केरल के सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश करने की इजाज़त देते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इस फैसले के खिलाफ याचिकाओं को सुनने की मंजूरी दे दी है। इस पर राज्य के मुख्यमंत्री पिनारय विजयन ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया है कि “इस आदेश को लागू करने के लिए, सरकार के प्रयासों ने कई श्रद्धालुओं की भावनाओं को ठेस पहुँचाया है”।
फैसले के खिलाफ हिंदू संगठनों के नेतृत्व में हिंसक विरोधों के राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव और इसे लागू करने के राज्य के प्रयासों के बारे में जवाब देते हुए विजयन ने कहा: “इस फैसले ने कुछ श्रद्धालुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाते हुए उन्हें अलग कर दिया है। हालांकि, यह अलगाव केवल अस्थायी है और सरकार के पास इसे लागू करने की बजाये कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है”।
मंगलवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और जस्टिस आर.एफ नरीमन, ए.एम खानविलकर, डी.वाई चन्द्रचुद और इंदु मल्होत्रा की एक खंडपीठ में 48 याचिकाओं को पुनर्विचार करके सुना जायेगा।
निर्देशों को लागू करने और पुनर्विचार की मांग करने के निर्देशों के लिए तीन अलग याचिकाएं सीजेआई गोगोई और जस्टिस संजय किशन कौल और के.एम जोसेफ के समक्ष रखी जाएँगी।
इस बीच, उनका कहना है कि भले ही आने वाले चुनावों में उनकी सरकार कुछ वोट खो देगी लेकिन फिर भी वो “सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ते रहेंगे”। विजयन का ये भी कहना है कि राज्य में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बनाने के लिए आरएसएस-बीजेपी द्वारा धर्मनिरपेक्ष को तोड़ने के उद्देश्य से प्रयास भी किये जा रहे थे।
“केरल धर्मनिरपेक्ष धारा काफी लंबी प्रक्रिया से बनाई गई है। संघ परिवार लंबे समय से इस शांतिपूर्ण माहौल को तोड़ने की कोशिश कर रहा है। जिसके चलते विजयन ने कहा कि सबरीमाला उनके लिए एक और मौका है”।
17 नवंबर को दो महीने के वार्षिक उत्सव के लिए मंदिर खोलने के साथ, सूत्रों ने कहा कि सीपीएम राज्य सरकार इस मुद्दे के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा के लिए बुधवार को अखिल-पक्षीय बैठक आयोजित करने की योजना बना रही है।
28 सितंबर के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर केरल में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किये गए थे, जहां विभिन्न समूहों ने मंदिर के अंदर 10 से 50 वर्ष की आयु के बीच महिलाओं को अनुमति देने के लिए इस कदम का विरोध किया था।