तालबेहट में एक समय था जब अकाल आया था और पानी की कमी हो गई थी। राजस्थान के कोई राजा यहां आए थे। उन्होंने उनको सलाह दी थी कि किले के पास जो भी जगह पड़ी हुई है इसमें तालाब खुदवाना चाहिए। तब राजा मर्दन सिंह ने यहां पर तालाब खुदवाया था ताकि उनकी प्रजा जो उनके यहां काम करती थी उनका भी निस्तार हो और तालबेहट की आसपास के लोग को पानी पर्याप्त मिल सके।
उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड को वैसे तो पानी की कमी लिए पिछड़ा माना गया है। बुंदेलखंड की छवी कभी सूखा तो कभी बारिश जैसी रही है। इस दैविक आपदा से बुंदेलखंड अकसर जूझता रहा है। बुंदेलखंड का एक ऐसा हिस्सा हैं जहां का पानी कभी सूखता नहीं है वह जगह है ललितपुर। बुंदेलखंड के झांसी मंडल के ललितपुर जिले में सबसे ज्यादा बांध हैं।
ललितपुर में चंदेरी के राजाओं का राज रहा है और यहां रहने वाले राजाओं ने कई ऐसे बड़े-बड़े तालाब खुदवाए जिनका पानी आज भी नहीं सूखता। यह तालाब आज भी पानी से लबालब भरे रहते हैं। कहा जाता है कि ललितपुर के तालबेहट कस्बे में इस तालाब को राजा मर्दन ने खुदवाया था जिससे उनकी प्रजा को पानी मिल सके।
मानसरोवर तालबेहट का इतिहास
लोगों का कहना है कि तालाब 16वीं सदी के जमाने का बना हुआ है। इतिहास में चन्देलों के बाद चन्दैरी के राजा भारतशाह ने इस पर अपना अधिकार कर, ताल की बीहट (पहाड़ी) पर किला बनवाकर प्राचीन तालाब का निर्माण किया था। किले का नाम ताल बीहट था इसलिए बस्ती का नाम भी ताल बीहट पड़ा। भारत शाह के निर्माण के बाद लोग इसे भारत सागर भी कहने लगे थे। यह लम्बा-चौड़ा विशाल तालाब है। लगभग 35 एकड़ में बना यह तालाब किसी बांध से कम नहीं है।
तालबेहट में एक समय था जब अकाल आया था और पानी की कमी हो गई थी। राजस्थान के कोई राजा यहां आए थे। उन्होंने उनको सलाह दी थी कि किले के पास जो भी जगह पड़ी हुई है इसमें तालाब खुदवाना चाहिए। तब राजा मर्दन सिंह ने यहां पर तालाब खुदवाया था ताकि उनकी प्रजा जो उनके यहां काम करती थी उनका भी निस्तार हो और तालबेहट की आसपास के लोग को पानी पर्याप्त मिल सके।
मानसरोवर तालाब के अन्य नाम
बुंदेलखंड के इस तालब को ताल बीहट, मानसरोवर और हजारिया के नाम से भी जाना जाता है।
तालाब की खूबसूरती
यह तालाब इतना खूबसूरत है कि लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करता है। लोग तालाब किनारे आकर बैठते हैं, सुकून की सांस लेते हैं। इसके पास में एक हजारिया मंदिर बना हुआ है। यहां लोग दर्शन करने भी आते हैं। यहां का नज़ारा देखे बिना रह नहीं पाते हैं।
स्टीमर का भी प्रबंध
इस तालाब में मंरोजन के साधन भी उपलब्ध है। इसके लिए आपको किसी और शहर जाने की जरूरत नहीं अब यहां स्टीमर भी चलने लगे है जिससे आप तालाब की खूबसूरती को और करीब से देख सकते है। स्टीमर का किराया भी मात्र 30 रूपये है। लोग स्टीमर में बैठकर बच्चों के साथ पूरे तालाब का चक्कर लगाते हैं, घूमते हैं और मस्ती करते हैं।
भक्ति के साथ सुकून भी है यहां
