खबर लहरिया Blog Ramabai Ambedkar: रमाबाई का अपने जीवन में ‘नायिका’ हो जाने की कहानी 

Ramabai Ambedkar: रमाबाई का अपने जीवन में ‘नायिका’ हो जाने की कहानी 

रमाबाई ने ही भीम राव अंबेडकर को बनाया। उन्होंने ही उस लड़ाई की नींव को मज़बूती से बनाये रखा जिसकी बदौलत आज हम अपने अधिकारों को अपनाने के साथ, उसका उपयोग कर पा रहे हैं। 

                                                                     रमाबाई अंबेडकर की तस्वीर

रमाबाई भीमराव अंबेडकर वह थीं जिन्होंने समाज में शोषित हो रहे दलितों व सामाजिक न्याय के लिए बाबा साहेब अंबेडकर के साथ मिलकर काम किया। आज, 7 फरवरी को उन्हीं रमाबाई भीमराव अंबेडकर की जयंती है। रमाबाई के बारे में उतना नहीं लिखा गया जितना लिख दिया जाना चाहिए था। यह वह महिला थी जिन्होंने देश के संविधान निर्माता व उनके जीवन साथी बाबा अंबेडकर का हर कदम पर दृढ़ता के साथ, साथ निभाया। उनके साथ वे सपने साकार किये जो अंबेडकर के जीवन के लक्ष्य थे। इसलिए यह कहा जाता है कि…….  

रमाबाई ने ही भीम राव अंबेडकर को बनाया है। उन्होंने ही उस लड़ाई की नींव को मज़बूती से बनाये रखा जिसकी बदौलत आज हम अपने अधिकारों को अपनाने के साथ, उसका उपयोग कर पा रहे हैं। 

ये भी पढ़ें – दलित होना पाप क्यों है ? यह है मुनिया की कहानी

रमाबाई का जन्मस्थान व माता-पिता 

रमाबाई का जन्म 7 फरवरी, 1898 को हुआ था। वह एक साधारण परिवार से थीं। अपने पिता भिकू दात्रे वलंगकर और माता रुक्मिणी की वह दूसरी संतान थीं। पिता मज़दूर थे जो दाभोल बंदरगाह से बाजार तक टोकरियों में मछलियां बेचते थे व अपनी आजीविका उसी से कमाते थे। वह अपने तीन भाई-बहनों गोराबाई, मीराबाई और शंकर के साथ दाभोल के पास वालंग गाँव के महापुरा में रहती थीं। 

बचपन में ही माँ को खोने देने के बाद उन्होंने कुछ सालों बाद अपने पिता को भी खो दिया। इसके बाद भाई-बहनों का पालन-पोषण उनके चाचा वलंगकर और गोविंदपुरकर ने बॉम्बे में किया।

रमाबाई की अंबेडकर से मुलाक़ात 

                                                                बाबा साहेब अंबेडकर व रमाबाई अंबेडकर की साथ में तस्वीर ( फोटो- सोशल मीडिया)

मुंबई जिसे पहले बंबई कहा जाता था, वहां उनकी मुलाक़ात डॉ. भीमराव अंबेडकर से हुई। 1906 में 9 साल की उम्र में रमाबाई ने बायकुला मार्केट में आयोजित एक सादे विवाह समारोह में 15 वर्षीय अंबेडकर से शादी कर ली। ऐसा लिखा गया है कि, शादी की रात दूल्हे और उसके परिवार को एक खुले बड़े कोने में ठहराया गया था, जबकि दुल्हन के परिवार को दूसरे कोने में ठहराया गया था।

रमाबाई के चार बेटे यशवन्त, गंगाधर, रमेश और राजरत्न व एक बेटी इंदु रहे। सभी बच्चों में से केवल यशवंत अंबेडकर ही बड़े होने तक जीवित रहें, वहीं अन्य चार बच्चों की बचपन में ही मौत हो गई। 

रमाबाई एवं प्रेम के नाम 

रमाबाई,अंबेडकर को प्रेम से ‘साहेब’ कहकर पुकारतीं तो वहीं उनके साहेब उन्हें प्रेम से ‘रामू’ कहकर पुकारतें। 27 वर्षों का दोनों का संग सुख से ज़्यादा दुःख का दामन थामे बीता लेकिन उसमें जो प्रेम,साथ, विश्वास का धागा रहा, वह धागा आज भी इन्हें पढ़कर महसूस किया जा सकता है। 

रमाबाई के मायके का नाम रामीबाई था। शादी के बाद उनका नाम रमाबाई पड़ा। आंबेडकर के अनुयायी माता रमाबाई को ‘रमाई’ कहते हैं।

रमाबाई, अंबेडकर के लिए स्तंभ रहीं 

जब हमने कहा कि रमाबाई ने अंबेडकर को बनाया तो ऐसे ही नहीं कहा। शादी के बाद जब अंबेडकर डॉक्टरेट की डिग्री हासिल करने के लिए विदेश में पढ़ रहे थें, उस समय रमाबाई ब्रिटिशकालीन देश में गरीबी के साथ रह रही थीं। अंबेडकर द्वारा अर्जित की गई डिग्रियां रमाबाई द्वारा घर पर किये गए बलिदान व उनके साथ को दर्शाती हैं। 

