सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि एससी-एसटी आरक्षण में भी क्रीमीलेयर का सिद्धांत लागू होगा।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने कहा कि एससी-एसटी सबसे पिछड़े समाज के हैं और उन्हें पिछड़ा माना जा सकता है।
कोर्ट ने कहा कि आरक्षण का उद्देश्य यह देखना है कि पिछड़े वर्ग के नागरिक आगे बढ़ें ताकि वे भी समान आधार पर भारत के अन्य नागरिकों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकें।
पीठ ने कहा, ‘यह संभव नहीं होगा अगर उस वर्ग के भीतर सिर्फ क्रीमीलेयर सरकारी क्षेत्र में प्रतिष्ठित नौकरियां हासिल कर ले और अपनी स्थिति सुदृढ़ कर ले जबकि वर्ग के शेष लोग पिछड़े ही बने रहें, जैसा कि वे हमेशा से थे।’
जस्टिस नरीमन ने 58 पन्नों का सर्वसम्मति से दिया गया फैसला पढ़ा। फैसले में उन्होंने कहा कि ‘एससी-एसटी सर्वाधिक पिछड़े या समाज के कमजोर तबके में भी सबसे अधिक कमजोर हैं’ और उन्हें पिछड़ा माना जा सकता है। पीठ ने कहा कि पदोन्नति दिये जाने के समय हर बार ‘प्रशासन की दक्षता’ देखनी होगी।
कोर्ट ने कहा, ‘यह स्थिति होने के मद्देनजर यह साफ है कि जब अदालत एससी-एसटी पर क्रीमीलेयर का सिद्धांत लागू करती है तो वह भारत के संविधान के अनुच्छेद 341 या 342 (एससी-एसटी से संबंधित) के तहत राष्ट्रपति की सूची के साथ किसी भी तरीके से छेड़छाड़ नहीं करती है।’
बता दें, क्रीमीलेयर’ शब्द अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के अपेक्षाकृत अमीर और बेहतर शिक्षित समूहों को संबोधित करता है, जो सरकार प्रायोजित शैक्षिक और पेशेवर लाभ कार्यक्रमों के योग्य नहीं माने जाते हैं।
वर्तमान नियमों के अनुसार, ओबीसी वर्ग के केवल वैसे उम्मीदवार जिनकी पारिवारिक आमदनी 6 लाख से कम है आरक्षण के हकदार हैं। हालाँकि पारिवारिक आमदनी की सीमा को बढ़ाकर हाल ही में 8 लाख कर दिया गया है।