जिला वाराणसी मे जहाँ बेटिया माँ बाप के लिये बोझ लगती है वही जलारीपुरा की कंचन जायसवाल अपने परिवार और समाज के लिए एक मिसाल है कंचन जायसवाल का कहना है कि हम तो शादीशुदा औरत है परन्तु पति से कोई कोई मतलब नही है सादी को 12. साल हुआ और पति से आपसी मतभेद के चलते पति से उनका मतलब नही है लेकिन जो जो भारतीय नारी और भारतीय संस्कृति जो है |
आज भी उनके नाम से सिन्दुर सुशोभित होता है पहले तो नवयुग इंग्लिश स्कुल मे कैटीन चलाकर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करती थी परन्तु लाँक डाउन ने यह सहारा भी छीन लिया और परिवार की इसथी बहुत ही खराब होगया था एक तो घर का किराया देना माँ को दवा और खाने के लिये भी घर मे कुछ नही था तो एक दो लोगो ने मदद किया और कही काम भी ही मिल रहा था और जैसे लग रहा था कि अब किया करे और कैसे चलेगा परिवार जहा आज थोडी सी परेशानी होने पर लोग गलत कदम उठा लेते है पर खुदगज लेकिन हमने ऐसा नही किया और मेहनत करना मुनासिब समझा और ई रिकासा चला कर अपनी और अपने परिवार की जरुरत की पुति कर थही है |
उनके अनुसार जितनी मेहनत से मिल जा रहा है उसी मे गूजारा कर रही हू ई रिक्सा किराया पर लेकर चलाती हु और 100.प्रतिदिन देना पडता है और मेहनत कर के दो सौ और तीन सौ रूपये बचा लेती हु और उसी मे घर का किराया खाना पानी और माँ की दवाई भी करती हु और अभी तक सरकारी योजना द्बारा एक राशन मिलता है और कोई लाभ नही मिलता है आवास के लिए कई बार फाँम भरा गया लेकिन कोई सुनवाई नही है |
असल मे सरकारी योजना उन्ही को मिलती है जो पैसा घूस दे सकते है मेरे पास इतना पैसा नही है इसी लिए सरकार के भरोसे रहती तो भूखे मरने की नौबत आ जाती इस लाक डाउन मे मेरे आस पास पडोस के लोगो ने मदद किया और मुझे मेहनत करने मे कोई शम नही है और मुझे डर भी नही लगता है लोग मुझे देख कर अचंभित होते है तरह तरह की बात करते पर मेरा काम मेरे लिए सवोपरि है क्योकि मेरे लिए मेरे परिवार के आजीविका का साधन है