अन्य लोग रमाबाई को समझाते रहें कि वह अपने पति को अमेरिका न जानें दे लेकिन अंबेडकर पर उन्हें पूरा भरोसा था। उनके भरोसे ने ही अंबेडकर की शिक्षा को नया आयाम दिया और उनकी शिक्षा में कोई बाधा नहीं आने दी। लोगों द्वारा दी जा रही टिप्पणियों और सुझावों को उन्होंने अनदेखा किया। 

रमाबाई के नाम अम्बेडकर का समर्पण 

डॉ. भीमराव अम्बेडकर की किताब, ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान’ (Thoughts on Pakistan) उनके प्रिय रामू यानी पत्नी की मृत्यु के बाद 1941 में प्रकाशित हुई थी। उन्होंने कहा, यह रमाबाई के

“हृदय की अच्छाई, उनके मन के बड़प्पन और उनके चरित्र की पवित्रता व इसके साथ-साथ अंबेडकर के साथ सामने किये गए सभी मुश्किल पड़ावों व चिंताओं के लिए धैर्य व सराहना का प्रतीक है।”

रमाबाई की लंबे समय से इच्छा थी कि वे तीर्थयात्रा के लिए पंढरपुर जाएं, लेकिन क्योंकि वे दलित जाति से थी तो उन्हें मंदिर के अंदर जाने की अनुमति नहीं थी। इसके चलते डॉ. अंबेडकर को अपनी पत्नी से उनके लिए एक नया पंढरपुर बनाने का वादा करना पड़ा। इसके बाद उन्होंने आखिर में हिंदू धर्म त्याग दिया और बौद्ध धर्म को अपना लिया। रमाबाई अंबेडकर का 27 मई, 1935 को लंबी बीमारी के बाद 37 की उम्र में उनके निवास पर ही निधन हो गया।

रमाबाई के निधन के तकरीबन 6 सालों बाद 1941 में प्रकाशित अपनी किताब ‘पाकिस्तान ऑर दी पार्टिशन ऑफ इंडिया’ में उन्होंने रमाबाई को इन शब्दों से समर्पित किया – ‘रामू की याद को समर्पित।’

उसके सुन्दर हृदय, उदात्त चेतना, शुद्ध चरित्र व असीम धैर्य और मेरे साथ कष्ट भोगने की उस तत्परता के लिए, जो उसने उस दौर में प्रदर्शित की, जब हम मित्र-विहीन थे और चिंताओं और वंचनाओं के बीच जीने को मजबूर थे। इस सबके लिए मेरे आभार के प्रतीक के रूप में।’ (आंबेडकर, 2019)

रमाबाई के नाम चर्चित फिल्म व नाटक 

दलित दस्तक द्वारा लिखे लेख में रमाबाई पर बनी फिल्मों व नाटक के बारे में बताया गया…. 

  • 2011 में प्रकाश जाधव के निर्देशन में मराठी में ‘रमाबाई भीमराव आंबेडकर’ फिल्म बनी। जो पूरी तरह रमाबाई के व्यक्तित्व पर केंद्रित है।
  • 2016 में एम. रंगानाथ के निर्देशन में कन्नड़ में ‘रमाई’ फिल्म बनी। इस फिल्म का केंद्रीय चरित्र भी रमाबाई हैं।
  • शशिकांत नालवाडे के निर्देशन में 1993 में बनी मराठी फिल्म ‘युगपुरुष डॉ. आंबेडकर’ में भी रमाबाई की भूमिका को रेखांकित किया गया है।
  • अंग्रेजी में जब्बार पटेल ने सन् 2000 में डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर नामक फिल्म बनाई। जिसमें रमाबाई के व्यक्तित्व को प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया गया है।
  • 1990 में मराठी फिल्म ‘भीम गर्जना’ बनी। जिसका निर्देशन विजय पवार ने किया। इसमें भी आंबेडकर के जीवन में रमाबाई की भूमिका को प्रस्तुत किया गया है।
  • 1992 में अशोक गवाली के निर्देशन में मराठी में चर्चित नाटक ‘रमाई’ सामने आया।

बचपन से ही वह जीवन की कठिन परिस्थियों के साथ लड़ती रहीं और शादी के बाद भी उन्होंने भीम राव अंबेडकर का साथ निभाते हुए दलितों व जो ग्रसित हैं, उनके लिए काम किया। वह महिला जो कभी सामने नहीं आईं, उनके कार्य व जीवन को देखना, लिखना व उसे आगे ले जाना…… यह सबके ऊपर है, सबके लिए है, हमारे लिए है। 

 

यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’

If you want to support  our rural fearless feminist Journalism, subscribe to our  premium product KL Hatke