दलित महिलाओं और लड़कियों के साथ होते बलात्कार की घटनाओं से जुड़े मामले और उसके परिणाम से जुड़ी रिपोर्टिंग के अंश।
भारत अलग-अलग वर्ग, कर्म आदि में बंटा हुआ है। लेकिन फिर भी इसे “विभिन्नता में एकता” का प्रतीक कहा जाता है। लेकिन जब हम समाज और भारतीय संविधान द्वारा गठित वर्गों की बात करते हैं तो उसमें कोई उच्च नज़र आता है तो कोई बिल्कुल धरातल पर। हम यहां बात कर रहें, दलित समुदाय की। दलित संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ दबा-कुचला हुआ, पिछड़ा हुआ, शोषित समुदाय आदि बताया गया। यह अर्थ दलित समुदायों पर होते शोषण को बयां करते हैं।
अगर इतिहास के पन्नो को आज के युग से पीछे पलटा जाये तो भी यही देखने को मिलेगा की नामी समाज और उच्च मानी जानी वाली जातियां किस तरह से युगों से दलितों को प्रताड़ित करती हुई आ रही हैं। आज भी कर रही हैं। खासतौर से दलित महिलाओं को। दलित महिलाओं के साथ हिंसक बर्ताव, यौन हिंसा, जातिगत हिंसा, उन्हें शोषित करने के ज़रिये उच्च मानी जानी वाली जातियां समाज में अपनी सत्ता को बरकरार रखते हैं। अपनी ताकत की आज़माइश करते हैं। यह करना कोई नई बात नहीं है। महिलाओं को हमेशा से ही हथियार बनाकर समाज और उच्च माने जाने वाले लोग खुद को शक्तिशाली दिखाते आ रहे हैं। ये नामी समाज जान-बूझकर दलित महिलाओं को निशाना बनाता है क्यूंकि उनके अनुसार दलितों को तो खुद के लिए लड़ने का भी अधिकार नहीं है। वह उन्हें जंतु से भी क्षीण मानते हैं जिनका कोई अस्तित्व नहीं है।
आज हम आपके साथ हरियाणा में दलित महिलाओं के साथ होती यौन हिंसा और उनके साथ होते भेदभाव की एक रिपोर्ट पेश कर रहे हैं। यह रिपोर्ट ‘स्वाभिमान सोसाइटी’ और ‘इक्वलिटी नाउ’ द्वारा प्रस्तुत की गयी है। इसके साथ ही खबर लहरिया द्वारा दलित महिलाओं के साथ होते अन्याय और बलात्कार से जुड़ी हुई रिपोर्टिंग भी शेयर कर रहे हैं। स्वाभिमान सोसाइटी’ युवा दलित महिलाओं के नेतृत्व में महिलाओं का एक संगठन है व ‘इक्वलिटी नाउ एक अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन है जो दुनिया भर की सभी महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों की रक्षा और उसे बढ़ावा देने के लिए काम करता है।
हरियाणा में दलित ,महिलाओं और लड़कियों के साथ होती यौन हिंसाओं की रिपोर्ट:
घटनाओं की पूर्ण जानकारी नहीं आती सामने
रिपोर्ट के अनुसार देश भर में हर दिन लगभग 10 दलित महिलाओं या लड़कियों के साथ बलात्कार किया जाता है। लेकिन असल बात यह है कि इनमें से बहुत कम ही मामले सामने आते हैं। ऐसा इसलिए क्यूंकि कुछ मामलों का सिर्फ छोटा सा ही अंश जानकारी के रूप में सामने आता है। पिछड़े कस्बों और गाँवों में आमतौर पर महिलाओं और उनके परिवार को यह कहते हुए डरा-धमकाकर चुप करा दिया जाता है कि वह दलित हैं और वह उन उच्च माने जाने वाली जातियों के लोगों का कुछ नहीं कर सकते, क्यूंकि उनके पास शक्ति है। परिणाम यह आता है कि आरोपी आज़ादी से घूमता है और पीड़िता हिंसा के डर से मौन हो जाती है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि अकेले हरियाणा राज्य में हर दिन 4 महिलाओं के साथ बलात्कार होता है। रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि उच्च माने जानी वाली जातियों द्वारा जान-बूझकर दलित महिलाओं और लड़कियों को हिंसक घटनाओं के लिए निशाना बनाया जाता है। उन्हें पता होता है कि दलित महिलाओं के खिलाफ मामलों में उन्हें “क्लीन चिट” मिल जायेगी।
