खबर लहरिया Blog UP में उभरती SBSP की RSS सेना: क्या हैं बड़े सवाल? क्यों हुआ है गठन?

UP में उभरती SBSP की RSS सेना: क्या हैं बड़े सवाल? क्यों हुआ है गठन?

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने 8 दिसंबर को किया अपनी सेना RSS का नवीकरण। राजभर का ये कदम पार्टियों के परंपरागत संगठन मॉडल से हटकर कैडर-आधारित अनुशासन पर जोर देता है। परेड, रैंक और सुरक्षा व्यवस्था जैसे तत्व कई सवाल खड़े करते हैं- क्या राजनीति इस दिशा में आगे बढ़ना चाहती है?

राष्ट्रीय सुहेलदेव सेना | साभार: अरविन्द राजभर, SBSP राष्ट्रीय महासचिव

लेखन – हिंदुजा वर्मा 

क्या है खबर?

UP की राजनीति में एक नई ‘सेना’ उतरी है और इसे किसी सरकार ने नहीं, बल्कि एक सहयोगी मंत्री ने बनाया है। सवाल यह नहीं कि ये क्या करेगी, बल्कि ये है कि एक राजनीतिक दल को ऐसी सेना बनाने की ज़रूरत क्यों पड़ी? और क्या सरकार में होते हुए मंत्री अपनी सेना का निर्माण कर सकते हैं? ये सेना केवल एक संगठन नहीं है बल्कि इसके पास वर्दी है, हांथ में डंडा है और इन्हे मार्च परेड की ट्रेनिंग भी दी गयी है।

योगी सरकार में मंत्री और एनडीए सहयोगी दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर ने अपनी एक अलग सेना तैयार कर ली है। इस सेना का नाम है राष्ट्रीय सुहेलदेव सेना (RSS)। राजभर की राष्ट्रीय सुहेलदेव सेना पूरी तरह से एक कैडर-आधारित संरचना है, जो आधिकारिक रूप से 2004 में ही लॉन्च हो चुकी थी। मगर राजभर ने कहा कि पहले उनकी पार्टी सुहेलदेव सेना के नाम से समूह बनाती थी, लेकिन तब कोई वर्दी या रैंक नहीं थी। अब इसे औपचारिक रूप से शुरू किया गया है। और और ये सब हुआ 8 दिसंबर को आजमगढ़ में एक कार्यक्रम दौरान जहाँ पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर में पहुंचे हुए थे।

नई सेना का ढांचा क्या है?

सदस्यों को पार्टी की ओर से आईकार्ड भी जारी किए गए हैं। इसके अलावा अब इस राजनितिक संगठन की सेना के पास नीली वर्दी है, कंधों पर रैंक के अनुसार सितारे, छाती पर बैज, और हाथ में डंडा जो इनको बिलकुल सेना और पुलिस की तर्ज पर दर्शाता है।

आजतक में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, संगठन में कमांडर, सीओ, डीएसपी, एसआई और इंस्पेक्टर जैसे पदनाम बनाए गए हैं, और इनके कंधों पर लगाए गए सितारे उनकी रैंक बताते हैं। इस तरह की संरचना ने स्वाभाविक रूप से सवाल खड़े किए हैं- क्या यह सिर्फ पार्टी वर्करों का समूह है, या एक समानांतर कैडर संगठन?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ RSS से तुलना क्यों?

नाम सुनते ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से तुलना भी हो रही है हालांकि पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अरुण राजभर का कहना है उनकी सेना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से अलग है क्यूंकि उनका संगठन धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक चुनौतियों से लड़ेगा। हालांक, दोनों संगठों में कई समानताएं भी हैं जैसे वर्दी होने, एक पार्टी से जुड़ा होना, हाथ में डंडा होना और अपने आप को सामाजिक कार्यकर्ता बताना।

बहरहाल, प्रवक्ता राजभर का दावा है कि ये सेना युवाओं को कौशल विकास, करियर मार्गदर्शन और जीवन-निर्माण की राह दिखाएगी। गांवों के 18 से 25 वर्ष के युवाओं को- जो भविष्य को लेकर असमंजस में रहते हैं- इस संगठन के माध्यम से प्रशिक्षण दिया जाएगा। राजभर बताते हैं कि इस सेना का एक उद्देश्य यह भी है कि पार्टी की रैलियों, कार्यक्रमों, और जिलों में होने वाले बड़े आयोजनों में व्यवस्था संभालना और सुरक्षा में सहयोग देना।

मगर अगर इसका उद्देश्य मार्गदर्शन देना है या बेरोज़गारों को नौकरी दिलाना है तोह फिर इनसे पार्टी के रैलियों जैसे निजी काम क्यों कराये जा रहे हैं? सेना में भर्ती लोगों के लिए कोई पढाई की ट्यूशन, या संसाधन दिलाने की कोई बात सामने नहीं आयी है। अभी इसकी शुरुआत पूर्वांचल के 22 जिलों में हुई है, और पार्टी का आगे इसे पूरे प्रदेश में फैलाने का लक्ष्य है। राजभर कहते हैं कि उनका लक्ष्य एक लाख सदस्यों को जोड़ने का है।

राजनीति में इसका मतलब क्या है?

