80 साल के रामदास ढिमर ने बताया, “बहुत पहले की घटना है। राजा महाराजाओं का तो यही काम होता था छोटी जाति की महिलाओं को काम पर रखना, बंधुआ मजदूर बनाकर उनसे काम करवाना और फिर उनके साथ दुष्कर्म करना। जिस महिला पर उनका दिल आ गया वह किसी की भी बहू-बेटियां हों। उनकी इज्जत लूट लेते थे उनका यही तो काम होता था।
ऐसे तो भारत में महिलाओं को देवी कहा जाता है पर उन महिलाओं को इतिहास में किस नज़रिये से और आज भी किस नज़र से देखा जाता है वो तो सबके सामने है। जो खुद के लिए और समाज के लिए लड़ी उनका नाम इतिहास के पन्नों में सुनहरें अक्षरों में दर्ज हैं लेकिन जो महिलाएं इतिहास में मूर्ति बनकर रह गई। उनकी कहानियां भी इक्की दुक्की ही है। उनकी बनी मूर्तियों के पीछे की कहानियों की सच्चाई कितनी सच है ये वहां के पूर्वज ही बता सकते हैं।
वीरों की धरती ‘बुंदेलखंड’ इतिहास के पन्नों में दर्ज है। आज भी यहां के लोगों का गर्व से सीना चौड़ा कर देता है। जब अपने बुंदेलखंड के इतिहास को याद करते हैं, पढ़ते हैं, सुनते हैं। यहां की पुरानी इमारतें पुराने किले आज भी याद दिलाते हैं कि यहां राजा महाराजाओं का राज रहा है। भले ही आज कुछ किले विकसित है और कुछ किले पुरातत्व विभाग में आने के बाद भी खंडहर का रूप ले चुके हैं। इन्हीं कुछ किलो में वीरता के साथ-साथ कुछ ऐसी सच्ची कहानी भी दफन है जिसको सोचकर सुनकर आप चकित हो जायेंगें। राजाओं की वीरता की कहनियाँ का इतिहास तो आपको किताबों में मिल ही जायेगा पर इतिहास का सच तो वहां जाकर ही पता चलता है। बुंदेलखंड (उत्तरप्रदेश) के तालबेहट के किले की कहानियों की सच्चाई जानने के लिए खबर लहरिया की रिपोटर्र ने वहां रह रहे आस-पास के लोगों से बातचीत की। तो चलिए आज मैं इस लेख के जरिए ऐसे ही किले के कुछ सुने-अनसुने राज के बारे में बताने जा रही हूँ।
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के बारे में भला किसने नहीं सुना। आज भी उनका नाम सुनते ही ये दोहा खुद बा खुद मूंह से फूट पड़ता है।
“बुंदेले हर बोलो कि मुख हमने सुनी कहानी थी खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।”
ऐसी ही कहानी है उत्तरप्रदेश, ललितपुर जिले के तालबेहट किले की। इस किले को राजा मर्दन सिंह ने बनाया है और राजा मर्दन सिंह के भी बहादुरी चर्चा में रही। लेकिन कहा जाता है कि उन्होंने 1850 से पहले तालबेट का किला बनाया था।
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तालबेहट किले का इतिहास
इतिहास में राजा मर्दन सिंह के पिता प्रहलाद सिंह ने एक ऐसी आहत करने वाली घटना को अंजाम दिया। जिसकी वजह से राजा मर्दन सिंह ने अपने पिता से राजपथ छीन कर खुद राजगद्दी संभाली। 1857 में जब झांसी की रानी अंग्रेजों से लड़ाई लड़ रही थी। मर्दन सिंह ने भी रानी लक्ष्मीबाई के साथ अंग्रेजों के साथ जंग की थी और वह 1857 में लड़ाई लड़ते-लड़ते शहीद हो गए थे।
किले में क्यों बनाई महिलाओं की मूर्तियों
राजा मर्दन सिंह के सदर टोपची दलेर खां के परिवार के लोग आज भी इस किले के बाहर के मोहल्ले में रहते हैं। जब हमने इस किले की कहानी को गहराई से जानने की कोशिश की। उनके पोते के पोते मोहम्मद रफीक खां जो आज भी किले से थोड़ी दूर पर एक छोटी सी बच्चों के चीज की दुकान खोले हैं। जिनकी उम्र लगभग 70 साल है।
