनियमितताओं वाला है। जब राज्य सरकार ने निजी उद्योग के लिए 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून को लागू किया है। दिल्ली स्थित गैर-लाभकारी संस्था एनवायरनिक्स ट्रस्ट के एक वैज्ञानिक राममूर्ति श्रीधर ने इस भूमि पर आने वाले अडानी समूह की थर्मल पावर परियोजना के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति को चुनौती देते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) का रुख किया है।
मई 2016 में भारत के सबसे अमीर गौतम अडानी के नेतृत्व में अडानी समूह ने झारखंड सरकार से गोड्डा के 10 गांवों से 2,000 एकड़ के करीब जमीन का अधिग्रहण करने के लिए कहा, जिससे आयातित कोयले से 1,600 मेगावाट बिजली प्लांट का निर्माण किया जा सके। अडानी समूह गोड्डा में उत्पादित बिजली बांग्लादेश को बेचेगा। मार्च 2017 में, सरकार ने कहा कि वह छह गांवों: माली, मोतिया, गंगा, पटवा, सोंडीहा और गायघाट में 917 एकड़ जमीन का अधिग्रहण करेगी। अब तक, सरकार ने 16 याचिकाकर्ताओं में से चार के गांवों माली, मोतिया, गंगटा और पटवा में 500 एकड़ निजी भूमि का अधिग्रहण किया है।
अडानी समूह को जमीन देने के अनिच्छुक ग्रामीणों से जमीन के अधिग्रहण के लिए झारखंड सरकार ने एक ऐतिहासिक नए कानून, भूमि अधिग्रहण में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम 2013 में कई सुरक्षा उपायों को काट कर निकाला है। कानूनी सुरक्षा उपायों का संबंध सार्वजनिक उद्देश्य के तर्क, सामाजिक प्रभाव आकलन, सहमति और मुआवजे से हैं।
कई ग्रामीणों के भूमि अधिग्रहण के खिलाफ पारित ग्राम सभा प्रस्तावों को 2016 के बाद से अधिकारियों द्वारा नजरअंदाज कर दिया गया है। 31 अगस्त, 2018 को संथाल जनजाति की महिला किसान अडानी कर्मियों के चरणों में गिर गईं, उनसे अपनी जमीन को जब्त नहीं करने की भीख मांगती रही और स्थानीय पुलिस देखती रही। कुछ आदिवासी और दलित किसानों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए गए थे, जिन्होंने अपने पुश्तैनी खेतों के अधिग्रहण का विरोध किया था।
16 ग्रामीण जिन्होंने हाई कोर्ट का रुख किया है, वे संथाल आदिवासी, दलित और अन्य पिछड़ी जाति के समुदायों से हैं और इनमें किसान, बटाईदार और कृषि कर्मचारी शामिल हैं। उन्होंने और अन्य प्रभावित ग्रामीणों ने ‘भूमि अधिग्रहण में अवैधता को उजागर करते हुए अलग-अलग अधिकारियों को कई पत्र लिखे थे और भूमि के अधिग्रहण का विरोध किया था, लेकिन एक भी प्रतिक्रिया जवाब नहीं मिला था।” दुखी होकर अब वे अदालत का दरवाजा खटखटा रहे हैं।