SBSP यूपी की राजनीति में भले ही राष्ट्रीय स्तर पर छोटी पार्टी हो, लेकिन पूर्वांचल में इसका आधार मजबूत है। इसके तीन बड़े राजनीतिक महत्व हैं एक के ओम प्रकाश राजभर पूर्वांचल में राजभर, गैरिया, नोनिया, प्रजापति, कुम्हार जैसे पिछड़े वर्गों में महत्वपूर्ण पकड़ रखते हैं। ये वोट बैंक कई सीटों पर परिणाम तय कर सकता है। छोटे दल होने के बावजूद इसकी जमीनी पकड़ तेज है। कार्यकर्ता गांव-गांव में सक्रिय रहते हैं, जिससे किसी भी बड़े चुनाव में यह पार्टी समीकरण बदल सकती है। यही कारण है की सुहेलदेव पार्टी समाजवादी और भारतीय जनता पार्टी दो के पास कई बार आती जाती रही है। 2022 में SBSP ने समाजवादी पार्टी (SP) के साथ गठबंधन किया। और 2024 में NDA/BJP के साथ हो गई।

महाराज सुहेलदेव का इतिहास

सुहेलदेव का राजनीतिक महत्व सिर्फ राजभर समाज तक सीमित नहीं है। हाल के सालों में कई दलों ने उनकी विरासत को अपने तरीके से पेश किया है। द हिन्दू पर छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, ऐतिहासिक रिकॉर्ड सुहेलदेव के वर्ण, पहचान और भूमिका के बारे में एकमत नहीं हैं, लेकिन उन्हें आमतौर पर राजभर समुदाय से जोड़ा जाता है, जो एक पिछड़ा वर्ग है।

लोककथाओं और मौखिक परंपराओं में बताया जाता है कि सुहेलदेव ने लगभग 1000 ईस्वी में मुस्लिम आक्रमणकारी सालार ग़ाज़ी मियाँ जो महमूद गजनवी का कथित भतीजा माना जाता है उसको बहराइच क्षेत्र में रोका और क्षेत्र को इस्लामीकरण से बचाया।

RSS द्वारा प्रचारित लोकप्रिय कथा के अनुसार, सुहेलदेव ने सालार ग़ाज़ी को युद्ध में मार गिराया और खुद भी हिंदू धर्म और मंदिरों की रक्षा करते हुए शहीद हुए। मगर इतिहासकार इस पर सहमत नहीं हैं; यह कथा मिथकों, लोकगीतों और कई राजनीतिक व्याख्याओं के कारण लगातार विवादों में रही है।

सुहेलदेव की राजनीति में इसलिए भी वर्चस्व है क्यूंकि सुहेलदेव की छवि ऐतिहासिक या लोककथा आधारित-पूर्वांचल में हिंदू वीर के रूप में स्थापित है। यही कारण है कि BJP, SBSP, बसपा और अन्य क्षेत्रीय दल दशकों से उनकी विरासत को अपने राजनीतिक नैरेटिव में शामिल करते रहे हैं।

क्या सवाल खड़े हो रहे हैं?

इसी पृष्ठभूमि में ओम प्रकाश राजभर द्वारा राष्ट्रीय सुहेलदेव सेना का गठन केवल संगठनात्मक विस्तार नहीं, बल्कि सुहेलदेव की प्रतीकात्मक विरासत को राजनीतिक रूप से नए ढंग से सक्रिय करने का प्रयास भी माना जा रहा है। ये कदम राजनीतिक रूप से सूझबूझ भरा है लेकिन इसके साथ कई सवाल भी जुड़ते हैं।

सवाल उठ रहे हैं की क्या एक मंत्री अपने पद पर रहते हुए वर्दीधारी कैडर बना सकता है? क्या यह युवाओं को रोजगार दिलाने का रास्ता बनेगा या सिर्फ राजनीतिक गतिशीलता का नया मॉडल? क्या ये सेना आने वाले चुनावों में पार्टी की शक्ति-प्रदर्शन का साधन बनेगी? और क्या युवाओं के हाथों में डंडा पकड़ा कर एक राजनितिक पार्टी के लिए काम करना सही है? कहा जा रहा है की राजभर का ये कदम पार्टियों के परंपरागत संगठन मॉडल से हटकर कैडर-आधारित अनुशासन पर जोर देता है। और आखिरी में, परेड, रैंक और सुरक्षा व्यवस्था जैसे तत्व भी कई सवाल खड़े करते हैं- क्या राजनीति इस दिशा में आगे बढ़ना चाहती है?

 

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