खबर लहरिया Blog Supreme Court on ‘Bulldozer Justice’ : ‘अगर कोई अपराधी है तब भी उसका घर नहीं तोड़ा जा सकता’ – सुप्रीम कोर्ट, दिशानिर्देश लागू करने की भी कही बात

Supreme Court on ‘Bulldozer Justice’ : ‘अगर कोई अपराधी है तब भी उसका घर नहीं तोड़ा जा सकता’ – सुप्रीम कोर्ट, दिशानिर्देश लागू करने की भी कही बात

न्यायमूर्ति गवई ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, “केवल इसलिए घर को कैसे ध्वस्त किया जा सकता है क्योंकि वह आरोपी है? दोषी पाए जाने पर भी घर को ध्वस्त नहीं किया जा सकता है। एससी बार को बताने के बाद भी… हमें रवैये में कोई बदलाव नहीं दिख रहा है।” – जस्टिस गवई ने मुस्लिम स्कॉलर के संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।

Supreme Court on 'Bulldozer Justice': 'No demolition even if someone is convicted'

                                                                                                    बुलडोज़र से लोगों के घर गिराये जाने की सांकेतिक तस्वीर ( फोटो साभार – नईम अंसारी/ ANI)

बुलडोज़र कार्यवाही व तथाकथित बुलडोज़र न्याय (bulldozer justice) को चुनौती देनी वाली याचिका पर सोमवार, 2 सितंबर को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति किसी क्राइम के लिए दोषी पाया भी जाता है तब भी घर या उनकी संपत्ति को तोड़ा नहीं जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने “बुलडोजर न्याय” की आलोचना करते हुए कहा कि उनके द्वारा इन मुद्दों से निपटने के लिए दिशा-निर्देश ज़ारी किया जाएगा। जस्टिस बीआर गवई व जस्टिस केवी विश्वनाथन (BR Gavai and KV Viswanathan) की बेंच ने कहा।

न्यायमूर्ति गवई ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, “केवल इसलिए घर को कैसे ध्वस्त किया जा सकता है क्योंकि वह आरोपी है? दोषी पाए जाने पर भी घर को ध्वस्त नहीं किया जा सकता है। एससी बार को बताने के बाद भी… हमें रवैये में कोई बदलाव नहीं दिख रहा है।” – जस्टिस गवई ने मुस्लिम स्कॉलर के संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद (Jamiat Ulama-e-Hind) द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।

बता दें, सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर 17 सितंबर को फिर से सुनवाई करेगा।

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घर धवस्त करने के मामलों पर दायर दो याचिकाओं पर सुनवाई

Supreme Court on 'Bulldozer Justice': 'No demolition even if someone is convicted'

                                                                                   जस्टिस बीआर गवई व जस्टिस केवी विश्वनाथन की तस्वीर ( फोटो साभार – बार एन्ड बेंच)

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत द्वारा ऐसे दो मामलों की सुनवाई की जा रही थी जिसमें बिना किसी सूचना के व ‘बदले’ के रूप में निर्माण ध्वस्त करने का आरोप लगाया गया था।

याचिकाएं राजस्थान के राशिद खान और मध्य प्रदेश के मोहम्मद हुसैन ने दायर की थीं।

रिपोर्ट के अनुसार, उदयपुर के 60 वर्षीय ऑटो-रिक्शा चालक खान के आवेदन में कहा गया है कि 17 अगस्त, 2024 को उदयपुर जिला प्रशासन ने उनके घर को ध्वस्त कर दिया था।

ऐसा तब हुआ जब उदयपुर में सांप्रदायिक झड़पें भड़क उठी थीं व कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया था। जानकारी के अनुसार, इसमें एक मुस्लिम स्कूली छात्र द्वारा कथित तौर पर हिंदू सहपाठी को चाकू मारने के बाद उसकी मौत हो गई थी। इसके बाद निषेधाज्ञा जारी कर बाजार बंद कर दिया गया था।

रिपोर्ट के अनुसार, खान आरोपी स्कूली छात्र के पिता हैं।

इसी तरह, मध्य प्रदेश के मोहम्मद हुसैन ने आरोप लगाया कि उनके घर और दुकान पर राज्य प्रशासन द्वारा अवैध रूप से बुलडोजर चलाया गया था।

