खबर लहरिया Blog Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने मतपत्र (बैलेटपेपर) के सुझाव को वापस लाने की याचिका को किया खारिज

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने मतपत्र (बैलेटपेपर) के सुझाव को वापस लाने की याचिका को किया खारिज

मतपत्र से चुनाव के सुझाव को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा कि “भारत में चुनाव कराना एक बहुत बड़ा काम है। किसी भी यूरोपीय देश के लिए इसका संचालन करना संभव नहीं है। जर्मनी और अन्य देशों से उपमाएँ और तुलनाएँ न निकालें।”

Supreme Court rejects petition to bring back the suggestion of ballot paper.

                                                        EVM की तस्वीर (फोटो साभार – सोशल मीडिया)

चुनाव में मतदान का सही तरीका क्या होना चाहिए? इसके लिए सबसे सुरक्षित और विश्वसनीय विकल्प कौन-सा होना चाहिए? इस मुद्दे पर बहस हमेशा बनी रहती है। सुप्रीम कोर्ट में बैलेट पेपर वापस लाने के सुझाव की याचिका को कल मंगलवार 16 अप्रैल को खारिज कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि “वह यह नहीं भूली है कि मतपत्रों के युग में क्या होता था।”

चुनाव के समय में ईवीएम अकसर सवाल के घेरे में आ जाता है कि वोट सही से दिया गया है की नहीं? ऐसे में विपक्ष भी अकसर इस मुद्दे को उठाते हैं कि ईवीएम में हुई गड़बड़ी से चुनाव में जीत हासिल हुई है। लोगों का मानना भी है कि पहले समय में बैलेट पेपर मतलब पर्ची द्वारा वोट देना सबसे अच्छा था और उसी पर हमें भरोसा भी है। कुछ पार्टियों का भी यही मानना है कि ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) में हुई गड़बड़ी से ही चुनाव में जीत मिलती है। जनता वोट किसी को देती है और वोट चला किसी और पार्टी को जाता है इसलिए बैलेट पेपर ही सही विकल्प हो सकता है।

इसी विषय में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) से डाले गए वोटों के क्रॉस-सत्यापन की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई की थी।

एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) पर डाले गए वोटों का वीवीपीएटी प्रणाली के माध्यम से निकलने वाली कागज की पर्चियों से जाँच की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को मतदान पद्धति की समस्याओं की ओर इशारा किया। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने कागजी मतपत्रों से होने वाले मतदान के मुद्दों पर बात की।

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ईवीएम मतदान प्रणाली पर सवाल

ईवीएम मतदान प्रणाली के बारे में हमेशा से विपक्ष के सवालों से याचिकाओं में हर वोट के क्रॉस-वेरिफिकेशन की मांग की जाती रही है। जानकारी के अनुसार याचिकाएं एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स वकील प्रशांत भूषण (एडीआर) और कार्यकर्ता अरुण कुमार अग्रवाल की ओर से दायर की गई हैं। अरुण अग्रवाल ने सभी वीवीपीएटी पर्चियों की गिनती की मांग की थी।

क्या है वीवीपीएटी (वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल)

वीवीपैट पर्ची मतदाता की पर्ची से यह देखने में आसानी होती कि वोट सही तरीके से डाला गया था। वह जिस उम्मीदवार को वोट देना चाहतें हैं उसे गया है। वीवीपैट से एक कागज की पर्ची निकलती है जिसे सीलबंद लिफाफे में रखा जाता है। विवाद होने पर उसे खोला जा सकता है।

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न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने मतपत्र पर जताया अविश्वास

इस याचिका में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने याचिकाकर्ताओं में से एक जोकि एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के वकील प्रशांत भूषण है। उन्होंने कहा कि, “हम 60 के दशक में हैं। हम सभी जानते हैं कि जब मतपत्र थे, तो क्या हुआ था। आप भी जानते होंगे, लेकिन हम नहीं भूले हैं।”

जर्मनी देश जो ईवीएम से फिर से मतपत्र पर आ गए हैं उन देशों का दिया हवाला

वकील प्रशांत भूषण ने जर्मनी का उदाहरण देते हुए कहा कि “अधिकांश यूरोपीय देश, जो ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) के साथ मतदान के लिए गए थे, पेपर मतपत्र प्रणाली में वापस आ गए हैं।”

न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता ने सवाल किया कि “जर्मनी की जनसंख्या कितनी है?

वकील भूषण ने कोर्ट कहा कि जर्मनी की आबादी करीब 6 करोड़ है, जबकि भारत में 50-60 करोड़ वोटर हैं।

न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, “पंजीकृत मतदाताओं की कुल संख्या सत्तानवे करोड़ है। हम सभी जानते हैं कि जब मतपत्र थे तो क्या हुआ था।”

सुझाव को किया खारिज

मतपत्र से चुनाव के सुझाव को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा कि “भारत में चुनाव कराना एक बहुत बड़ा काम है। किसी भी यूरोपीय देश के लिए इसका संचालन करना संभव नहीं है। जर्मनी और अन्य देशों से उपमाएँ और तुलनाएँ न निकालें। जर्मनी एक बहुत छोटा राज्य है… हमें किसी पर कुछ भरोसा और भरोसा रखना होगा। बेशक, वे जवाबदेह हैं… लेकिन इस तरह सिस्टम को गिराने की कोशिश न करें।”

अब इस मामले की सुनवाई 18 अप्रैल (गुरुवार) को होगी।

 

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