बुंदेलखंड का किसान अन्ना जानवर से लेकर बेहद परेशान हो चुका था। इससे निपटने के लिए सरकार ने हर गांव में आस्थाई और ग्राम पंचायत में स्थाई गौशाला बनवाई है। जिसके लिए सरकार ने करोड़ों करोड़ों रुपए का बजट भी दिया था। जिससे गौशाला में अन्ना जानवरों को रखकर उनकी देखरेख की जा सके। अन्ना जानवर भूख से ना मारे। पर अगर देखा जाए तो यह सारा बजट एक तरह से बंदरबांट होता हुआ नजर आया है।
कई गौशालाओं में तो भूसा या पानी की व्यवस्था नहीं है, जानवर भूखों मर रहे हैं तो कहीं पर देखने के लिए नाम मात्र के लिए गायों को रखा गया है। जिसके चलते आज भी किसान परेशान हैं। यह हम नहीं बल्कि शासन से आया आदेश कह रहा है। अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा तो सरकार ने आदेश नहीं दिया है। तो आइए हम आपको उस आदेश के बारे में भी बताते हैं।
27 जून को महोबा जिला अधिकारी अवधेश तिवारी के द्वारा एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई थी। जिसमें यह कहा गया था कि जो भी किसान अपने खेत में ब्लेड वाला तार बारी किए हुए हैं वह हटा लें। अगर नहीं हटाया गया तो उसके खिलाफ पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 तथा उ०प्र० गोवध अधिनियम 1955 यथासंशोधित के प्राविधानानुसार किसानों के खिलाफ कार्यवाही अमल में लायी जायेगी।
गहरा गाँव के किसान मोतीलाल बताते है कि जब सरकार ने करोड़ों रुपए दिया है अन्ना जानवरों को रखने के लिए तो वह बजट कहा गया। हम लोग तो रातदिन अन्ना जानवरो से परेशान है। हमे अपनी फसल बचानी है तो अपने खेत में तार बारी लगाते है। जब अन्ना जानवर ही नही होगा तो हम लोग क्यों तार बारी लगाएगे। जब अन्ना जानवर ही नही होगा तो हमे किसका डर है। और अगर सरकार या प्रशासन को कार्यवाही करनी ही है तो ग्राम प्रधान या सचिव के खिलाफ होना चाहिए। जब खेत में अन्ना जानवर ही नहीं होगा तो हम लोग क्यों रात को जागेगे और क्यों अपनी फसल बचाने के लिए तार बारे का इस्तेमाल करेंगे।
परसाहा गाँव का किसान मूलचंद्र का कहना है कि अगर हम कटीले तारों का इस्तेमाल कर रहे हैं तो जानवर तोड़ कर अंदर चले जाते हैं, और अगर एक रात में एक जानवर ही खेत में घुस गया तो पूरी फसल और हमारी साल की मेहनत चौपट हो जाती है। जिससे हमारे बच्चे भुखमरी के कगार पर आ जाएंगे। वैसे भी हमें कभी भी सुकून नहीं मिलता है। कभी ओलावृष्टि होती है तो कभी सूखा पड़ जाता है तो कभी पाला पड़ने से फसल बर्बाद हो जाती है। और अगर थोड़ी बहुत फसल बचती है तो अन्ना जानवर खा जाते है। जब हमने सुना था कि गांव में गौशाला बन रहे हैं अन्ना जानवरों की व्यवस्था हो रही है तो मन में बहुत खुशी हुई थी यह था कि अब हमें रात में नहीं जागना पड़ेगा हम लोग थोड़ा बहुत मजदूरी भी कर पाएंगे, परिवार चला पाएंगे।
छानी कला गाँव का किसान रामसेवक ने कहा कि सरकार ने इतना सारा बजट भेजा पर कुछ पता नहीं चल रहा है कहां गया है।क्योंकि अन्ना जानवर से तो हम वैसे भी परेशान हैं । सरकार भी तरह-तरह के हम गरीबों के लिए नियम कानून निकालती है सरकार को यह सोचना चाहिए कि जब करोड़ों रुपए आया है तो अन्ना जानवर क्यों घूम रहा है। अगर किसी का घरेलू जानवर है तो उसको जानवर मालिक के ऊपर कार्यवाही करने का आदेश देना चाहिए, हम किसानों पर क्यों। और अगर वह अन्ना जानवर है तो उसको प्रधान सचिव के द्वारा गौशाला में बंद करवाना चाहिए। अगर यह सारी व्यवस्था हो जाएंगी तो कोई भी किसान तार बारी नहीं करेगा वैसे भी हमें तार बारी करने में कौन से फायदा है। हमारा तो हजारों रुपये बर्बाद होता है, रातों की नींद चौपट हो जाती है, दिन को सुकून से खाना खाने घर नहीं जा पाते हैं अगर जाते हैं तो खेत की फसल पर दिमाग रखा रहता है।
छानी गाँव के किसान फत्ते प्रजापति ने बताया कि पूरी साल हमने अपने से जानवरो की ब्यवथा की है। गाँव के ही लोग जानवरो को इकट्ठा करके चराते थे। गौशाला नाम मात्र के लिए बनी थी। दस बीस जानवर अगर बंद कर दिए तो वहाँ खाने पीने की सुविधा न होने के कारण जानवर मर रहे थे इसलिए उन्हें भी छोड़ दिया था। अब सवाल ये उठ रहा है कि आख़िर सरकार का भेजा हुआ बजट कहा गया, क्यों की हर रोज जानवरो के मरने की ख़बर आई है।
सरकार बड़े बड़े दावा करती है सबके साथ सबके विकास की, पर यहां पर किसका विकास हो रहा है। किसान तो वैसे भी परेशान है। गाय को माता कहने वाले कभी भी नजर नही आते जब गाय मर रही होती है।
-सीनियर रिपोर्टर सुनीता प्रजापति