एक समय था जब लोगों की जिंदगी का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा हुआ करता था ‘डाकखाना।’ डाकखाने के बाहर टंगा लेटर बॉक्स लोगों के दुःख-सुख बांटने का ज़रिया था। लोगों को त्योहारों पर खासकर दिपावली, ईद की मुबारकबाद,रक्षाबंधन पर राखी का इंतज़ार होता था। डाकिये वाले को आता देख हाथों में चिठ्ठियों और लिफाफे देख लोगों के चेहरे खिल जाते थे।
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आज दौर बदल गया है। फोन ने लेटर बॉक्स को सूना कर दिया है। आज लेटर बॉक्स डाकखाने के बाहर शो पीस बनकर रह गए हैं। पुराने समय में तो लोगों को डाकिये के आने का इंतजार हुआ करता था। वो जिस रास्ते से गुजरता था लोग वहां खड़े रहते थे और उसे आते देखकर ही अपनी चिट्टी के बारे में पूछते थे। देखते-देखते सब कुछ बदल गया। अब भी डाकिया आता है लेकिन सिर्फ सरकारी दस्तावेज लेकर।
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