चित्रकूट की कुछ महिलाएं अब समाज की कुरीतियों को पीछे छोड़ हरे छेत्र के कार्यों में आगे बढ़ रही हैं। वे अब शादियों में रोडलाइट उठाकर अपने घर-परिवार का खर्चा चला रही हैं। वे बिना हिचकिचाए और पूरे हौसले के साथ ये भारी भरकम लाइट्स उठा रही हैं और शादियों में काम कर रही हैं।
महिला और पूरूष की समानता की लड़ाई 21वीं सदी में भी जारी है। शायद पूरी तरह से बराबरी का दर्जा पाना महिलाओं के लिए एक चुनौती सा हो गया है। वैसे तो महिलाएं अब सिर्फ चूल्हे-चौके तक सीमित नहीं हैं, वे हर कार्य छेत्र में आगे बढ़ रही हैं। आज के समय में महिलाएं हर वो काम कर रही हैं जो पूरूष करते हैं चाहे वो मज़दूरी हो या घर बनाना हो या फावड़ा चलाना हो। यहाँ तक कि टीचर, मैनेजर, लेखपाल, जेई, बी डी ओ, सी डी ओ, डी एम आदि नौकरियों में भी अब महिलाएं आगे हैं।
इतनी उन्नति करने के बावजूद भी समाज आज तक महिलाओं के साथ भेदभाव कर रहा है। समाज ने महिलाओं और पुरुषों के काम का बटवारा कर दिया है कि यह काम सिर्फ पुरुष ही कर सकते हैं और वो काम सिर्फ महिलाएं ही कर सकती हैं। आज भी कुछ कार्य छेत्र ऐसे हैं जिनमें सिर्फ पुरुषों को ही महत्त्व दिया जाता है।
चलिए आपको बता दें कि हम ऐसे कौन से काम की बात कर रहे हैं। शादियों में तो हम सब जाते ही हैं और शादियों के समारोह में खूब मौज मस्ती, धूमधाम भी देखने को मिलती है, और अब तो बिना डीजे के शादियां अधूरी ही लगती हैं। डीजे न हो तो मज़ा ही नहीं आता है, या ये भी कह सकते हैं कि लगता ही नहीं कि शादी है। आपने उसी डीजे के साथ भीड़ में रोडलाइट लेकर चलते लोगों को भी देखा होगा, जो सिर पर भारी भरकम लाइट रख कर खड़े रहते हैं और बारात के साथ-साथ चल रहे होते हैं। अगर वो न हों तो रोशनी न हो और अगर रोशनी नहीं होगी तो न ही डीजे का मजा आता है और न ही नाच-गाने में मज़ा आता है।
पर कभी आपने इस बात पर गौर किया है कि ये रोडलाइट लिए हुए केवल पुरुष ही दिखते हैं, ऐसा इसलिए है क्यूंकि हमारे समाज के हिसाब से ऐसे काम सिर्फ आदमियों को ही शोभा देते हैं।
महिलाएं भारी रोडलाइट्स उठा कर भर रहीं हैं अपने हौसलों की उड़ान-
लेकिन समाज की सारी कुरीतियों को पीछे छोड़ते हुए चित्रकूट ज़िले के ब्लॉक कर्वी के खटिकाना मोहल्ले की महिलाओं ने इस चुनौती को अपनाया है और रोडलाइट का काम शुरू किया है और इसी से ही अपने घर का गुज़ारा कर रही हैं। रोडलाइट का काम करना भले ही इनका शौक नहीं मजबूरी है लेकिन इन महिलाओं ने ये साबित कर दिया है कि महिलाएं पुरुषों से कम नहीं हैं, और वो पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल सकती हैं।
इसके साथ ही इन महिलाओं ने ये भी साबित कर दिया कि औरतें आदमियों से दोगुना ज्यादा काम करने में सक्षम हैं। भले इनको यह काम गरीबी से तंग आकर करना पड़ा हो या बेरोज़गारी के कारण, इन्होने बिना किसी झिझक या शर्म के पूरे हौसले के साथ अपने काम में महारत हासिल की है।
रोडलाइट उठाने का काम करने वाली महिलाओं में बुधिया, पन्नी, सुमतिया, रज्जू, फुलकलिया और रेशमा शामिल हैं। इन सब महिलाओं से जब बात की गई तब इन्होंने बताया कि लगभग तीन साल से ये लोग रोडलाइट का काम कर रही हैं। इन महिलाओं को तो पता भी नहीं था कि ऐसा कुछ काम महिलाएं कर भी सकती हैं और इससे इनके परिवार की रोज़ी-रोटी चल सकती है।
घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण करना पड़ रहा है ये काम-
