आज़ाद भारत के पहले गृह मंत्री वल्लभभाई पटेल की 143वीं जयंती के मौके पर आज, उनकी दुनिया की सबसे ऊँची प्रतिमा का उद्घाटन प्रधान मंत्री मोदी द्वारा, गुजरात के साधू बेत (नदी द्वीप) पर किया गया है। इस प्रतिमा को ‘स्टेचू ऑफ़ यूनिटी’ का नाम दिया गया है।
पदम भूषण और पदम श्री से सम्मानित वनजी सुतार, जिन्होंने भारतीय सांसद में महात्मा गाँधी की प्रतिमा की रचना भी करी है, उन्हें वल्लभभाई पटेल की इस प्रतिमा का रचनाकार भी माना जा रहा है।
मूर्ति बनाने वाली संगठन लार्सन एंड टुब्रो ने दावा किया कि ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा है और महज 33 माह के रिकॉर्ड कम समय में बनकर तैयार हुई है। जबकि स्प्रिंग टेंपल के बुद्ध की मूर्ति के निर्माण में चीन को 11 साल का वक्त लगा था। संगठन के मुताबिक यह प्रतिमा न्यूयॉर्क में ‘स्थित स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी’ से लगभग दोगुनी ऊंची है।
‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ का कुल वजन 1700 टन है और ऊंचाई 522 फिट यानी 182 मीटर है।
सरदार पटेल की इस मूर्ति को बनाने में करीब 2,989 करोड़ रुपये का खर्च आया है। कंपनी के मुताबिक, कांसे की परत चढ़ाने के आशिंक कार्य को छोड़ कर बाकी पूरा निर्माण भारत में ही किया गया है। यह प्रतिमा नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध से 3.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। संगठन का कहना है कि निर्माण का काम वास्तव में 19 दिसंबर, 2015 को शुरू हुआ था और 33 माह में इसे पूरा कर लिया गया।
गुजरात सरकार का मानना है कि इस विशालकाय मूर्ति को देखने के लिए देश ही नहीं, बल्कि विदेशों के पर्यटक भी आया करेंगे। आम आदमी के घूमने के लिए यहाँ की टिकेट 350 रुपय रखी गई है। और यहाँ घुमने का समय सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक रखा गया है।
मूर्ति से तीन किलोमीटर की दूरी पर तम्बू द्वारा बनाए गए छोटे से शेहर का निर्माण भी किया गया है, ताकि पर्यटक यदि वहां रुककर प्रतिमा व उसके आसपास के नजारों का आनंद लेना चाहें तो वे इन तम्बुओं में रुक सकते हैं। पर्यटकों के लिए आसपास के परिसर को टूरिस्ट स्पॉट बनाने का भी इंतजाम किया गया है।
केंद्रीय सरकार और पांच सार्वजानिक क्षेशक उपक्रम- ओएनजीसी, एचपीसीएल, बीपीसीएल, इंडियन आयल और ओआईएल द्वारा 146.83 करोड़ की रकम इस प्रतिमा पर लगाई गई है।
सरदार पटेल की इस मूर्ति को लेकर बीजेपी और कांग्रेस में आरोप-प्रत्यारोप भी हो चुके हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा पटेल की इस प्रतिमा को ‘मेड इन चाइना’ बताया गया है। वहीँ दूसरी तरफ वहां पर रहने वाले गॉंव वासियों ने इस प्रतिमा को प्राकृतिक संसाधनों की बर्बादी का जरिया बताया है।