सुनवाई के दौरान सीजीआई खन्ना ने चुनाव आयोग के वकील व वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह से कहा कि अप्रैल 2024 के फैसले का उद्देश्य ईवीएम से वोटिंग का डाटा मिटाना या उसे फिर से लोड करना नहीं था। आगे कहा, सुप्रीम कोर्ट का आदेश यह था कि चुनाव के बाद ईवीएम मशीन की जांच और सत्यापन एक इंजीनियर द्वारा करवाई जाए, जो ईवीएम निर्माता कंपनी से हो।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार 11, फरवरी को एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) नामक गैर-सरकारी संगठन द्वारा दायर याचिका पर चुनाव आयोग से जवाब मांगा है।
संगठन द्वारा चुनाव आयोग से यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की जल चुकी मेमोरी और सिंबल लोडिंग यूनिट्स की जांच करने की अनुमति दी जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को यह हिदायत भी दी कि जब तक इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की जांच की जा रही है, इस दौरान यह निश्चित किया जाए कि डाटा को मिटाना नहीं है या उसे दोबारा लोड नहीं करना है।
रिपोर्ट्स के अनुसार, मामले की अगली सुनवाई 3 मार्च को होनी है।
ईवीएम में ‘जली हुई मेमोरी’ क्या होती है?
ईवीएम में ‘जली हुई मेमोरी’ का मतलब उसे हिस्से से होता है जहां वोटिंग डाटा को संगठित या एकत्र किया जाता है। जब किसी भी वजह से यह मेमोरी जल जाती है या खराब हो जाती है तो उसमें रखा डाटा खो भी सकता है या स्थायी रूप से नष्ट हो सकता है।
ईवीएम में ‘सिंबल लोडिंग यूनिट्स’ क्या होते हैं?
ईवीएम में ‘सिंबल लोडिंग यूनिट्स’ वे उपकरण होते हैं, जिसका उपयोग चुनाव चिन्हों को मशीन में लोड (भरने) करने के लिए किया जाता है। ये यूनिट्स वोटिंग मशीन में अलग-अलग उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्हों को निर्धारित करने के लिए ज़िम्मेदार होती हैं। इन यूनिट्स का मुख्य काम यह सुनिश्चित करना होता है कि सही चुनाव चिन्ह, सही उम्मीदवार के लिए दिखाई दे और मतदाता उसकी पहचान आसानी कर सके।
चुनाव आयोग पर आदेश के अनुसार जांच न करने का आरोप
संगठन ने अपनी दायर याचिका में कहा कि चुनाव आयोग द्वारा इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की जांच सुप्रीम कोर्ट के अप्रैल 2024 के आदेश के अनुसार नहीं है, जो ईवीएम और वीवीपैट मामले से जुड़ा हुआ था।
मुख्य न्यायधीश संजीव खन्ना और न्यायधीश दीपांकर दत्ता की बेंच द्वारा इस याचिका पर सुनवाई की गई।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, सुनवाई के दौरान सीजीआई खन्ना ने चुनाव आयोग के वकील व वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह से कहा कि अप्रैल 2024 के फैसले का उद्देश्य ईवीएम से वोटिंग का डाटा मिटाना या उसे फिर से लोड करना नहीं था। आगे कहा, सुप्रीम कोर्ट का आदेश यह था कि चुनाव के बाद ईवीएम मशीन की जांच और सत्यापन एक इंजीनियर द्वारा करवाई जाए, जो ईवीएम निर्माता कंपनी से हो।
ईवीएम को लेकर अदालत का अप्रैल 2024 का आदेश
26 अप्रैल 2024 के अपने आदेश में, सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव में दूसरे और तीसरे पायदान पर आये उम्मीदवारों को कुछ विकल्प दिए थे। इसके अनुसार, उम्मीदवार हर विधानसभा क्षेत्र में 5 प्रतिशत ईवीएम की जल चुकी मेमोरी/ माइक्रो कंट्रोलर को ‘चुनाव परिणामों की घोषणा के बाद”, ईवीएम निर्माता कंपनी के इंजीनियरों की टीम से जांच या सत्यापन करवा सकते हैं।
इसके लिए उम्मीदवार को चुनाव आयोग को लिखित रूप से पत्र लिखकर अनुरोध करना होगा। इसके लिए उम्मीदवार को तय शुल्क भी देना होगा, जो चुनाव आयोग द्वारा बताया जाएगा।
याचिकाकर्ता के वकील अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने मंलगवार को कहा कि चुनाव आयोग सिर्फ ईवीएम की जांच के लिए मॉक पोल (नकली मतदान) करता है। “हम चाहते हैं कि कोई व्यक्ति ईवीएम के सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर की जांच करे ताकि यह देखा जा सके कि उसमें किसी तरह की छेड़छाड़ का तत्व है या नहीं।”
ईवीएम जांच को लेकर हलफ़नामा पेश करने का आदेश
बेंच ने चुनाव आयोग के वकील सिंह से कहा कि ईवीएम की जांच के लिए जो 40,000 रूपये का शुल्क तय किया गया है, वह बहुत ज़्यादा है। इसका शुल्क कम किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को आदेश दिया कि ईवीएम की जांच के लिए अपनाये गए मानक संचालन प्रक्रियाओं को स्पष्ट करते हुए उनकी तरफ से एक संक्षिप्त हलफ़नामा दाखिल किया जाए। इसके साथ ही अदालत ने यह भी रिकॉर्ड किया कि चुनाव आयोग के बयान के अनुसार, ईवीएम डाटा में कोई संसोधन या सुधार नहीं किया जाएगा।
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