खबर लहरिया Blog ट्रैफिक जैम और गाड़ियां हैं सबसे ज़्यादा प्रदूषण की वजह, सर्दियों में और बढ़ सकता है प्रदूषण, जानें वजह व स्त्रोत

ट्रैफिक जैम और गाड़ियां हैं सबसे ज़्यादा प्रदूषण की वजह, सर्दियों में और बढ़ सकता है प्रदूषण, जानें वजह व स्त्रोत

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में स्थानीय स्रोतों से निकलने वाले प्रदूषण में सबसे बड़ा योगदान वाहनों से निकलने वाले धुओं का है, जो कुल प्रदूषण का आधे से ज्यादा है। इसके बाद आवासीय जलन से 13 प्रतिशत, उद्योग से 11 प्रतिशत, निर्माण से 7 प्रतिशत, ऊर्जा से 6 प्रतिशत, कचरा जलाने से 5 प्रतिशत, और सड़क की धूल और अन्य स्रोतों से 4 प्रतिशत योगदान है।

Traffic and Vehicle emissions major pollution contributors; Experts warn of rising winter smog

                                                             दो महिलाओं की तस्वीर जिन्होंने बढ़े हुए वायु प्रदूषण की वजह से अपने मुंह को शॉल से ढका हुआ है (फोटो साभार – सोशल मीडिया)

दीपावली के एक दिन बाद दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण का स्तर ‘बहुत खराब श्रेणी’ में पहुंच गया है। इससे पूरे क्षेत्र में जान को खतरे में डालने वाली धुंध की परत बिछ गई है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, सुबह 7:30 बजे तक राजधानी दिल्ली में औसत एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 361 पर रहा। राष्ट्रीय राजधानी के अधिकांश क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता स्तर 300 से 400 के बीच बना रहा।

वायु गुणवत्ता सूचकांक के अनुसार, पीएम को अलग-अलग स्तर पर अच्छा और खराब बताया गया है जोकि इस तरह से है-0 से 50 – अच्छा,51 से 100 – संतोषजनक,101 से 200 – मध्यम,201 से 300 – खराब,301 से 400 – बहुत खराब,401 से 450 – गंभीर,450 से ऊपर – गंभीर से अत्यधिक।

लेकिन बढ़े प्रदूषण के लिए सिर्फ पटाखें ही ज़िम्मेदार नहीं है बल्कि इसके आलावा कई अन्य चीज़ें भी हैं जिसका इस्तेमाल हम में से कई लोग रोज़ाना करते है, ये समझे बिना की उनका बिना किसी रोकथाम के इस्तेमाल प्रदूषण को बढ़ाने में कितना ज़्यादा होता है।

कई रिपोर्ट्स में यह सामने आया है और लोगों ने दावा भी किया कि राजधानी में बढ़े हुए प्रदूषण की वजह पड़ोसी राज्यों द्वारा जलाई जाने वाली पराली है। वहीं गैर-लाभकारी संगठन सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, पड़ोसी राज्यों पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने का राजधानी में प्रदूषण को बढ़ाने में केवल 4.4 प्रतिशत का योगदान था।

फिर प्रदूषण को बढ़ाने वाले कारक क्या हैं? जानते हैं आगे इस आर्टिकल में…..

ये भी पढ़ें – दिल्ली में आने वाले दिनों में वायु की गुणवत्ता रहेगी ‘बहुत खराब’, प्रदूषण की रोकथाम के लिए GRAP स्टेज-2 लागू | Delhi Pollution

प्रदूषण फैलने के कारण

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट ने 15 सितंबर से 28 अक्टूबर तक पीएम 2.5 के स्तर का विश्लेषण किया और पिछले सालों के आंकड़ों से इसकी तुलना की।

पीएम 2.5, हवा में मौजूद उन छोटे कणों या बूंदों को कहा जाता है जिनका व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम होता है। इन्हें मानव जीवन के लिए खतरनाक माना जाता है।

संगठन ने पाया कि दिल्ली में स्थानीय स्रोतों से निकलने वाले प्रदूषण में सबसे बड़ा योगदान वाहनों से निकलने वाले धुओं का है, जो कुल प्रदूषण का आधे से ज्यादा है। इसके बाद आवासीय जलन से 13 प्रतिशत, उद्योग से 11 प्रतिशत, निर्माण से 7 प्रतिशत, ऊर्जा से 6 प्रतिशत, कचरा जलाने से 5 प्रतिशत, और सड़क की धूल और अन्य स्रोतों से 4 प्रतिशत योगदान है।

बता दें, आवासीय जलन” का मतलब है घरों में ईंधन, जैसे लकड़ी, कोयला, कचरा, या अन्य पदार्थों को जलाना, जिससे धुआं और प्रदूषण पैदा होता है। यह खासकर ठंड के मौसम में या खाना पकाने के लिए किया जाता है और इससे वायु प्रदूषण में वृद्धि होती है।

