जिला ललितपुर, ब्लाक महरौनी, मोहल्ला पुरी कॉलोनी, यहाँ विकास की डगर है बहुत मुश्किल है .यहाँ नाली कम से कम 4 साल से इसी तरह से भरी हुई है लोगों का कहना है कि इसमें पानी नहीं ठीक से निकलता है. अगर यहां नाली बन जाती तो ठीक रहता, गंदगी बहुत फैली है इस नाली की कभी सफाई नहीं होती हैं इस नाली को बनवाने के बारे में हम लोगों ने नगर पंचायत में कई बार कह चुके हैं पर कोई नहीं सुनता है.
हम लोग चार पांच साल से परेशान हैं इस गंदगी की वजह से हम लोग बीमार भी हो रहे हैं कई तरह की बीमारियां भी फैल नहीं है मच्छर के काटने से हम लोग अपना इंतजाम कितना भी करें पर बहुत मच्छर है, मच्छर की वजह से लोग बीमार हो रहे हैं यहां का कम से कम एक पूरा मोहल्ला है जो 400-500 परिवार रहते हैं सभी लोगों को यह दिक्कत है बच्चे भी यहीं से निकलते हैं. रोज कीचड़ से होकर बच्चे स्कूल के लिए जाते हैं जिससे दिक्कतें आती हैं.
हम लोगों ने यहां एसडीएम साहब के यहां भी कई बार बोलै हैं कि इसकी कार्रवाई की जाए पर हम लोगों की कोई नहीं सुनता है. हम लोग जहां जाते हैं बस इस नाली के बारे में मांग करते हैं कि हमारे यहां की यह नाली बनवाई जाए. चेयरमैन साहब हम लोगों को 5 साल से आश्वासन दे रहे हैं कि हम बनवा देंगे लेकिन कुछ कार्यवाही नहीं होती है.
ललितपुर ब्लाक महरौनी में आज भी इस तरह के घरों में रहने के लिए मजबूर हैं लोग, आज भी :विकास की डगर धुंधली है , सालों से परेशान हैं आवास के लिए पर इन्हें कोई आवास नहीं मिल रहा है. इन लोगों का कहना है कि हम लोग हर बार आशा लगाए रहते हैं, लेकिन हर बार हमें निराशा ही हाँथ लगती हैं. हम सोचते हैं एक प्रधान ने कुछ नहीं किया तो दूसरा प्रधान कुछ करेगा पर सब एक जैसा ही काम करते हैं, सब झूठी आश्वासन दे देते हैं कि आपका ये काम हो जाएगा।
हम लोग बहुत परेशान हैं आवास के लिए, हम लोगों को आवास नहीं मिल रहे हैं हमारे यहां के कम से कम आज भी 20 परिवार ऐसे हैं जिनके आवास नहीं बने हैं इसी तरह के टूटे-फूटे घरों में रह रहे हैं बारिश में डर लगा रहता है कि कहीं गिर ना जाए. मिट्टी के इन घरों में रहकर हमे हमेशा अपनी जान का खतरा बना रहता है. सरकार में अभी कहीं नहीं गए हम इसकी मांग करने के लिए क्योंकि सरकार में जाओ तो कोई कुछ नहीं सुनता है, पैसे अलग से खर्च हो जाते हैं पर सुनवाई कहीं नहीं होती है. एक दो बार ललितपुर जा चुके हैं ललितपुर से भी सुनवाई नहीं हुई है. हम चाहते हैं कि हम गरीबों के घर बनवाये जाएं, हमारे पास जमीन लेने और घर बनवाने की गुंजाईश नहीं हैं.
लड़के हैं वह मजदूरी करते हैं ना तो उनको आवास मिला है ना हमें मिला है. अगर खेती किसानी होती तो उसमें से अपना एक कमरा बनवा लेते लेकिन हमारे पास कुछ नहीं है. बच्चे हमारा पेट तो पाले हैं मजदूरी करके लेकिन मकान कहां से बनवाएं हम? पूरी जिंदगी ही निकली जा रही है इसी तरह के घरों में रहते हुए ना किसी लड़का-बहु को आवास मिला और ना हमें मिला।