महिलाएं समानता के अधिकार की लड़ाई दशकों से लड़ती आई हैं। आज के आधुनिक युग में जहां ये कहा जाता है कि महिलाएं सब कुछ कर रही हैं वहीं आज भी समाज उन्हें धार्मिक क्रियाकलापों से दूर कर देता है और पुरुषों को उन क्रियाओं को करने का अधिकार देता है। वहीं महोबा जिले की उमा देवी ने समाज की रुकावटों से लड़ते हुए अपने पिता का अंतिम संस्कार किया और समाज को उसकी विचारधाराओं के खिलाफ चुनौती दी जो उन्हें उनके अधिकारों से दूर करती है।
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उमा देवी का एक भाई और बहन है जिन्होंने माँ के देहांत के बाद पिता से मुँह मोड़ लिया और धन संपत्ति भी अपने नाम कर ली। 28 सालों से उमा देवी अकेली अपने पिता की सेवा कर रहीं थी। कोरोना के समय उनके पिता का देहांत हुआ था जिसमें उमा देवी ने ही उनका देह संस्कार किया और बाकी रीतियों को भी निभाया।
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उनका कहना है कि जब भाई-बहनों ने उनसे रिश्ता ही तोड़ लिया तो बाप का देह संस्कार भाई क्यों करेगा। क्या सारे अधिकार केवल भाई के ही होते हैं, क्या धन-संपत्ति के मालिक भी लड़के ही होते हैं? उन्हें देह संस्कार करने से काफी मना भी किया गया लेकिन उमा देवी ने किसी की एक भी न सुनी और उन्होंने सारी क्रियाओं को खुद अपने हाथो से किया। उन्होंने लोगों के मुँह को बंद किया और समाज की विचारधाराओं को ख़ारिज कर अपने पिता को श्रद्धांजलि दी।
वह कहती हैं कि हम लड़कियों को अपने लिए खुद खड़ा होना होगा। इस दुनिया में कोई किसी की मदद नहीं करता स्वयं पर भरोसा रखकर लड़कियों को आगे बढ़ने की ज़रूरत है।
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