‘अच्छी’ व ‘बहुत खराब’ वायु गुणवत्ता वाले दिन

रिपोर्ट बताती है कि 15 सितंबर से 28 अक्टूबर के बीच, दिल्ली में 16 दिन ऐसे थे जब वायु गुणवत्ता “खराब” या “बहुत खराब” श्रेणी में थी, जबकि पिछले दो सालों में यह संख्या 13 दिन थी।

वहीं अगर “अच्छी” वायु गुणवत्ता वाले दिनों की संख्या के बारे में बात की जाए तो वह साल 2022 में सिर्फ 11 दिन थी जो इस साल घटकर सिर्फ दो दिन रह गई है।

ट्रैफिक जैम-रुकी गाड़ियों से फैलता प्रदूषण

संगठन द्वारा किये गए विश्लेषण से यह भी पता चला कि दिवाली से पहले के सप्ताह के अंत वाले दिन, 26 और 27 अक्टूबर को, ट्रैफिक जाम सबसे ज्यादा था। इसी दौरान, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़कर 75 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पर पहुंच गया, खासकर 27 अक्टूबर की शाम को।

अध्ययन में बताया गया कि ट्रैफिक में फंसे या रुके हुए वाहनों से निकलने वाला धुआं सामान्य चलती गाड़ियों से निकलने वाले धुएं से कई गुना ज्यादा होता है।

बता दें, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂) एक हानिकारक गैस होती है जो वाहनों, कारखानों, बिजली संयंत्रों और ईंधन जलाने वाले अन्य स्रोतों से निकलती है। इसे वायु प्रदूषण का मुख्य कारण बताया गया है। इससे स्वास्थ्य और पर्यावरण पर कई तरह से प्रभाव पड़ता है :

1. स्वास्थ्य पर प्रभाव

– नाइट्रोजन डाइऑक्साइड सांस लेने में तकलीफ, खांसी, और फेफड़ों में जलन पैदा कर सकती है।
– अस्थमा और अन्य सांस की बीमारियों के रोगियों के लिए यह गैस खतरनाक होती है।
– बच्चों, बुजुर्गों, और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों पर इसका ज़्यादा असर होता है।

2. प्रदूषण और वातावरण पर प्रभाव

– नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂) से ओजोन (ओज़ोन) और पार्टिकुलेट मैटर (PM) जैसे अन्य हानिकारक प्रदूषक बन सकते हैं।
– यह अम्लीय वर्षा यानी एसिड रेन का कारण बनती है, जिससे पानी और मिट्टी की गुणवत्ता प्रभावित होती है और पेड़-पौधों को नुकसान पहुंचता है।

3. स्मॉग/धुएं में योगदान

– नाइट्रोजन डाइऑक्साइड धुंध और स्मॉग के निर्माण में भी योगदान देती है, जिससे दृश्यता कम हो जाती है और सांस लेने में दिक्कत होती है। इसलिए, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का बढ़ना या उच्च स्तर लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए हानिकारक होता है।

पराली और सर्दियों में बढ़ने वाला प्रदूषण

स्क्रॉल.इन की प्रकाशित रिपोर्ट में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की रिसर्च और एडवोकेसी की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी ने बताया कि अध्ययन के दौरान ज़्यादातर समय पराली जलाने का प्रदूषण में योगदान सिर्फ 1 प्रतिशत से 3 प्रतिशत तक ही रहा। सिर्फ दो दिनों में यह बढ़कर 8 प्रतिशत से 16 प्रतिशत तक पहुँचा।

रॉयचौधरी ने कहा, “अब जब खेतों में आग लगाने की घटनाएं कम हो रही हैं, तो दिल्ली इस धुएं के पर्दे के पीछे नहीं छिप सकती। अब ज़रूरत है कि बड़े पैमाने पर, जल्दी और सख्त कदम उठाए जाएं ताकि दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में स्थानीय प्रदूषण को कम किया जा सके।”

यह रिपोर्ट उस समय प्रकाशित की गई जब गुरुवार को दिवाली की शाम को  दिल्ली के कई हिस्से धुंध से ढके हुए थे।

रिपोर्ट का कहना है कि सर्दियों के महीनों में दिल्ली में वायु गुणवत्ता तेजी से खराब हो जाती है, और इसे अक्सर दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी भी माना जाता है। ट्रैफिक के अलावा, गिरता तापमान, धीमी हवाएं,उद्योगों और कोयला आधारित संयंत्रों से निकलने वाला धुआं भी प्रदूषण बढ़ाने में योगदान देता है।

सर्दियों के दौरान पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने से कुछ दिनों में प्रदूषण की समस्या और भी बढ़ जाती है।

गिरते तापमान से कैसे बढ़ता है प्रदूषण?

