किसानों का कहना है कि कभी उन्हें बारिश न होने से फसल का डर सताता है तो कभी अन्ना जानवरों द्वारा फसल बर्बाद कर देने का। अगर प्रशासन उनके लिए जल्द कोई व्यवस्था नहीं करती तो उनकी बची हुई फसल भी नष्ट हो जायेगी।
बुंदेलखंड| बांदा जिले के किसान इस समय अन्ना जानवरों से बेहद ज़्यादा परेशान हैं। खेतों में उन्होंने धान, ज्वार, अरहर व मूंग की फसल लगाई हुई है जो पूरी तरह से जम चुकी है। अन्ना जानवरों से अपनी फसलों को बचाने के लिए किसान रातभर पहरा देने को मज़बूर हैं। यहां तक कि वे बुआई से पहले ही खेतों में झोपड़ी बनाकर तैयार कर लेते हैं ताकि वे अपनी फसलों की रखवाली कर सकें। ऐसे में सवाल सरकार द्वारा शुरू की गई गौशाला योजनाओं पर खड़ा होता है कि करोड़ों की योजनाओं के बावजूद जानवर खुलेआम बिना किसी व्यवस्था के क्यों घूम रहे हैं? आखिर किसान कब तक अपनी फसलों को लेकर असुरक्षित महसूस करता रहेगा?
फतेहगंज के किसान बल्देव का कहना है कि यह बांदा जिले का सबसे पिछड़ा क्षेत्र है, जो पहाड़ों और जंगल से घिरा हुआ है। यहां पर एक ही फसल होती है क्योंकि सिंचाई का कोई खास साधन नहीं है। यहां ज्वार, उड़द, मूंग, बाजरा यही चीजें होती हैं। पहले बारिश नहीं हो रही थी, अब बारिश हुई और लगभग 10 हज़ार रूपये खर्च करके बुआई की तो अब रात दिन अन्ना जानवरों का आतंक मचा हुआ है।
यही नहीं खुलेआम घूम रहे अन्ना जानवरों से कई सड़क दुर्घटनाएं हो जाती हैं, जाम लग जाता है जिससे आम जनता भी परेशान रहती है। आरोप लगाते हुए कहा कि चाहें कितनी भी दुर्घटनाएं हो जाए, किसी अधिकारी को कोई भी फर्क नहीं पड़ता है। किसान आये दिन धरना प्रदर्शन करते हैं, ज्ञापन देते हैं पर कुछ नहीं होता। खामियाज़ा आख़िरकार किसान और आम जनता को ही भुगतना पड़ता है।
किसानों का कहना है कि कभी उन्हें बारिश न होने से फसल का डर सताता है तो कभी अन्ना जानवरों द्वारा फसल बर्बाद कर देने का। अगर प्रशासन उनके लिए जल्द कोई व्यवस्था नहीं करती तो उनकी बची हुई फसल भी नष्ट हो जायेगी। वे भुखमरी की कगार पर आ जाएंगे, वैसी भी क़र्ज़ का बोझ उतरने का नाम नहीं ले रहा।
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अन्ना जानवरों पर काबू पाने हेतु प्रशासन से गुहार
किसान यूनियन के नरैनी तहसील अध्यक्ष दिनेश कुमार पटेल ने खबर लहरिया को बताया, इन दिनों किसान अन्ना जानवरों के आतंक से परेशान होकर लगातार प्रशासन से अपनी फसल को बचाने की गुहार लगा रहे हैं। सरकार द्वारा जिले में 3 सौ से ज़्यादा गौशाला संचालित की गई हैं जिस पर करोड़ों का बजट भी खर्च होता है। इसके बावजूद भी अन्ना जानवरों का आतंक कम नहीं हो रहा। यही वजह है कि किसान अपनी फसल की रात दिन रखवाली करने के बावजूद भी पूरी फसल नहीं प्राप्त कर पातें।
समस्या को लेकर पशुपालन विभाग चित्रकूटधाम मंडल बांदा के उप निदेशक मनोज अवस्थी ने हमें बताया, जिले में लक्ष्य से अधिक पशु गोवंश संरक्षण केंद्रों पर रखे गए है और उनके खाने-पीने की व्यवस्था भी की गई है। जो पशु गांव और सड़क पर घूमते नज़र आ रहे हैं, वे लोगों के पालतू हैं। लोग दूध निकालकर उन्हें खुला छोड़ देते हैं। अगर गौशाल के जानवर कहीं पर हैं तो वह उसकी जांच करेंगे व व्यवस्था कराएंगे। आगे बताया, बांदा जिले में लगभग 315 गौशाला हैं जिसमें लगभग 2 लाख जानवर रखे गए हैं।
सरकार व नियुक्त अधिकारी दोनों ही करोड़ों के बजट से बनी गौशालाओं की बात करते हैं लेकिन जब उन गौशालाओं में जानवर ही नहीं तो उनका क्या मतलब? क्या मतलब जब वे जानवर सड़क पर जाम लगा देते हैं, दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं, खुद भी दुर्घटना का शिकार होते हैं व किसानों की फसलें बर्बाद कर देते हैं, इतना की उनकी जीविका पर सवाल खड़ा हो जाता है। आखिर ये कौन-सी व्यवस्थाएं हैं जिनकी बात की जाती हैं? अतः, इन बातों से परे हर चीज़ का भुगतान आम जनता पर ही आता है। ये कैसी व्यवस्था, ये कैसा काम?
इस खबर की रिपोर्टिंग गीता देवी द्वारा की गई है।
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