आपको पता है हमारे पूर्वज मिट्टी के बर्तन में ही खाना बनाते थे | चाहे वो चावल बनाना हो या दाल बनना बनता तो मिटटी के बर्तन में ही था.|लेकिन धीरे धीरे आधुनिकता बढ़ती गई और मिटटी के बर्तन की जगह पीतल ताम्बा और फिर धीरे धीरे अल्मुनियम और स्टील ने ले ली हद तो तब हुई जब सस्ते और टिकाऊ के नाम पर इस सारे की जगह प्लास्टिक के बर्तनों ने ले ली.
हम अब तो सिर्फ पूजा और त्यौहारों में मिट्टी के बर्तन का उपयोग करते है. जिसका खामियाजा कुम्हारों को ही नहीं बल्कि हमारी सेहत को भी भुगतना पड़ रहा है.
जहाँ एक तरफ कुम्हारो के रोजगार नहीं रहे | जिस मिट्टी के बर्तन में एक समय लोग बनाते खाते थे वह शैली विलुप्त हो रही है. लेकिन बांदा डीएम ने प्लासटिक हटाओ अभियान के तहत एक नई मुहिम शुरु कर दी है| साथ ही मिट्टी के बर्तन की सेल भी बांदा सदर तहसील में 20 नंवबर से लगी है और उस देखने वालों की भीड लगी रहती है|
लोगों का कहना है कि इस बर्तन का खाना बहुत ही स्वादिष्ट होता है| लेकिन अब न कुम्हारो को मिट्टी मिल पाती है न लोग ये बर्तन खरीद पाते हैं| जिसके चलते बंद हो गए है और अब लौट पना मुश्किल है लेकिन अगर यही चीजें आ जाऐ तो बहुत अच्छा होगा और बर्तन बनाने वालों का रोजगार भी आ जाएगा|
बांदा डीएम हीरालाल का कहना है की वह प्लास्टिक हटाने के लिए इस नए कार्य को लाए है और अभी उन्होंने बाहर से मगवाया है पर जल्द ही यहाँ के कुम्हारो के साथ बैठक करेगे और यही पर इन बर्तनों को बनाने के लिए उनका सहयोग भी करेगे ताकि प्लास्टिक खत्म हो जाए और उन कुम्हारो को रोजगार भी मिले| अब ये मुहीम कितना सफल हो पाता है ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा क्योकि ये मिटटी के बर्तन इतने महंगे है कि आम जनता की जेब इसका खर्च वहां नहीं कर सकती।