गिरता तापमान प्रदूषण बढ़ाने में इसलिए योगदान देता है क्योंकि ठंड के मौसम में वायुमंडल में कई तरह के बदलाव होते हैं:

1. वायु का ठहराव (Inversion Effect)

सर्दियों में ठंडी हवा सतह के पास बनी रहती है, जबकि गर्म हवा उसके ऊपर होती है। इसे “इन्वर्शन” कहा जाता है। इस स्थिति में प्रदूषक (प्रदूषक वे हानिकारक पदार्थ या कण होते हैं जो हवा, पानी, मिट्टी, या वातावरण में मिलकर उसे प्रदूषित करते हैं) जैसे धूल, धुआं और हानिकारक गैसें निचली परत में फंसी रह जाती हैं और ऊपर नहीं जा पातीं। इससे वायु प्रदूषण बढ़ता है।

2. हवा की गति का कम होना

सर्दियों में हवा की गति धीमी हो जाती है, जिससे प्रदूषण के कण लंबे समय तक एक ही जगह पर बने रहते हैं। इससे हवा साफ नहीं हो पाती और प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है।

3. कोहरे और धुंध का निर्माण

ठंड के कारण कोहरा बनता है, जो प्रदूषकों को हवा में फंसा कर रखता है और धुंध (स्मॉग) का निर्माण करता है। इससे हवा की गुणवत्ता खराब हो जाती है और सांस लेने में परेशानी होती है।

इस तरह से ठंड में गिरता तापमान, धीमी हवाएं और इन्वर्शन की वजह से प्रदूषण बढ़ जाता है।

प्रदूषण की रोकथाम के लिए मददगार तरीके

बढ़ते वायु प्रदूषण के साथ हमें यह कुछ चीज़ें अपनी सेहत के लिए और अपने पर्यावरण को जीवित रखने के लिए ज़रूरी है।

1. वाहनों के प्रदूषण को कम करना

– सार्वजनिक परिवहन का ज़्यादा इस्तेमाल और निजी वाहनों का कम इस्तेमाल करें। इससे सड़क पर वाहनों की संख्या कम होगी और प्रदूषण घटेगा।
– कारपूलिंग (साझा वाहन) को अपनाएं ताकि एक ही वाहन में कई लोग यात्रा कर सकें।
– इलेक्ट्रिक वाहन और सीएनजी वाहनों का उपयोग बढ़ाएं क्योंकि इनसे कम प्रदूषण होता है।

2. पराली जलाने पर नियंत्रण

पराली जलाने पर नियंत्रण रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा राज्य सरकारों को कई बार चेतावनी व दिशा-निर्देश दिए जा चुके हैं व हर बाद दिवाली के समय दोबारा दिए जाते हैं लेकिन इसके बावजूद भी राज्य सरकारें इस पर काबू पाने में असफल ही नज़र आई हैं।

3. निर्माण कार्य पर नियंत्रण

– सर्दियों के दौरान निर्माण कार्य को सीमित करें क्योंकि इससे धूल और अन्य प्रदूषक हवा में फैलते हैं। हालांकि, किसी भी तरह के निर्माण कार्य को सीमित करना काफी मुश्किल और चुनौतीपूर्ण हो सकता है लेकिन इसके लिए भी सरकार को किसी तरह का उपाय निकालने की ज़रूरत है।

– धूल-रोधी उपाय अपनाएं, जैसे निर्माण स्थलों पर पानी का छिड़काव और कचरे को सही तरीके से ढक कर रखें।

4. औद्योगिक प्रदूषण पर रोकथाम

– उद्योगों को उनके चिमनियों में फिल्टर लगाने के लिए प्रेरित किया जाए ताकि प्रदूषक सीधे हवा में न मिलें।
– उन उद्योगों का संचालन सीमित करें जो अधिक धुआं और प्रदूषक छोड़ते हैं, खासकर सर्दियों के महीनों में।

5. स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग

– कोयला आधारित ऊर्जा संयंत्रों की जगह ‘स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों’ (जैसे सौर और पवन ऊर्जा) का उपयोग बढ़ाने की ज़रूरत है।

6. धूल नियंत्रण के उपाय

– सड़कों पर नियमित रूप से पानी का छिड़काव करें ताकि धूल उड़ने से रोकी जा सके।
– पेड़-पौधे लगाएं, क्योंकि ये हवा को शुद्ध करने में मददगार होते हैं।

इसके अलावा लोगों को प्रदूषण के खतरों और इसे कम करने के तरीकों के बारे में जागरूक करना बेहद जरूरी है। सर्दियों में घर के अंदर और बाहर, दोनों जगह प्रदूषण कम करने के उपाय के तरीकों को देखना चाहिए।

 

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