सिमोनी धाम मेला हर साल 15 से 17 दिसंबर के बीच लगता है। यह मेला सिर्फ़ खरीद-फरोख्त या झूलों का नहीं, बल्कि आस्था, परंपरा और सामूहिक स्मृतियों का प्रतीक है। स्थानीय बुज़ुर्गों के मुताबिक, सिमोनी धाम का इतिहास बहुत पुराना है। मान्यता है कि यहां अवधूत महाराज ने तपस्या की थी, तभी से यह स्थान लोगों की गहरी आस्था का केंद्र बना। पहले यह मेला सादा होता था, संसाधन कम थे लेकिन अपनापन भरपूर था। मेले की सबसे बड़ी पहचान था देसी घी में बना मालपुआ, जिसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता और लोग उसे घर तक लेकर जाते थे। समय के साथ मेला बड़ा हो गया है — भीड़ बढ़ी है, झूले बढ़े हैं, माइक और मंच बढ़े हैं। पिछले कुछ वर्षों से नेताओं की मौजूदगी और भाषणों ने भी मेले का स्वरूप बदल दिया है। लोग कहते हैं कि व्यवस्था ज़रूरी है, विकास भी ज़रूरी है, लेकिन सिमोनी धाम की आत्मा — उसकी परंपरा और पहचान — बनी रहनी चाहिए।
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