सुप्रीम कोर्ट द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण लागू करने के फैसले को फ़िलहाल के लिए टाल दिया गया है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने आगे जांच करने का निर्णय लिया है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश राजन गोगोई संग न्यायधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ, इस मामले को चार हफ्ते बाद सुनेगी। पीठ के अनुसार अभी जांच जारी है जिसके चलते वो चार हफ्ते बाद इस पर फैसला सुनाएगी।
शीर्ष अदालत में कई याचिकाएँ हैं जो एनजीओ यूथ फ़ॉर इक्वेलिटी और राजनीतिक कार्यकर्ता तहसीन पूनावाला के संविधान (103वें संशोधन) अधिनियम, 2019 को चुनौती देती हैं।
जैसे की यूथ फ़ॉर इक्वेलिटी की याचिका में कहा गया है: वर्तमान संशोधनों के अनुसार, ओबीसी और एससी / एसटी को आर्थिक आरक्षण के दायरे से बाहर करने का मतलब है जो सामान्य वर्ग से गरीब हैं, केवल वही लाभ प्राप्त करेंगे।
अक्सर ओबीसी और एससी / एसटी में कुलीन वर्ग बार-बार आरक्षण लाभ प्राप्त करते हैं जिस कारण इन श्रेणियों के गरीब वर्ग पूरी तरह से वंचित रह जाते हैं।
संसद के दोनों सदनों ने शीतकालीन सत्र के दौरान संविधान (103वें संशोधन) बिल, 2019 पारित किया, जिससे सरकारी नौकरियों और उच्चतर शिक्षा संस्थानों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया गया है।
कई राज्यों ने पहले ही आरक्षण लागू कर दिया है, जिसमें गुजरात और हिमाचल प्रदेश भी शामिल हैं।
अधिनियम के तहत, जिन लोगों के परिवारों में सभी स्रोतों से 8 लाख रुपये तक की सकल वार्षिक आय है, केवल वही इस आरक्षण का लाभ उठा सकते हैं।
जिन परिवारों के पास पांच एकड़ से अधिक कृषि भूमि है, 1,000 वर्ग फुट से अधिक घर हैं, अधिसूचित नगरपालिका क्षेत्र में 100 से अधिक यार्ड भूखंड, या गैर-अधिसूचित नगरपालिका क्षेत्र में 200 से अधिक यार्ड भूखंड हैं वे इस आरक्षण का लाभ नहीं उठा सकते हैं।