सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले की 3 जनवरी को 189वीं जयंती देश भर में मनाई गई। उनका जन्म 3 जनवरी 1831 में महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगांव में हुआ था। वह भारत की प्रथम शिक्षिका, समाज सुधारिका एवं मराठी कवियत्री थीं। उन्होंने खुद सामाजिक कुरूतियों का सामना किया शायद यही कारण बना उनको दुनिया के सामने एक ऐसा आदर्श पेश करने का जो आज भी मिशाल है। लेकिन आज उनको सिर्फ एक दिन जयंती के रूप में मना कर याद किया जाता है। उनकी तस्वीरें डाक टिकटों में ही देखने को मिलती हैं। जबकि उनकी तस्वीरें हर सरकारी या गैर सरकारी स्कूलों में लगाई जानी चाहिए।
सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले का विवाह नौ साल की उम्र में सन 1840 में बारह साल के ज्योतिराव गोविंदराव फुले से हुआ था। वह खुद अपनी पढ़ाई पूरी की और ठान लिया सामाजिक कुरूतियों से जंग लेने का। सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले जिन्होंने औरतों को ही नहीं, मर्दों को भी उनकी जड़ता और मूर्खता से आज़ाद किया। दुनिया में लगातार विकसित और मुखर हो रही नारीवादी सोच की ठोस बुनियाद वह और उनके पति ने मिलकर डाली। दोनों ने समाज की कुप्रथाओं को पहचाना, विरोध किया और उनका समाधान पेश किया।
सन 1848 में उन्होंने पुणे शहर के भिड़ेवाडी में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला। ये ब्राह्मणवाद को राज नहीं आया। एक तो महिला वह भी ऐसी जाति से जिससे पढ़ाई के अधिकार खुद छिन गए हों वह कैसे स्कूल खोल सकती है, वह भी लड़कियों के लिए। शूद्र-अतिशूद्रों को पढ़ने लिखने का अधिकार नहीं है। इसलिए जब सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले स्कूल पढ़ाने जातीं तो दो साड़ियां लेकर जातीं थीं क्योकि रास्ते में कुछ लोग उनपर गोबर फेंक देते थे। जो साड़ी घर से पहन कर जातीं वह रास्ते में दुर्गंध से भर जाती। स्कूल पहुंच कर दूसरी साड़ी पहनकर लड़कियों को पढ़ाने लगती थीं।
सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले ने विधवाओं को जिंदगी जीने का अधिकार दिलाया। विधवाओं को गर्भवती करके उनको मरने के लिए छोड़ दिया जाता था। इस विकराल समस्या से निपटने के लिए उन्होंने 1892 में महिला सेवा मंडल की स्थापना की। साथ ही पुणे की विधवा स्त्रियों के आर्थिक विकास के लिए देश का पहला महिला संगठन बनाया। इस संगठन में हर 15 दिनों में सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले स्वयं सभी गरीब दलित और विधवा स्त्रियों से चर्चा करतीं, उनकी समस्या सुनतीं और उसे दूर करने का उपाय भी सुझाती। सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले और उनके पति ने मिलकर 28 जनवरी 1853 में अपने पड़ोसी मित्र और आंदोलन के साथी उस्मान शेख के घर में बाल हत्या प्रतिबंधक गृह की स्थापना की जिसकी पूरी जिम्मेदारी उन्होंने खुद संभाली। वहां सभी बेसहारा गर्भवती स्त्रियों को बगैर किसी सवाल के शामिल कर उनकी देखभाल की जाती थी। बच्चा पैदा होने पर उनके बच्चों की परवरिश की जाती जिसके लिए वहीं पालना घर भी बनाया गया। यह समस्या कितनी विकराल थी इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मात्र 4 सालों के अंदर ही 100 से अधिक विधवा स्त्रियों ने इस गृह में बच्चों को जन्म दिया।
सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले ने पहला स्कूल ही नहीं खोला, पहली अध्यापिका ही नहीं बनीं बल्कि भारत में औरतें अब वैसी नहीं दिखेंगी जैसी दिखती आई हैं, इसका पहला जीता जागता मौलिक उदाहरण बन गईं। हम ऐसी महान प्रथम महिला को सत् सत् नमन करते हैं।