अक्सर हमे सुनने को मिलता है महिलाएं कामचोर होती हैं नजाकत दिखाती हैं। गांव की भाषा मे कहते हैं महिलाएं चौरा करती रहती हैं यानी महिलाएं इकट्ठा होकर पंचायत करती हैं। इन सब बातों से तो यही साबित होता है की जैसे महिलाएं कुछ करती ही नहीं सिर्फ फालतू हैं और बातों मे समय बर्बाद करती हैं। इन सब बातो को देखते सुनते हुए और दिसम्बर, जनवरी, फरवरी की ठंड मे जब हमने देखा ठंड इतनी ज्यादा हो रही है। ज्यादातर पूरूष जो जाब करते हैं वो तो सोकर 9 बजे उठते हैं।
उठते ही चाय नाश्ता चाहिए फिर निकल जाते हैं आफिस वहां उन्हें सुविधाएं भी मिलती हैं। जो ग्रामीण स्तर के लोग हैं वहां भी पूरूषो का ठंड मे देर तक सोना उठकर आग जलाकर बैठ जाना लेकिन महिलाएं शहर की हो या गांव की काम उन्हें सुबह से उठकर ही करना पडता है। हमने गांव की महिलाओं से बात की उनके काम को लेकर उन्होंने बताया सुबह 4,5 बजे उठती हैं। बरतन धोती हैं ठंडे पानी से साफ सफाई करना जानवरों को भूसा देना गोबर उठाना। पानी भरना और फिर रसोई मे तो बिना नहाए जाना भी नहीं है।
सुबह नहाना भी ,फिर खाना बनना फिर खेत मे जाना चारा काटना सारा दिन काम मे हो जाता है। ये सारे काम पानी से ही होते और इतना पानी का काम गर्म पानी करके तो नहीं करेंगे उन्होंने ये कहा अगर हम इतने कामो के लिए पानी गर्म करेंगे तो काम ही नहीं हो पाएगा सुबह उठते ही हम काम मे लग जाते हैं। कितना पानी गर्म करेंगे इसलिए हम अपने काम को देखते हुए कभी कभार गर्म कर लेते हैं। पानी ज्यादातर तो हम ठंडे पानी से ही काम करते हैं। ठंड की वजह से हांथ सुन्य हो जाते हैं लेकिन करे क्या काम तो हमे ही करना हैं । घर बच्चे परिवार की जिम्मेदारी हमे ही तो उठानी है।