UAPA आदेशों के अनुसार, कप्पन के जेल से बाहर आने के बाद परिवार को 6 हफ्तों के लिए दिल्ली में रहना होगा। इसके बाद ही वे केरल में अपने घर लौट सकेंगे।
“मैं पत्रकारिता करना ज़ारी रखूंगा। मैं बेकार नहीं बैठूंगा … आखिरकार, मैं एक पत्रकार हूं – मैं कहां भाग सकता हूं?” वीरवार, 2 फरवरी 2023 को लखनऊ शहर की जेल से बाहर आने के बाद पत्रकार सिद्दिक कप्पन (Siddique Kappan) ने बीबीसी हिंदी को बताया। उन्होंने कहा, वह अपने खिलाफ लगे आरोपों के खिलाफ लड़ाई ज़ारी रखेंगे।
केरल के मल्लपुरम जिले के रहने वाले 43 साल के पत्रकार को अक्टूबर 2020 में यूपी के हाथरस में रिपोर्टिंग करने जाने के दौरान गिरफ्तार किया गया था। बता दें, हाथरस मामले ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था।
कप्पन पिछले ढाई सालों से जेल में थे और सुप्रीम कोर्ट ने UAPA केस में उन्हें सितंबर 2022 में बेल दिया था। इसके बाद दिसंबर 2022 में उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट से प्रवर्तन निदेशालय (ED) केस में भी जमानत मिल चुकी थी।
जेल से रिहा होने के बाद कप्पन का बयान
क्विंट हिंदी की प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, जब पत्रकार सिद्दिक कप्पन रिहा होकर जेल से बाहर निकले तो उन्होंने कहा, “जो सरकार के खिलाफ होगा, आतंकी होगा।” आगे कहा कि मथुरा जेल में बहुत उत्पीड़न किया गया, बोतल में पेशाब करना पड़ा। हमारा पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया। मेरा अकाउंट अब भी पब्लिक डोमेन में उपलब्ध है।”
कुछ समय रहना होगा दिल्ली में
UAPA आदेशों के अनुसार, कप्पन के जेल से बाहर आने के बाद परिवार को 6 हफ्तों के लिए दिल्ली में रहना होगा। इसके बाद ही वे केरल में अपने घर लौट सकेंगे।
कप्पन की पत्नी ने कहा – लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई
कप्पन की पत्नी रायहनाथ ने कहा क्विंट हिंदी को बताया कि, “UAPA केस में बेल मिले उन्हें 4 महीने हो गए हैं, लेकिन वेरिफिकेशन और बाकी प्रक्रिया पूरी होने में काफी समय लग गया। आखिरकार वे बाहर आ रहे हैं, लेकिन अभी हमारी लड़ाई खत्म नहीं हुई है।”
प्रेस स्वतंत्रता कार्यकर्ताओं ने की थी गिरफ्तारी की निंदा
कप्पन की गिरफ्तारी को लेकर प्रेस स्वतंत्रता कार्यकर्ताओं द्वारा भी निंदा की गयी जिन्हें डर है कि भारत पत्रकारों के लिए असुरक्षित होता जा रहा है। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल देश अपने स्थान से आठ स्थान नीचे गिरा व रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा संकलित रिपोर्ट के अनुसार भारत 180 देशों के विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में 150वें स्थान पर रहा।
रिपोर्ट में कहा गया, “पत्रकारों के खिलाफ हिंसा, राजनीतिक रूप से पक्षपातपूर्ण मीडिया और मीडिया स्वामित्व की एकाग्रता को दर्शाती है कि दुनिया के “सबसे बड़े लोकतंत्र” में प्रेस की स्वतंत्रता संकट में है।”
रिपोर्ट में आगे यह भी बताया गया कि प्रक्रिया में देरी होने की वजह से उन्हें रिहा होने में एक महीने से भी ज़्यादा का समय लग गया।
जानें कप्पन पर क्या है आरोप
जानकारी के अनुसार, अक्टूबर 2020 में यूपी के हाथरस में 19 साल की दलित लड़की के साथ बलात्कार का मामला सामने आया था। इस मामले की कवरेज के लिए सिद्दिक कप्पन भी हाथरस जा रहे थे तभी उन्हें अन्य तीन लोगों के साथ 5 अक्टूबर 2020 को रस्ते से ही गिरफ्तार कर लिया गया था। वह रिपोर्टिंग के लिए पहुँच ही नहीं पाए थे।
उन पर यह आरोप लगाया गया था कि वह शान्ति भंग करने के इरादे से हाथरस आये थे।
कप्पन के जेल जाने के बाद, उनपर UAPA (गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम) और देशद्रोह की धाराओं के तहत दूसरी एफआईआर दर्ज की गई थी। पुलिस ने प्राथमिक जांच के आधार पर पहली एफआईआर में कहा कि हाथरस में “शांति और कानून व्यवस्था भंग करने” के लिए एक आपराधिक साजिश रची जा रही थी।
यह है लगाए गए आरोपों को पूरा ब्यौरा
रिपोर्ट्स के अनुसार, गिरफ्तारी के बाद कप्पन ने पुलिस पर शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का आरोप लगाया। उनके परिवार ने यह भी आरोप लगाया कि अधिकारियों द्वारा उन्हें मधुमेह की दवाओं हेतु भी पहुँच मुहैया नहीं कराई गयी थी।
वहीं पुलिस ने इस अभी आरोपों से इनकार किया।
पुलिस ने दावा किया है कि कप्पन और उनके साथी केरल स्थित कट्टरपंथी मुस्लिम समूह पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के सदस्य थे, जिसे पिछले साल आतंकवादी समूहों के साथ कथित संबंधों के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया था। वहीं पीएफआई, कप्पन के वकील और केरल स्थित एक पत्रकार संघ, जिनसे वे जुड़े थे उन्होंने इससे इंकार किया।
कप्पन के वकील ने 2021 में बीबीसी को बताया था कि उनके मुवक्किल पर शुरू में “मामूली जमानती अपराध” का आरोप लगाया गया था। लेकिन दो दिन बाद उन पर आतंकवाद विरोधी कानून के तहत देशद्रोह व अन्य प्रावधानों सहित कई कड़े आरोप जोड़ दिए गए जिसे लेकर आलोचकों ने कहा कि इसके बाद तो बेल मिलना लगभग असंभव है।
फरवरी 2021 में, वित्तीय अपराधों की जांच करने वाले प्रवर्तन निदेशालय ने उनके खिलाफ धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत एक और मामला दर्ज किया था। केंद्रीय एजेंसी ने कहा कि कप्पन ने “दंगे भड़काने” के लिए पीएफआई से धन प्राप्त किया, इस आरोप को लेकर कप्पन ने इंकार लिया था।
पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन का जेल जाना और रिहाई की प्रक्रिया में देरी न्यायालय व देश में प्रेस की स्वतंत्रता पर बड़ा सवाल खड़ा करती है।
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