इन महिलाओं का कहना है कि घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी और घर में छोटे-छोटे बच्चे थे। उनके छेत्र में कोई दूसरा रोज़गार भी नहीं था इसलिए उन्हें यह काम शुरू करना पड़ा। उन्होंने बताया कि लोग रोज़गार के लिए रोज चौराहे पर जाते हैं और मजदूरी मिलने की उम्मीद में खड़े रहते हैं। काम मिला तो ठीक नहीं तो खाली हाँथ घर वापस लौट आते हैं। मज़दूरी करके जो पैसे मिलते भी हैं वो इतने कम होते हैं कि बस एक वक़्त की रोटी का जुगाड़ हो पाता है। बताते चलें कि इन महिलाओं को शादियों में इतनी भारी लाइट्स उठाने का रोज़ की दिहाड़ी के हिसाब से मात्र 300 से 400 परितदिन मिलता है।
शुरुआत में हुई थी काम मिलने में दिक्कत-
इन महिलाओं ने बताया कि शादियों की सहालक के समय ज़्यादातर आदमी रोडलाइट के काम के लिए जाते थे, जिससे इन्हें प्रेरणा मिली कि ये लोग भी उसी काम के लिए जा सकती हैं। कई बार ऐसा होता था कि सहालक के समय रोडलाइट उठाने के लिए पुरुषों की कमी हो जाती थी। एक दो औरतों ने रौशनी रोडलाइट नाम की एक कंपनी से इसी काम पर उन्हें रखने के लिए कहा परन्तु वहां के मालिक ने यह कहकर मना कर दिया कि औरतें इतनी भारी लाइट्स नहीं उठा सकती। जिसके बाद ये महिलाएं कर्वी के कई रोडलाइट मालिकों के पास काम मांगने गयीं लेकिन सबने इन्हें महिला होने का हवाला देकर काम नहीं दिया।
इन महिलाओं के संघर्ष को देखकर रौशनी रोडलाइट के मालिक सादिक ने इन्हें काम दे ही दिया। इन महिलाओं ने हमें बताया कि वो इस काम को करके बहुत खुश तो नहीं हैं , लेकिन इससे उन्हें कुछ राहत तो मिल ही जाती है। इनका मानना है कि बेरोज़गारी से भरे इस शहर में अगर इन्हें इतना काम भी मिल रहा है तो वो बहुत है। इन महिलाओं को रात में रोडलाइट उठा कर सड़कों पर चलना होता है और अपने आप को बाहर के माहौल में सुरक्षित रखने के लिए यह चुपचाप लाइट लेकर चलती रहती है या जहाँ रुकना होता है वहां चुपचाप रुककर खड़ी हो जाती हैं।
इस काम में जुड़ रही हैं अब और भी महिलाएं-
रौशनी रोडलाइट के मालिक सादिक का कहना है कि रोडलाइट उठाने का काम अभी तक सिर्फ़ पुरूष ही करते थे और शुरू-शुरू में उन्हें भी महिलाओं को काम देने में थोड़ी हिचकिचाहट हुई थी कि वो लोग सही ढंग से यह काम कर पाएंगी या नहीं। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि उन महिलाओं की सुरक्षा की भी उनकी ही ज़िम्मेदारी होती, लेकिन जब सादिक ने इन महिलाओं की हिम्मत देखी तब उन्हें लगा इन्हें काम दे देना चाहिए क्यूंकि वो जो भी कमाएंगी अपने बच्चों और परिवार के हित में लगाएंगी , वहीँ इस काम से जुड़े आधे से ज़्यादा पुरुष तो अपनी सारी कमाई शराब और गुटखे में लगा देते हैं और परिवार का पेट भी नहीं भर पाते। सादिक का कहना है कि इन महिलाओं का हौसला देख कर वो इतना प्रभावित हो गए कि अब ज़्यादातर महिलाओं को ही काम पर रखते हैं। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि इस काम को करने के लिए तीन सालों में 20-25 महिलाएं जुड़ चुकी हैं।
खबर लहरिया जोश और प्रेरणा से भरी इन महिलाओं के जज़्बे को सलाम करता है। और हम आशा करते हैं कि भविष्य में महिलाएं हर छेत्र में आगे बढ़ें और सफलता की हर सीढ़ी पर अपनी एक अनोखी पहचान बनाएं।
इस खबर को खबर लहरिया के लिए नाज़नी रिज़वी द्वारा रिपोर्ट किया गया है और फ़ाएज़ा हाशमी द्वारा लिखा गया है।