दलित महिलाओं के साथ बलात्कार से जुड़ी आंकड़े की रिपोर्ट
संगठित रिपोर्ट के अनुसार, हरियाणा में दलित महिलाओं और लड़कियों के साथ हुए 40 बलात्कार के मामलों के आंकड़े तैयार किये गए हैं जो की इस प्रकार हैं:-
1. 80 प्रतिशत अपराध उच्च माने जाने वाली शक्तिशाली जातियों के पुरुषों द्वारा किया जाता है।
2. 57.5 प्रतिशत मामलों में सामाजिक दबाव, मामले का निपटारा, पीड़िता के परिवार को डराना, न्याय के रास्ते में बाधा उत्पन्न करना पाया गया।
3. 80 प्रतिशत मामलों में देखा गया कि खाप पंचायत के नाम से की जाने वाली अधिकतर ग्राम परिषदों द्वारा आपराधिक मामलों को रोकने और न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप में करने के लिए आर्थिक, सामाजिक और राजनितिक शक्ति का प्रयोग किया जाता है।
2018 और 2019 के बलात्कार के मामलों का विश्लेषण
1. 97 प्रतिशत ( 2019 का डाटा) मामलों में पीड़िता अपराधी को जानती थी। मतलब यह है कि अपराधी घर-परिवार, दोस्त, रिश्तेदार या आस-पड़ोस का ही व्यक्ति था।
2. राष्ट्रीय स्तर पर पलिस द्वारा जांच के तहत कुल बलात्कार के मामलों में से साल 2018 में 7% और 2019 में 12% मामलों की अंतिम रिपोर्ट को झूठा बताया गया। वहीं हरियाणा में, पुलिस द्वारा जांच के तहत कुल बलात्कार के मामलों में से 33 % से अधिक मामलों को अंतिम रिपोर्ट में झूठा बताया गया। इसी तरह से साल 2019 में अनुसूचित जातियों पर अत्याचार के मामलों में हरियाणा पुलिस ने 37 फीसदी मामलों को गलत घोषित किया।
3. बलात्कार के लगभग 42% मामलों को पलिस जांच के दौरान ही छोड़ देती है (बिना आरोप दायर किए), जिससे अदालतों के ज़रिये मिलने वाला न्याय पीड़िता को कभी मिल ही नहीं पाता। ( 2018 का डाटा)
उच्च जातियां करती हैं मामलों को प्रभावित
रिपोर्ट के अनुसार, दलित महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ अपराधों के मामलों में अक्सर आरोपियों की जाति और सामाजिक स्थिति पीड़ितों के न्याय तक की पहुंच को प्रभावित करने में अहम भमिूका निभाती है। अध्ययन में पाया गया कि 80% से अधिक मामलों में सारे अभियुक्त उच्च माने जानी वाली जाति से थे और 90% से अधिक मामलों में, कम से कम एक अपराधी उच्च जाति से था।
यह निष्कर्ष 2019 में हरियाणा एससीआरबी (SCRB) के आधिकारिक आंकड़ों को दर्शाते हैं, जो बताते हैं कि दलित महिलाओं के खिलाफ बलात्कार के 105 मामलों में, 88.5% केस में अपराधी गैर-अनसुचिूत जाति समदाय से थे। ऐसे मामलों में बलात्कार का उद्देश्य जातिगत दबदबा बनाये रखना और राजनीतिक शक्ति को काबू में रखना होता है।
सामूहिक बलात्कार के बाद हत्या से जुड़े आंकड़े
एनसीआरबी द्वारा 2018 में दर्ज आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार बलात्कार के लगभग 12% मामले और 2019 में 11% मामले सामूहिक बलात्कार के थे। हालांकि, इसमें दलित महिलाओं से जुड़े हुए कोई अलग से आंकड़े नहीं है।
