खबर लहरिया Blog Time Use Survey 2025: शादी के बाद महिलाएं करती हैं 6 घंटे घर के काम, पुरुष 47 मिनट , टाइम यूज सर्वे का खुलासा

Time Use Survey 2025: शादी के बाद महिलाएं करती हैं 6 घंटे घर के काम, पुरुष 47 मिनट , टाइम यूज सर्वे का खुलासा

हाल ही में टाइम यूज द्वारा किया गया एक सर्वे बहुत चौंकाने वाला सच सामने लाया है। इस सर्वे के अनुसार, शादी के बाद महिलाएं औसतन 6 घंटे काम करती हैं जबकि पुरुष 47 मिनट काम करते हैं। 

women working at home

                                                                  घर पर काम करती महिलाएं (फोटो साभार: सोशल मीडिया)

लेखन- रचना 

क्या कहता है यह सर्वे?

शादी भारतीय महिलाओं की जिंदगी में बड़ा बदलाव लाती है, लेकिन पुरुषों के लिए ऐसा नहीं होता। हाल ही में टाइम यूज द्वारा प्रकाशित एक सर्वे में यह तथ्य सामने आया है कि शादी के बाद महिलाएं प्रतिदिन औसतन 6 घंटे काम करती हैं, जबकि पुरुषों का औसत कार्य समय केवल 47 मिनट है। यह आंकड़ा न केवल कार्यस्थल पर, बल्कि घरेलू कार्यों में भी महिलाओं की अधिक भागीदारी को दर्शाता है। यह सर्वे देशभर में 4.5 लाख से ज्यादा लोगों पर आधारित है। सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि शादी, मातृत्व और घरेलू जिम्मेदारियां महिलाओं की दिनचर्या को पुरुषों की तुलना में कहीं ज्यादा प्रभावित करती हैं। सर्वे के अनुसार शादी के बाद महिलाएं अपने दिन का लगभग 25 प्रतिशत हिस्सा घरेलू कामों में लगाती हैं, जैसे खाना बनाना, बच्चों की देखभाल, बुजुर्गों के देखभाल आदि। वहीं अविवाहित महिलाएं इन कामों में 6 प्रतिशत समय देती हैं। दूसरी तरफ पुरुषों के मामले में यह अंतर सिर्फ 1 प्रतिशत समय घर के कामों में लगाते हैं, जो शादी के बाद भी मात्र 3 प्रतिशत तक ही पहुँचता है। यह आंकड़े सुनने में थोड़ा अजीब लग सकते हैं, लेकिन इसके पीछे की सच्चाई को समझना बहुत जरूरी है। 

सर्वे में महिला और पुरुष के कामों में अंतर

कई महिलाएं शादी के बाद नौकरी करती हैं तो फिर उन्हें नौकरी के साथ घर की भी जिम्मेदारियां उठानी पड़ती है। जो महिलाएं नौकरी करती हैं उनके लिए दिन दोगुना भार लेके आता है। पुरुष लगभग सात घंटे काम करते हैं महिलाएं भी सात घंटे काम करती हैं लेकिन फर्क ये है कि छुट्टियों में घर का काम सिर्फ महिलाएं ही करती हैं। इतना ही नहीं महिलाएं रोजाना भी घर का काम करती हैं अपने नौकरी में जाने से पहले और बाद भी जिसके उन्हें वेतन नहीं मिलते। सर्वे में यह भी सामने आया है कि खाना बनाने में महिलाओं का समय सबसे ज्यादा जाता है। शादीशुदा महिलाएं रोजाना लगभग 3 घंटे समय खाना बनाने में लगाती हैं, जबकि पुरुष सिर्फ 4 मिनट और बच्चों की देखभाल में महिलाएं रोज 1 घंटे देती हैं और पुरुष सिर्फ 19 मिनट।

