कोरोना और लॉकडाउन पर ब्यूरो चीफ मीरा के सवाल देखिए राजनीति रस राय में : देश में जब सिर्फ चार सौ कोरोना संक्रमित मरीज थे, तब आपने रेल और बसों समेत निजी वाहनों तक का संचालन बन्द कर दिया। लेकिन अब ऐसे कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या सत्तर हजार की सीमा छू चुकी है, आपने रेल, बस और निजी गाड़ियां चलाने की इजाजत दे दी। आखिर क्यों? 3 लॉक-डाउन का मकसद था कि संक्रमित लोगों की कड़ी को तोड़ कर कोरोना को रोक दिया जाए। लेकिन अब कोरोना संक्रमित लोगों की यह संख्या सत्तर हजार तक पहुंच गई। आखिर कैसे? अब क्या आज भी आप खुले दिल से यह कुबूल नहीं करेंगे कि न आपके फैसले सोचे-समझे थे, और न ही आपकी रणनीति किसी संकल्प के तहत लागू किये गए? 4 रणनीतिक तौर पर आपने विपक्ष की नहीं सुनी। और तो और जनता से भी नहीं पूंछा। मैं मान सकती हूं कि इमरजेंसी ऐसे ही लागू होती है तो इमरजेंसी के लिए भी सवाल है कि बिना सोचे समझे ये कैसी व्यवस्था जो सिर्फ मजदूरों, किसानों और गरीबों को ही तोड़ दे। इसी का नतीजा है कि अब तक में देश में 70 हज़ार से ज्यादा लोग संक्रमित हो गए। बांदा में अब तक में 23, चित्रकूट में 3 और महोबा में 2 कोरोना के पॉजिटिव केस हो गए। ये सारे केस ज्यादातर वापस आने वाले मज़दूरों में ही मिले। मतलब गलत निर्णय लेने से कितना बड़ा नुकसान और परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं और आगे न जाने कितनी झेलनी पड़े। 5 कोरोना आपदा से अब तक मे 370 लोग रास्ते मे किसी हादसे का शिकार हुए तो कुछ भूख से मर गए। जो ट्रेन चलाई जा रही है उसमें भी राज्य सरकार कह रही है वो पैसे दे रही है तो केंद्र कह रही है वो दे रही है लेकिन सच्चाई तो ये है कि लोग गहने फोन तक बेच कर किराया दे रहे है। जो मजदूरों को सरकार बुला रही हैं उनकी ठीक से जांच और कोरेंटाईन की भी पुख्ता व्यवस्था नहीं है। 6 सरकार के निर्णय इतने कमजोर और गलत समय पर क्यों? अगर लोकडाउन करने से पहले मजदूरों को घर वापसी का ऐलान हुआ होता तो कितना अच्छा होता। सरकार भी खुश, जनता भी खुश और कोरोना का विकराल रूप देखने को न मिलता। पैदल हो या सरकार द्वारा चलाये गए साधनों से मजदूर वापस आ रहे है जिसके कारण कोरोना बीमारी शहरों से गांवों तक फैल रही है। अर्थव्यवस्था को लंबे से घाटा लग गया है। कुल मिलाकर समय रहते निर्णय लिया गया होता तो तो न अर्थव्यवस्था खराब होती और न ही बीमारी बढ़ती। 7 इस मामले पर हमने कबरेज किया। लोगों की राय जानी कि आखिकार लोग क्या सोच रहे हैं इस मामले पर। कुछ आम जनता तो कुछ नेताओं से बातचीत की। सबका यही कहना था कि सरकार का निर्णय गलत था। निर्णय गलत लेने पर सवाल भी उठाए की आखिरकार सरकार की ऐसी कौन से मजबूरी थी कि उसने ऐसा निर्णय लिया। सरकार के निर्णय कमजोर क्यों? ऐसी गंभीर परिस्थितियों में भी सरकार विपक्ष से और जनता से मिलकर क्यों नहीं चल रही। मिलकर चलेगी तभी संगठन में शक्ति आएगी तब बड़ी से बड़ी जंग जीती जा सकती है। इन्हीं कोरोना और लॉकडाउन जैसे सवालों और विचारों के साथ मैं लेती हूं विदा, अगली बार फिर आउंगी एक नए मुद्दे के साथ, तब तक के लिए नमस्कार!