राजधानी दिल्ली में ही बीते 10 दिनों के भीतर पांच सफाईकर्मियों की जान चली गई। एक आरटीआई रिपोर्ट बताती है कि जनवरी 2017 से अब तक हर पांचवें दिन एक सफाईकर्मी की मौत हो रही है।
वहीं, वर्ष 2011 में की गई सामाजिक-आर्थिक जाति सूचकांक (एसईसीसी) के मुताबिक महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों के 65 हजार 181 घरों में प्रत्येक में कम से कम एक व्यक्ति सफाईकर्मी था। देश के ग्रामीण इलाकों में मौजूद ऐसे 1 लाख 82 हजार घरों के हिसाब से यह संख्या 35 फीसदी है और यह आंकड़े सर्वाधिक हैं।
हालांकि एसईसीसी के आंकड़ों में शहरी भारत को शामिल नहीं किया गया है, जहां पर सीवर की सफाई अक्सर होती है। इस सूची में मध्य प्रदेश दूसरे नंबर पर है और यहां 23 हजार 105 घरों में प्रत्येक में कम से कम एक व्यक्ति सफाईकर्मी है।
जबकि राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (एनसीएसके) ने जारी किए गये आंकड़ों के अनुसार, पिछले 25 साल में सेप्टिक टैंकों और सीवरों की पारंपरिक तरीके से सफाई के दौरान 634 सफाई कर्मचारियों की जान जा चुकी है।
आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 1993 से लेकर अब तक देशभर में सेप्टिक टैंकों और सीवर की पारंपरिक तरीके से सफाई के दौरान 634 सफाई कर्मचारियों की मौत हुई है। 194 लोगों की मौत के आंकड़े के साथ तमिलनाडु में इस तरह की सर्वाधिक मौतें हुई हैं। इसके बाद गुजरात में 122, कर्नाटक में 68 और उत्तर प्रदेश में 51 सफाईकर्मियों की जान गई।
दिल्ली में 1993 से लेकर अब तक सीवर और सेप्टिक टैंकों की पारंपरिक तरीके से साफ-सफाई के दौरान 33 लोगों की मौत हुई है।