खबर लहरिया Hindi रेल पटरियों के बीच सौर ऊर्जा, वाराणसी बना पहला शहर

रेल पटरियों के बीच सौर ऊर्जा, वाराणसी बना पहला शहर

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में पहली बार रेल की पटरियों के बीच आसानी से हटाई जाने वाली सौर ऊर्जा प्रणाली स्थापित की जा रही है। इस परियोजना का उद्घाटन स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर बनारस लोकोमोटिव वर्क्स (बीएलडब्ल्यू) के महाप्रबंधक नरेश पाल सिंह ने किया था।

वाराणसी में रेल पटरियों के बीच सौर ऊर्जा की तस्वीर (फोटो साभार: रेल मंत्रालय)

बनारस लोकोमोटिव वर्क्स (बीएलडब्ल्यूइ) द्वारा रेलवे ट्रैक पर सौर पैनल बिछाई जा रही है। रेल मंत्रालय ने सोशल मीडिया X पर पोस्ट के माध्यम से 18 अगस्त 2025 को भी इसकी जानकारी दी थी। उन्होंने बताया कि इसका उद्देश्य पर्यावरण और ऊर्जा तकनीक को बेहतर बनाना है और साथ ही हरित ऊर्जा को बढ़ावा देना है।

PRO (जनसंपर्क अधिकारी) बनारस रेल इंजन कारखाना राजेश कुमार ने बताया, “भारत में ये पहला ऐसा अनूठा प्रयोग था। बनारस रेल इंजन कारखाना परिसर में 5.8 किलोमीटर का यार्ड ट्रैक है जहां हमने सौर पैनल लगाकर इसका सदुपयोग किया है।”

रेल मंत्रालय ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट साझा करते हुए कहा “बनारस लोकोमोटिव वर्क्स, वाराणसी ने रेलवे पटरियों के बीच भारत की पहली 70 मीटर हटाने योग्य सौर पैनल प्रणाली (28 पैनल, 15 किलोवाट) चालू की – जो हरित और टिकाऊ रेल परिवहन की दिशा में एक कदम है।”

बिना किसी बाधा के स्थापित किए जायेंगे सौर पैनल

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक यह सौर प्रणाली रेल परिचालन को बिना किसी बाधा के पूरा किया जायेगा। इसमें अलग से किसी अतिरिक्त जमीन की आवश्यकता भी नहीं है क्योंकि इसके इस्तेमाल के लिए रेल की पटरियों के बीच की जगह का इस्तेमाल होगा। इसे ट्रैक रखरखाव के दौरान आसानी से हटाने के लिए डिजाइन किया गया।

रेल पटरियों के बीच सौर पैनल लगने से लाभ

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यह सौर पैनल सिस्टम दिन में सूरज की रोशनी से बिजली उत्पन्न करेगा। रेल में बिजली से चलने वाले सभी उपकरण इसकी मदद से चलेंगे।

उत्पन्न की गई बिजली रेलवे स्टेशन, सिग्नलिंग सिस्टम, ट्रेन शेड, लाइटिंग आदि के लिए उपयोग में लाई जा सकती है।

इससे कम लागत में बिजली मिल सकेगी यानी एक बार इंस्टालेशन (लग जाने) के बाद, यह सिस्टम कई वर्षों तक मुफ्त में बिजली देगा, जिससे रेलवे को बिजली पर खर्च कम करना होगा।

रेलवे स्टेशन और ट्रेन यार्ड अपनी बिजली खुद पैदा कर पाएंगे, जिससे बाहरी बिजली आपूर्ति पर निर्भरता कम होगी।

यह सिस्टम हटाने योग्य (removable) है, यानी ज़रूरत पड़ने पर ट्रैक की मरम्मत या सफाई के लिए आसानी से हटाया जा सकता है।

अब देखना यह होगा यह कार्य कब तक पूरा होगा और कितना हद तक सफल होगा?

 

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