बता दें, क्षेत्र में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच हिंसा के बाद हरियाणा के नूंह में मुस्लिम घरों को तोड़े जाने के खिलाफ जमीयत उलेमा आई हिंद ( Jamiat Ulama I Hind ) द्वारा दायर एक मामले में दोनों आवेदन दायर किए गए थे।

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घर तोड़े जाने को लेकर याचिकाकर्ताओं के वकील का कहना

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व (जमीयत उलमा ए हिंद का प्रतिनिधित्व) कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे (Senior Advocate Dushyant Dave) ने कहा कि 2022 के दंगों के तुरंत बाद दिल्ली में कई घरों को ध्वस्त कर दिया गया था, यह आरोप लगाते हुए कि उनमें रहने वाले लोगों द्वारा हिंसा भड़काई गई थी।

उन्होंने दिल्ली के जहांगीरपुरी में बुलडोज़र द्वारा लोगों के घर तोड़े जाने को लेकर भी उदाहरण दिया।

“16 अप्रैल को विरोध प्रदर्शन के लिए अनुमति मांगी गई थी…लेकिन उसके लिए इंकार कर दिया गया था..तब भी उन्होंने ऐसा किया। फिर अधिकारियों ने संपत्तियों को ध्वस्त करने के लिए और लोगों की मांग की..क्या यह उचित है?…कल्पना कीजिए, एक किरायेदार का घर जो संपत्ति का मालिक भी नहीं है, उसके घर को ध्वस्त कर दिया” – तर्क देते हुए कहा।

वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता चंदर उदय सिंह (Senior Advocate Chander Uday Singh) ने उदयपुर के एक मामले का हवाला देते हुए कहा कि वहां एक व्यक्ति का घर इसलिए तोड़ दिया गया क्योंकि किरायेदार के बेटे पर अपराध का आरोप था।

न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने कहा कि “किसी को भी कमियों (कानूनी व्यवस्था) का फायदा नहीं उठाना चाहिए।” आगे कहा कि “एक पिता का एक जिद्दी बेटा हो सकता है, लेकिन अगर इस आधार पर घर को ध्वस्त कर दिया जाता है… तो यह कोई तरीका नहीं है।”

“कानून के अनुसार” ही तोड़े जाएं अनधिकृत निर्माण – जस्टिस गवई

केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Solicitor General Tushar Mehta) ने दलील दी कि कानून का उल्लंघन होने पर घर तोड़े जा रहे हैं। आगे कहा, “हम तभी कार्यवाही करते हैं जब नगरपालिका कानून का उल्लंघन होता है।”

सॉलिसिटर जनरल की इस दलील पर पीठ ने जवाब देते हुए कहा कि, ”लेकिन शिकायतों को देखते हुए हमें लगता है कि उल्लंघन हुआ है।” न्यायमूर्ति गवई ने कहा, “हालांकि यह कानून की स्थिति है, इसका उल्लंघन करते हुए इसका अधिक पालन किया जा रहा है”, यह भी कहा कि यदि निर्माण अनधिकृत है, तो इसे “कानून के अनुसार” होना चाहिए।

न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने कहा कि पूरे राज्य में अनधिकृत इमारतों को गिराने के लिए एक दिशानिर्देश लागू करने की आवश्यकता है। न्यायमूर्ति गवई ने कहा, “सुझाव आने दीजिए। हम अखिल भारतीय आधार पर दिशानिर्देश जारी करेंगे।”

पीठ ने आगे यह भी कहा, “अचल संपत्तियों को केवल प्रक्रिया के आधार पर ध्वस्त किया जा सकता है… हलफनामा भी दायर किया गया है… हम अखिल भारतीय आधार पर कुछ दिशानिर्देश बनाने का प्रस्ताव करते हैं ताकि उठाए गए मुद्दों के संबंध में चिंताओं का ध्यान रखा जा सके।”

‘बुलडोज़र जस्टिस’ के नाम पर लोगों के घर तोड़े जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अगली चर्चा आने वाले दिनों में की जायेगी।

 

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