तालाब के घाट में बैठे विनोद रजक बताते हैं – “मैं नौहर खुर्द गांव का रहने वाला हूं। यहां से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर मेरा गांव है। मेरी उम्र 35 साल है और मैं बचपन से ही मंदिर के दर्शन करने अपने माता-पिता के साथ आता था। जब भी मैं यहां आता था तो तालाब में पानी पीने और नहाने भी आते थे लोग। अब मैं अकेले भी आ आता हूं तो तालाब के किनारे जरूर आकर बैठता हूं। मैंने कभी इस तालाब का पानी सूखा नहीं देखा। हमेशा यह भरा रहता है और आसपास के किसानों को भी पानी देता है। आसपास में जिन किसानों की खेती है। उन्हें सिंचाई की कभी समस्या नहीं होती है और उन्हें कभी सिंचाई के लिए बारिश के सहारे नहीं रहना पड़ता है। लोग यहां मंदिर के दर्शन करने भी आते हैं। इस तालाब का पानी साफ और मीठा है। अब 4 साल से और भी ज्यादा अच्छा लगने लगा है घाट बन गया है। सुंदरीकरण हो गया है। स्टीमर चल रहे हैं तो और भी अच्छा लगता है। यहां आकर बैठने में सुकून मिलता है।”
तालाब के पानी से कपड़े धोने से आती है चमक
तालाब के घाट पर कपड़े धो रही, मोहल्ले की रेखा ढीमर बताती है कि “हमें यहां पर रहते हुए बरसों हो गए। हमारे पूर्वज यहीं रहे। हम भी यहीं रहते हैं और मैं जब से यहां पर आई हूं, यहाँ कपड़े आकर धोती हूं। कपड़े साफ हो जाते हैं। इस तालाब का मीठा पानी है, जितने कपड़े इस तालाब के पानी से साफ होते हैं वह कहीं के पानी से नहीं साफ होते हैं। चाहे फिर वह कुएं का हो, हैंडपंप का हो, सप्लाई का हो। तालाब जैसा पानी किसी चीज का नहीं है इसलिए मैं कपड़े इकट्टा करके फिर यहां आकर धोकर ले जाती हूँ।”
अब तालाब की सुंदरता होने लगी है कम
यहां तालाब के पास हजारिया मंदिर है। ये मंदिर भी राजा मर्दन ने बनवाया था। यहां के पुजारी पंडित अनुज जोकि हजारिया मंदिर के पुजारी हैं। लगभग 40 साल के हैं। उन्होंने बताया कि “मैं यहाँ का रहने वाला हूं इससे पहले हमारे दादा पर दादा यहां पुजारी रह चुके हैं। अब मैं हूं और मैं बचपन से इस तालाब को ऐसा ही देख रहा हूं। इसका पानी इतना मीठा है कि सब लोग इसका पानी पीते थे। अब थोड़ी गंदगी के कारण लोग पूजा पाठ का समान और कचरा डाल देते हैं तो लोग पीने में हिचकिचाते हैं। लेकिन पानी आज भी यहां का बहुत अच्छा है। इसी पानी से हम अपने शंकर जी को नहलाते हैं।”
पुजारी आगे बताते है कि “इस तालाब के पानी से रानीपुर गांव के किसान, पास के ढिमरी बस्ती के किसान और तालबेहट के किसान सिंचाई करते हैं। मंदिर में जो भी दर्शनीय (टूरिस्ट) लोग आते हैं। यहाँ आकर बैठते हैं, हवन कुंड करते हैं। पूरी जगह की धुलाई इसी से होती है। सैकड़ों साल पहले यहाँ ना हैंडपंप हुआ करते थे, ना यहां पर आसपास कोई कुआं था। यही इकलौता तालाब था। इसे राजा मर्दन सिंह ने लगभग डेढ़ सौ साल पहले बनवाया था।”
ललितपुर का मानसरोवर तालाब सुंदरता की पहचान है इसकी खूबसूरती को बनाए रखना, सरकार और गांव के लोगों की जिम्मेदारी है।
इस खबर की रिपोर्टिंग नाज़नी रिज़वी द्वारा की गई है।
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