असल में, ये आंकड़े महिलाओं के असली काम को पूरी तरह नहीं दर्शाते। ज्यादातर महिलाएं घर का काम करती हैं – खाना बनाना, बर्तन धोना, बच्चों की देखभाल, सफाई, बुजुर्गों की सेवा आदि। ये सारे काम अनपेड (बिना वेतन वाले) होते हैं और इन्हें अक्सर ‘काम’ माना ही नहीं जाता। अगर इन घरेलू कामों को भी गिनें, तो महिलाएं पुरुषों से कहीं ज्यादा घंटे काम करती हैं। सुबह से लेकर रात तक उनका काम चलता रहता है और उन्हें छुट्टी भी नहीं मिलती।

घरेलू काम भी ‘काम’ है

हमारे समाज में अक्सर यह माना जाता है कि खाना बनाना, सफाई करना, बच्चों की देखभाल करना या बुज़ुर्गों की सेवा करना “महिलाओं का काम” है। लेकिन सच्चाई यह है कि ये सभी कार्य भी मेहनत और समय मांगते हैं। इन्हें भी उतना ही सम्मान मिलना चाहिए जितना ऑफिस के काम को मिलता है। 

समाज को समझना होगा

यह जरूरी है कि सिर्फ ऑफिस के काम को ही ‘काम’ ना मानें। घर का काम भी उतना ही जरूरी और थकाने वाला होता है। महिलाओं की मेहनत को भी उतना ही सम्मान और मान्यता मिलनी चाहिए जितना पुरुषों को मिलता है। टाइम यूज का सर्वे सोचने पर मजबूर करता है कि काम को कैसे परिभाषित करते हैं। अगर महिलाओं के घरेलू कामों को भी गिनें, तो वे भी पूरे समय काम करती हैं, बल्कि कई बार पुरुषों से ज्यादा। जरूरत है कि इस सोच को बदलें और हर प्रकार के काम को बराबर सम्मान दें।

पुरुषों की भागीदारी जरूरी

अगर महिलाएं अकेले ही घर और बाहर दोनों की ज़िम्मेदारी निभा रही हैं, तो यह उनके लिए मानसिक और शारीरिक रूप से बहुत थकाऊ हो सकता है। ऐसे में पुरुषों की भागीदारी न केवल ज़रूरी है, बल्कि यह एक समान और सहयोगी रिश्ते की बुनियाद भी बनती है। इसे समाज में एक बड़ा बदलाव के रूप में देखा जा सकता है।

पुरुषों की कार्य समय में कमी के कारण

पुरुषों का कार्य समय कम होने के बावजूद, वे घरेलू कार्यों और देखभाल में कम भागीदारी दिखाते हैं। यह असंतुलन पारिवारिक संरचनाओं, सामाजिक धारणाओं और कार्यस्थल की नीतियों के कारण है। इसका कारण यह भी है कि भारतीय समाज का पितृसत्ता समाज, जो परछाई की तरह है जैसे जैसे समाज बदलता है पितृसत्ता भी समय और जगह के अनुसार अपने आप को बदला है। इसके अलग-अलग प्रकार भी देखने को मिलते हैं।

यह सर्वे सिर्फ आंकड़े नहीं दिखाता, बल्कि एक गहरी सच्चाई सामने लाता है। महिलाओं की मेहनत को अक्सर अनदेखा किया जाता है। बराबरी सिर्फ शब्दों में नहीं, व्यवहार में भी होनी चाहिए। महिलाओं और पुरुषों के कार्य समय में अंतर केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज की संरचना और धारणाओं को भी दर्शाता है। इस असंतुलन को समाप्त करने के लिए आवश्यक है कि पारिवारिक, सामाजिक और कार्यस्थल पर समानता की दिशा में कदम बढ़ाएं। सिर्फ आंकड़ों में नहीं, बल्कि वास्तविक जीवन में भी समानता सुनिश्चित करना सब की जिम्मेदारी है।

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