अध्ययन में शामिल 40 मामलों में से 62.5% (25 मामले) केस सामूहिक बलात्कार के थे। इसके साथ ही साल 2018 के डाटा के अनुसार, हरियाणा में महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ 1296 बलात्कार के मामलों में से 26 बलात्कार और हत्या के मामले (लगभग 2%) थे। वहीं साल 2019 में 1480 बलात्कार के मामलों में से 6 बलात्कार और हत्या के मामले (लगभग 0.4%) थे।
न्यायिक प्रक्रिया के दौरान आती चुनौतियाँ
1. पीड़ितों को उनके अधिकारों के बारे में नहीं बताया जाता और न ही उन्हें किसी से सलाह मिलती है।
2. पीड़ितों को वकील से वंचित रखा जाता है जबकि एसटी-एससी अधिनियम के अनुसार पीड़ित को ‘विशेष सरकारी वकील’ मिलना चाहिए। जब भी कोई वकील के लिए आवेदन करता है तो आखिरी समय में मूल सरकारी अभियोजक मामले में उपस्थित होने से इंकार कर देता है।
3. मामले के परीक्षण में देरी की जाती है।
4. उनसे असंवेदनशील और असहनीय प्रश्न पूछे जाते हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के नियम के अनुसार वकील पीड़िता से आक्रमक सवाल नहीं पूछ सकता लेकिन फिर भी ऐसे सवाल वकीलों द्वारा अप्रसांगिक ढंग से पूछे जाते हैं।
4. 32.5% बलात्कार की घटना के बाद परिवार पर दबाव बनाया जाता है और परिवार गाँव छोड़ने के लिए मज़बूर हो जाता है। वहीं कई परिवार समझौता करने के बाद ही गाँव में रह पाते हैं।
हाथरस घटना से जुड़ी खबर लहरिया की रिपोर्टिंग का अंश
जब यूपी के हाथरस में 14 सितंबर 2020 को एक 19 साल की दलित लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार का मामला सामने आया तो इस घटना की देश भर में व्यापक कवरेज हुई। उच्च माने जाने वाली जातियों के चार पुरुषों द्वारा घटना को अंजाम दिया गया। घटना के दो हफ़्ते बाद दिल्ली के अस्पताल में पीड़िता की मौत हो गयी। इसके अलावा यूपी पुलिस द्वारा पीड़िता के परिवार को घर में बंद करके रातों रात बिना उनकी मंज़ूरी के उनकी बेटी के शव को जला दिया गया लेकिन पुलिस हर बार अपने इस कृत्य के आरोप को खारिज़ करती रही।
खबर लहरिया की ब्यूरो चीफ़ मीरा देवी दलित समुदायों के साथ बलात्कार की घटना को लेकर कहती हैं कि ज़्यादातर परिवारों द्वारा मामले को घर में ही सुलझाने की कोशिश की जाती है। वह नहीं चाहते कि घर का मामला पुलिस तक जाए। हाथरस मामले में रिपोर्टिंग के दौरान मीरा देवी ने बताया कि परिवार को पुलिस द्वारा किसी भी प्रकार की सुरक्षा नहीं दी गयी। लोग दलित राजनीती के नाम पर भेदभाव करके अन्य बातों को नज़रअंदाज़ करते हैं।
मीरा देवी कहती हैं कि “दलितों के साथ हो रहे बलात्कर पर जब बात करो तो ये समाज नसीहत देता है कि लड़की तो लड़की है चाहे वह दलित हो या स्वर्ण। लेकिन अगर दलित के साथ बलात्कर हुआ है तो उसको क्यों न कहा जाए? समाज या उच्च मानी जाने वाली जातियों को इससे दिक्कत क्यों होती है? शायद इसलिए न कि दलितों को उनका विशेषाधिकार न मिले और उसके तहत वह कार्यवाही से बच जाएं। एक बात और कि वह इससे समाज में बेइज्जत हो जाएंगे। ये स्थिति सबसे ज्यादा देखने को मिली हाथरस में दलित लड़की के साथ हुए बलात्कर मामले में।”
