बिहार नंबर वन पर तंबाकू की खेती के लिए है। कई जिलों में तम्बाखू की खेती होती है। वैशाली, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, दरभंगा और भी कई जिलों में तंबाकू की खेती की जाती है।
भगवानपुर ब्लॉक वैशाली जिला के अंतर्गत आता है और भगवानपुर के पास ही एक गांव पड़ता है जिसका नाम है हुसैना खुर्द। जहां पर 90% किसान तम्बाकू की खेती कर अपना जीवन व्यतीत करते हैं। उनका कहना है कि तंबाकू की खेती में मेहनत जरूर 4 महीने करनी पड़ती है लेकिन उससे इनकम बाकी फसलों से ज्यादा होती है। इसकी मांग दूर-दूर तक होती है इससे कई चीजें बनकर तैयार होती हैं जिससे व्यापारी ज्यादा मांग करते हैं इससे तो हर चीज बनती है।
सिगरेट, बीड़ी, तमाखू, और बहुत सारी चीजें होती हैं जो कि बनकर तैयार की जाती हैं। बहुत सारी चीजों के बारे में हमको पता नहीं है लेकिन हां यह यहां का मेन फसल आप कह सकती हैं कि 4 महीने तक यही फसल तैयार की जाती है। यहां पर हर घर के व्यक्ति हर घर का किसान यही फसल करता है कुछ तो खुद की जमीन पर खेती करते हैं और कुछ लोग किराए पर 1 साल की जमीन लेकर उस पर तमाखू की खेती करते हैं। इसमें खर्च भी कम आ जाता है एक कट्ठा यानी कि विश्वा जमीन पर 40 से 60 किलो के आसपास खैनी तैयार हो जाती है।
सरकार ने अभी तक इस खेती के लिए कोई रोक-टोक नहीं लगाई है। हां कई बार सुनने में जरूर आया है कि आप इसकी खेती ना करें।उन किसानों ने यह भी बताया कि 4 महीने की फसल खत्म होने के बाद अब हम इसमें मक्का बोते हैं और मक्के की खेती भी यहां पर काफी मात्रा में होती है इससे फसल और अच्छी हो जाती है फसल को नुकसान नहीं होता है क्योंकि हम तंबाखू की खेती पैदा करने के लिए य कीटनाशक दवाएं और गोबर यूज सबसे ज्यादा किया जाता है जिससे कि जो जमीन है वह ज्यादा अच्छी हो जाती है उसके ऊपर आप कोई भी खेती करेंगे तो ज्यादा उपज पैदा होगी ।तो इससे भी हमारी खेतों की मिट्टी का कोई नुकसान नहीं होता है इसके बाद हम दूसरी खेती करते हैं। जिससे हमारे बच्चों का लालन पोषण हो पाए क्योंकि एक ही खेती से हमारा पूरे साल का खर्च नहीं चल पाता है और यही कारण है। कि हमारे यहां से जल्दी कोई पलायन नहीं करता है क्योंकि खेती से हम लोग अपना घर खर्च और बच्चों का भरण पोषण कर पाते हैं।
इसकी मांग बिहार में तो है ही इसके बाद यूपी में हैं और फिर बंगाल कई जगह से हमारे यहां पर व्यापारी आते हैं कई स्टेट से और तंबाकू को एक बार में ले करके चले जाते हैं इसके लिए हम को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है क्योंकि लोगों को पहले से पता है कि हमारे यहां तमाकू की खेती ज्यादा मात्रा में की जाती है तो यहीं से सारा माल जाकर के अलग-अलग राज्यों में फैक्ट्रियों में कार्यरत होता है। इस खेती को करने के लिए हमको बड़ी ही मेहनत करनी पड़ती है। खेती को लगाने से लेकर काटने और बाजार में सेल करने तक हमें एक भी पल के लिए चैन नहीं है अभी आप देख रही हैं कि किस तरह से हम इन पत्तों को फटकार रहे हैं अलग-अलग कर रहे हैं ज्यादा धूप पड़ जाएगी तो यह पत्ता सूख जाएगा सिकुड़ जाएगा अलग नहीं होगा जिससे कि यह मार्केट में अच्छे दामों में नहीं बिकेगा। यह पांच पत्ते बनकर तैयार होते हैं जिसमें से तीन प्रकार के पत्ते होते हैं सबसे अच्छा वाला पत्ता सबसे ज्यादा महंगा जाता है दूसरे नंबर का कम और तीसरे नंबर का उससे भी काम तो हम लोग कोशिश करते हैं कि ज्यादा अच्छी फसल हो जिससे कि ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाया जा सके।
महिलाओं से बात किया तो महिलाओं का कहना था कि हम सुबह 4:00 बजे उठकर पहले खाना बनाते हैं फिर उसके बाद में खेतों में आकर के काम करते हैं अपने पुरुषों के साथ में और फिर शाम को थोड़ा जल्दी चले जाते हैं 5:00 से 6:00 के बीच और फिर खाना बना करके घर के सारे काम करके 9:00 से 10:00 बजे सोना होता है। क्योंकि सुबह फिर से हमको 4:00 बजे उठना होता है हम घर और किसानी दोनों काम बराबर करती है।
अगर आप सिर्फ शौक के लिए करेंगे तो कभी बीमार नहीं हो सकते हैं इसमें निकोटिन की मात्रा जरूर ज्यादा रूप में पाई जाती है जो फर्स्ट नंबर का पता होता है उस में निकोटिन की मात्रा ज्यादा होती है। बाकियो में थोड़ी कम- कम होती है इसीलिए जो निकोटीन वाला होता है वह सबसे ज्यादा खतरनाक होता है।