नवरात्रि और दशहरा में देवियों की जमकर पूजा हुई। नवरात्री में नव दिन देवी के पंडाल और पूरा का पूरा मार्केट दुल्हन की तरह सजा था। जगह-जगह कन्या कुवारी खिलाई जा रही थी। देवी जी के गाने बज रहे थे और लोग भक्ति में मग्न थे। ये सब देख कर मन बहुत खुश था। मैं इतने अच्छे नजारे देख कर उसी भाव में थोड़ी देर के लिए डूब सी गई थी। फिर मुझे याद आया अरे इसमें से कितने ऐसे ढोगी मर्द हैं जो इन्हीं कन्याओं का अपहरण कर लेते हैं, बलात्कार करते हैं। महिलाओं और लडकियों को ज़िंदा जला देते हैं और सोसल मीडिया में महिलाओं और लडकियों के प्रति भद्दी टीका टिप्पणी करते हैं। आखिर ये मिट्टी की मूर्ति भी तो हम लड़कियों का पुतला है।
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अरे मर्दों, जब मासूम लड़कियों के साथ बलात्कार करते हो तब आपको ये दुर्गा जी नजर नहीं आती? तब ये देबी भवानी के गाने नहीं सुनाई देते हैं। तब आपको दया नहीं आती है। एक बात और मैं दुर्गा और काली से पूछना चाहती हूँ की आगर ये ये मानती है की आपमें इतनी शक्ति है तो तब आपकी शक्ति कहां चली जाती जाती। आपका तो इतिहास गाया जाता है की आपने ऐसे असुरो का नाश किया है तो महिलाओं के साथ हिसा करने वाले असुरो का नास क्यों नाश नहीं करती हो?
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मैने कई लोगों से दबें जुबान में ये सुना है की देवी पंडाल कुछ ऐसे पुरूषों ने भी सजाया था जो घर के अंदर अपनी ही पत्नी, बेटी और बहुओ के साथ हिंसा करते है। ज़िंदा देवियों को मारते और जलाते हैं। वही कहावत है न, बाहर से राम-राम भीतर कसाई।
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