वहीं खबर लहरिया की चीफ़ एडिटर कविता बुंदेलखंडी ने बताया कि मामले को लेकर उन्होंने गाँव के ठाकुर जाति के परिवारों से भी बात की। यह समझने का प्रयास किया गया कि मामले को लेकर उनकी क्या भावना है। लोगों द्वारा कहा गया कि पूरा मामला ही झूठा है और उन्हें बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। रिपोर्टिंग में यह भी सामने आया कि पूरे गांव में सिर्फ तीन ही वाल्मीकि परिवार रहते हैं और बाकी सभी ठाकुर जाति के हैं। निकलने की सड़क भी एक ही है।
इसके बाद यह समझ पाना ज़्यादा मुश्किल नहीं है कि घटना के बाद बाकी के दलित परिवार भयावह माहौल में जी रहे होंगे। मामले को लेकर कोई भी बड़ी माने जाने वाली जाति सामने से आकर खड़ी नहीं हुई। किसी ने घटना की निंदा नहीं की। सब अपनी जाति की साख बचाने में लगे हुए थे।
संविधान में भी दलित समुदाय है सबसे नीचे
इक्वलिटी नाउ की 24 नवंबर 2020 की रिपोर्ट कहती है कि भारतीय संविधान में दलित को आधिकारिक तौर पर अनुसूचित जाति के रूप में नामित किया गया है यानी भारत में सबसे नीचे मानी वाली जाति। दलित महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ लिंग आधारित हिंसा के मामले में लिंग, वर्ग और जाति का अंतर्संबंध आमतौर पर अदृश्य रहता है। दलित महिलाओं और लड़कियों के लिए कानूनी व्यवस्था तक पहुंचना और न्याय प्राप्त करना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है।
यूँ तो भारतीय संविधान समानता के अधिकार और कानून के समान संरक्षण की गारंटी देता है और धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को रोकने की बात करता है। लेकिन दलित महिलाओं और लड़कियों के साथ होती बलात्कार की घटनाएं लगातार संविधान के अधिकारों और उसके नियमों पर सवाल उठाती हैं। आखिर ये सुरक्षा और नियम दलित महिलाओं और लड़कियों को क्यों नहीं मिल पाते? क्यों उन्हें न्याय के लिए चुनौतियों का सामना करना पड़ता है? जातिगत नियम बनाये जाने के बाद भी क्यों जाति के नाम पर हिंसाएं हो रही हैं?
यौन हिंसा से मुक्त जीवन जी पाना न केवल एक मौलिक मानव अधिकार है बल्कि 2030 के सतत विकास का एजेंडा (एसडीजी (SDGs) भी है। जिसका लक्ष्य है “सभी महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव को समाप्त करना।” इसमें महिलाओं के साथ होता शोषण और महिला तस्करी भी शामिल है। लेकिन जहां प्रशासन ही मामले को दबाने की कोशिश कर रही है जैसा की हमें हाथरस मामले में देखने को मिला। क्या ऐसे में सरकार यह कह सकती है कि वह अपने लक्ष्य की पूर्ती के लिए कार्य कर रही है? दलित महिलाओं और लड़कियों पर प्रशासन और उच्च जाति के लोगों द्वारा मामले को दबाने पर ज़ोर दिया जाता है। क्या इसे ही न्यायिक व्यवस्था देना कहा जाता है जिसकी सरकार बात करती है?
दलित महिलाओं के साथ होती यौन हिंसाओं को खत्म करने के लिए हमारे साथ अपनी आवाज़ उठाइए और इस लिंक ( यहां) पर जाकर “टेक एक्शन” फॉर्म भरकर हमारा समर्थन करें।
दलित महिलाओं और लड़कियों से जुड़ी बलात्कार की रिपोर्ट (यहां) क्लिक करके पढ़ें।
“नेशनल काउंसिल ऑफ वूमेन लीडर्स, इक्वलिटी लैब्स, दलित ह्यूमन राइट्स डिफेंडर्स नेटवर्क (डीएचआरडी-नेट) और इक्वलिटी नाउ के साथ मिलकर सोमवार 19 जुलाई को जाति-आधारित यौन हिंसा को समाप्त करने के लिए एक राष्ट्रीय अभियान शुरू करने वाली है।
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