सरकार ने अब नदी किनारे बसे गांव और मजरों में विद्युत लाइन का काम करवाने का आश्वासन दिया है। पर इस जटिल काम को करने के लिये प्रशासन कांप रहा है, पर सरकार के आदेश का पालन तो करना ही होगा।
चित्रकूट मंडल में दुर्गम स्थानों पर बसे 189 मजरों में सौभाग्य योजना के तहत विद्युतीकरण नहीं हो पा रहा है। साथ ही ये बहुत महंगा साबित हो रहा है।
इन मजरों को बिजली से रोशन करना है। जिसमें 50 करोड़ से ज्यादा की लागत होगी। इसलिए सरकार ने इन मजरों के लिये सोलर लाइट की व्यवस्था उपलब्ध करने और लगवाने की बात तो कर दी, पर क्या यह सोलर लाइट मजरों में पहुंच पाएंगी?
कुल 3 करोड़ 59 लाख रूपये खर्च होगा 2020 तक। प्रत्येक घर की इस व्यवस्था से रोशनी पहुँचाने का सरकारी लक्ष्य है।
सरकार एक मकान के लिये कुल 44 हजार रूपये खर्च करेगी। इस योजना के पहले चरण में दो जिलों में काम होगा। जिसमें चित्रकूट और बांदा शामिल है। इस जिम्मेदारी को नेडा विभाग को दिया गया है।
बांदा और चित्रकूट के 153 मजरों में रोशनी पहले पहुंचेगी, पर इस योजना से विभागीय अधिकारी परेशान हैं, कि किस तरह से काम को आगे ले जाएँ?
सरकार ने हर गांव में रोशनी पहुँचाने की बात तो कह दी है, पर कर्मचारियों के बारे में एक बार भी नहीं सोचा? क्या कभी दुर्गम स्थल रोशनी से जगमगा सकेंगे या यह योजना भी कागज में ही रह जायेगी?
लेखन- मीरा जाटव, संपादक