उत्तर-प्रदेश के सीतापुर जिले के ब्लाक सकरन के मजलिसपुर गांव में 10 अक्टूबर को अपने हक़ के लिए कब तक भूखा लडेगा, और मरेगा किसान?भूख के कारण आत्महत्या हुई
भूख से परेशान 12 वर्षीय एक गरीब परिवार की बच्ची के खुद को आग लगा लेने का मामला सामने आया था।
यहाँ के राकेश की लड़की रोहिनी जोकि 15 साल की थी घर में खाने को नहीं था भूख के कारण आत्महत्या कर ली घर में उस दिन 1 किलो आटा लाए थे उसी की रोटी बनी थी तो एक रोटी बच गई थी भाई बहन आपस में खाने के लिए झगड़ा किए लड़के ने खा लिया तो लड़की भूख के कारण आत्महत्या कर ली। राकेश ने बताय हमारे घर में 12 साल से गरीबी बनी है मजदूरी करते हैं रोज का 100 रुपया ही मिलता है कभी मिल गया कभी नहीं मिलता है और मेरे पास ना घर में खेती है आठ विसवा है तो उसमें जानवरों के लिए घास लगाएं खाने का अनाज कुछ भी नहीं होता है राशन कार्ड बना है 20 किलो गल्ला मिलता है।
महीने भर के लिए क्या होता है मनरेगा में काम का भी प्रधान नहीं देता है। 4 साल बीत गए ना हमें कभी काम दिया ना कभी काम में बुलाया है। इसके अलावा सरकारी लाभ मुझे कुछ भी नहीं मिला है। इस समय झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं इस तरह के ठंडी हैं ठंड लगने का डर बना है। अभी तो भूख से आत्महत्या हुई है अब तो ठंड होने से घटना होने का डर है। 10 अक्टूबर को भूख के कारण लड़की आत्महत्या की उसी समय सभी अधिकारी आए एसडीएम प्रधान कोटेदार कोटेदार 50 किलो चावल 50 किलो गेहूं मदद के लिए दिए हैं इसके अलावा कुछ भी नहीं मिला है।
आज भी मेरे घर पर 50 किलो चावल 50 किलो गेहू बस है और कुछ भी खाने का नहीं है इस तरह की गरीबी स्थिति है प्रशासन की तरफ से कुछ भी मदद नहीं मिला है 15 दिन लड़की सीतापुर अस्पताल में एडमिट थी इसके बाद मौत हुई है। जब लड़की की जान थी तो बस यही कह रही थी कि मैं भूख के कारण आत्महत्या की हूं प्रशासन सुनते ही है। जिस समय लड़की भूल के कारण मिट्टी का तेल डालकर आग लगाए हैं। उस समय मैं हमारी औरत घर पर नहीं थे गांव के दूरी में मजदूरी करने गए थे सिर्फ घर पर भाई बहन ही थे उस दिन पढ़ने भी नहीं गए थे इस तरह से कई बार स्थिति आई है कि 2 दिन 3 दिन बिना खाए सोए रहते रहे। इधर उधर के लोग जानते थे खाने के लिए दे देते थे पर उस दिन कोई नहीं जान पाए हैं।
इस कारण से इस तरह की घटना हुई है एक रोटी के लिए 15 साल की लड़की की जान चली गई शायद मैं घर पर होता तो कहीं से खाना मांग कर लाते हैं। इस तरह का हादसा ना होता हमारे सिर्फ तीन ही बच्चे हैं दो लड़की थे एक लड़का था। सबसे बड़ी लड़की ही थी प्रधान उसी दिन जब घटना हुई है तभी देखने के लिए हमारे घर पर आया है। इसके अलावा मेरे घर पर नहीं आया ना कुछ मदद किया है पात्र होते हुए न आवास मिला ना शौचालय मिला इस तरह से झोपड़ी बनाकर गुजारा कर रहे हैं जॉब कार्ड देखने के लिए बना है कभी भी काम नहीं मिला।
प्रधान राजबहादुर का कहना है की मनरेगा में अभी भी काम लगा है वह नहीं जाता है। कहीं काम करने गाय पाले हुए हैं अपना गाय का चारा भूसा करता है। उन्हीं का का दूध बेचकर अपना खर्च चलाता है हमने कई बार का है काम करने के लिए नहीं जाता है शौचालय आवास में अभी सूची में नाम नहीं था इस कारण से नहीं मिला है अब सूची में नाम डलवा दिए हैं। अब मिलेगा कोटेदार से 50 किलो चावल 50 किलो गेहूं दिलवा दिए हैं और उसके जानवरों को पशु बड़ा बनवा एंगे यही मदद कर सकते हैं इसके अलावा कोई भी मदद नहीं करते।
विसवां तहसील दार का कहना है मौके में हम लोग गए थे और उसकी मदद किए हैं। पशु बाड़ा बनवाने के लिए कहे हैं उसके जानवरों को और कोटेदार से अनाज दिलवाए हैं। उसकी सहायता किए हैं आवाज शौचालय के लिए प्रधान से कहे हैं उनकी सूची में नाम अब आ गया है उनको आवास शौचालय दिलवाया जाएगा।
सीतापुर जिले के डीएम अखिलेश तिवारी का कहना है उसके घर में पर्याप्त अनाज है भूख के कारण लड़की नहीं मरी है यह सब झूठी बात है।
15 अक्टूबर को जर्मनी की गैर-सरकारी संस्था वेल्थहंगरलाइफ और आयरलैंड की सहायता एजेंसी कंसर्न वर्ल्डवाइड ने संयुक्त रूप से 2019 की विश्व भूख सूचकांक (जीएचआई) रिपोर्ट जारी की
2019 की वैश्विक भूख सूचकांक रिपोर्ट में भारत को 100 में से 30.3 अंक मिले जो भुखमरी की गंभीर स्थिति को दर्शाता है 2014 की रिपोर्ट में भारत 76 देशों में 55वें और पिछले साल 119 देशों में 103 नंबर पर था
इस रिपोर्ट का उद्देश्य, “विश्व स्तर पर तथा क्षेत्रीय और देश के स्तर पर भुखमरी को मापना और चिन्हित करना है
रिपोर्ट बताती है कि भारत में भुखमरी की समस्या काफी गंभीर है। फिर भी ज्यादातर लोगों को लगता है कि ‘अच्छे दिन आएंगे’लेकिन कब?