9 नवम्वर 2018
द किवता शो, एपिसोड 59
इस बार का द कविता शो का विषय है ‘गालियां’। वेसे तो अब गलियां देना एक आम बात हो गई है पर अगर इसका असल मतलब देखा जाये तो इन गलियों में माँ-बेहेन की निंदा करी जाती है।
जब भी कोई दो पुरुष लड़ते हुए दिखते हैं, तो उनके बीच गालियों का प्रयोग भी ज़रूर होता है। लेकिन यही गालियां कभी औरतों के झगड़ों में प्रयोग नहीं करी जाती है। हालाँकि गालियां सुनकर औरत कभी उसके खिलाफ आवाज़ नहीं उठाती है पर अन्दर ही अन्दर उसे इस बात का बहुत बुरा भी लगता है।
एक तरफ तो हम औरतों को दिवाली जैसे उत्सवों पर लक्ष्मी और दुर्गा के रूप में पूजते हैं। और वहीँ दूसरी तरफ माँ-बेहेन की गालियां देकर हम उनकी निंदा भी करते हैं।
जिसके चलते लोगों ने गालियाँ देना जैसे आम बात बना दी है। फिर चाहे वो किसी सार्वजनिक स्थान पर हो, बस में हो या फिर दुकानों पर भी, हर जगह गालियों का प्रयोग मानो आम बात सी हो गई है। इस विषय के ज़रिये हम ये बताना चाहते हैं कि भले ही औरतों आपके सामने गालियों का विरोध न करें पर उनके लिए ये काफी अपमानजनक बात है।
और अब तो डिजिटल मीडिया के इस दौर में सोशल मीडिया जैसी जगह पर भी गाली देना मानो आम बात सी हो गई है। सोशल मीडिया पर हजारों लोग भले ही उस गाली शब्द का प्रयोग देखते हैं पर उसका विरोध करने के लिए एक व्यक्ति भी सामने नहीं आता है।
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