हमने उनसे बात की तो उन्होंने बताया कि राजा मर्दन सिंह के पिता प्रहलाद सिंह ने लड़कियों के साथ अपहरण करके दुष्कर्म किया था। किले के जिस हिस्से में उन सातों लड़कियों ने किले से कूद कर आत्महत्या की थी। उसके लिए के गेट की तरफ मुख्य द्वार पर उन सातों लड़कियों की है मूर्ति बनवाई। उस समय मर्दन सिंह नाबालिग थे लेकिन जब वह बालिग हुए तो लगभग 4 साल के बाद मर्दन सिंह ने अपनी सेना तैयार की और राजपाठ संभाला। किले के जिस हिस्से में उन सातों लड़कियों ने किले से कूद कर आत्महत्या की थी। उसके लिए के गेट की तरफ मुख्य द्वार पर उन सातों लड़कियों की है मूर्ति बनवाई। पूरे क्षेत्र में बुंदेलखंड के लिए शर्मनायक घटना थी। ऐसे तो हमने भी बहादूरी के किस्से सुने हैं और सुनाते हैं पर जब ऐसी कहानियां सुनते हैं तो हमें बहुत गुस्सा आता है।
यह घटना वाकई सच है क्या? इसके लिए हमने वहां हजारिया महादेव मंदिर के पुजारी, अनुज कुमार लिटौरिया से भी बात की। जो लगभग 40 साल के हैं बताते हैं, “मर्दन सिंह का राज चंदेरी, भानपुर, तालबेहट सब उनकी रियासत में आता था। अक्षय तृतीया का दिन था उस दिन सभी लोग पत्ते को सुखाकर चूड़ा बनाकर, सुख शांति के लिए सबको देते थे। कुछ लोग नेग भी लेते थे। गांव की साथ लड़कियां जो आपस में सहेलियां थी वह किलें में गई। राजा मर्दन सिंह के पिता प्रहलाद सिंह के पास नेक मांगने के लिए। लड़कियों को देखकर राजा प्रहलाद की नियत बिगड़ गई। उन्होंने लड़कियों को बंदी बनाकर उनके साथ दुष्कर्म किया। इस वजह से लड़कियों ने किले के ऊपर से छलांग लगाकर अपनी जान दे दी। जब राजा मर्दन सिंह को यह बात पता चली उन्होंने अपने पिता से राजपाठ त्यागने को कहा इसके बाद राजा मर्दन सिंह ने खुद कारभार संभाल लिया। उस दिन से ही अब हमारे पूरे तालबेहट में वह त्यौहार नहीं मनाया जाता।
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राजाओं द्वारा महिलाओं का होता था शोषण
एक 80 साल के रामदास ढिमर जो इस उम्र में भी बकरियां चरा रहे थे। किले के अंदर उनसे बात की उन्होंने बताया “बहुत पहले की घटना है। राजा महाराजाओं का तो यही काम होता था छोटी जाति की महिलाओं को काम पर रखना, बंधुआ मजदूर बनाकर उनसे काम करवाना और फिर उनके साथ दुष्कर्म करना। जिस महिला पर उनका दिल आ गया वह किसी की भी बहू-बेटियां हों। उनकी इज्जत लूट लेते थे उनका यही तो काम होता था।
ऐसी कितनी गरीब महिलाएं इस गांव की रही होगी जो पेट की खातिर राजाओं के यहां काम करती थी जिनकी इज्जत राजा ने लूटी होगी। वह महिलाएं उनके घर का गोबर-कूड़े का काम करती थी लेकिन उन्होंने कभी किसी से कुछ कहा नहीं।
राजाओं का इस तरह महिलाओं का शोषण करना उनको कहां किसी इतिहास की किताब में सजा का जिक्र है ही नहीं। महिलाओं को सिर्फ भोग की एक वस्तु के रूप में ही तो देखा जाता रहा है आज भी भारत में कुछ खास बदलवा नहीं आया है। महिलाएं आज भी शिकार होती है और उन्हें इंसाफ नहीं मिलता।
इस खबर की रिपोर्टिंग नाज़नी रिज़वी द्वारा की गई है।
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