“भंवरा तेरा पानी गजब कर जाए रे, गगरी न फूटे खसम मर जाये रे”, ये गाना गाया है। बुंदेलखंड इलाक़े के चित्रकूट जिले के पाठा क्षेत्र की आदिवासी महिलाओं ने। ये दुःख भरा गीत है इसको अब कहावत के रूप में भी प्रयोग किया जाने लगा है। बुंदेलखंड का पाठा क्षेत्र हर साल पानी की विकराल समस्या से जूझता है। पानी की समस्या लोगों को विरासत में मिली है। यहां बड़े-बड़े पहाड़ और जंगली इलाके होने के कारण यहां के हैंडपंप, कुआं और तालाब, नदी और पोखरे सब सूख जाते हैं पानी का जरिया होता है सिर्फ ‘चोहडा।’
चोहडा उसे कहते जो पहाड़ों से झरता हुआ पानी गड्ढों में भर जाता है और लोग कई कोस जाकर पीने के पानी का इंतजाम करते हैं। मई का महीना लग गया है और मानिकपुर की जनता बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रही है। महिलाएं दुःख भरी आवाज़ में यही गाना गा कर अपनी आप बीती बता रही हैं लेकिन सुनेगा कौन? कोई नहीं न। अगर पानी की समस्या का समाधान होना होता तो आठ साल पहले ही हो जाता। वो कैसे? जानना चाहोगे?
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केंद्रीय सरकार की योजना जल जीवन मिशन है जो यह दावा करती है कि यूपी के गांवों में और शहरों में हर घर में टोटी लगाई जायेगी और हर घर को पानी देगी। ये योजना भी कागजों में फल फूल रही है। कुछ जिलों को तो पानी मुक्त दिखा दिया गया है। मतलब 100/% पानी पहुंचा दिया सरकार ने और सरकारी आंकड़ों में दर्ज हो गया, ये जिला। पता है कौन-सा जिला? नाम है बागपत। ऐसे वैसे नहीं बोल रहे हैं जनाब, हमने बागपत में घर-घर जाकर देखा है और सरकार के आंकड़े भी पढ़ें है। वहां जाकर पता चला कि हर घर में टोटी तो लग गयी है लेकिन पानी की सप्लाई नहीं हुई है। और तो और वहां के दलित बस्तियों में टोटी भी नहीं लगी लेकिन सफेद पन्ने आंकड़ों से रंग दिए गये हैं। है न हैरान करने वाली बात।
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सुनो बुंदेलखंड में भी बड़े-बड़े प्लांट लग रहे हैं नदियों में उन प्लांट को देखकर ही डर लगता है। पता है क्यों क्योंकि हम जल जीवन मिशन की सच्चाई जानने निकले तो बांदा के खटान गांव के यमुना नदी में बन रहे प्लांट को देखा। बाप रे! बाप! इतने बड़े-बड़े पाईप लगाये जा रहे हैं कि आप पाइपों में रहकर बसर कर सकते हैं। मैं सोच रही थी कि अगर सप्लाई चालू हुई तो यह पाईप पूरे नदी का पानी एक दिन में सोख देगें और घर को पानी भी नहीं पहुंचेगा।
पता नहीं सरकार भी का का करती है। जो बचा-कुचा पानी है उसे खत्म कर रही। जबकि पानी की ऐसी व्यवस्था करना चहिए कि बरसात वाला पानी खत्म न हो और हम पानी की पैदावार को बढ़ाएं। घर-घर टोटी लगाने से कुछ नहीं होगा। पेड़ और जंगल काटे जा रहे हैं पहाड़ और नदियां खोखली हो रही हैं तो प्लांट लगा कर क्या करोगे? हां सरकार को फायदा है इसमें, बड़ी-बड़ी कम्पनियों को ठेका दे रही है जिससे बड़े-बड़े पाईप और मशीनें आ गई है। बहुत सारे पाईप सड़क किनारे पड़े धूल खा रहे हैं और प्यासी जनता को जला रहे हैं। सरकार देख कर मजे ले रही है। क्या यही है राम राज? क्या ऐसी ही रहेगी भारत के गांवों की तस्वीर?
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