एक दिन जब विकास अपने घर पर नहीं थे, उसी समय ठेकेदार उनके घर पर आ धमका और उनकी चार महीने की गर्भवती पत्नी के साथ बलात्कार करने की कोशिश की।
ढाई करोड़ से भी अधिक आबादी वाला आदिवासी बाहुल्य, खनिज संपत्ति से भरपूर और तीव्र गति से विकसित हो रहे प्रदेश छत्तीसगढ़ में कुछ घटनाएं ऐसी भी घट रही हैं, जिस पर या तो प्रशासन आँख मूँद लेता है या फिर उस पर जानबूझकर ध्यान नहीं दिया जाता। इन्हीं मुद्दों में से एक है पलायन। ताज्जुब की बात तो यह है कि जिस राज्य में बाहर से आने वाले प्रवासी लोगों को नौकरियों से लेकर रोजगार तक आसानी से उपलब्ध हो जाता है, लेकिन आज भी यहाँ कुछ स्थानीय लोग ऐसे हैं जिन्हें न केवल उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है, बल्किवे मानव तस्करों के चंगुल में फंसकर कई बार परिवार सहित अत्याचार, शोषण व अपराध के शिकार हो जाते हैं।
मुंशी के तौर पर गए थे लेकिन मिल गया ईंट बनाने का काम-
छत्तीसगढ़ के महासमुंद ज़िले के पिथौरा ब्लॉक के बेल्ही गाँव के रहने वाले विकास सोना का भी आरोप है कि वो एक बुंदेली मानव तस्करी में लिप्त दलाल माखन यादव के चंगुल में आ गए। विकास का कहना है कि वो माखन यादव की बातों में आकर 11 अक्टूबर 2019 को अपनी गर्भवती पत्नी और दो साल की बच्ची को लेकर झारखंड के चतरा ज़िले के बरेली गाँव के ठेकेदार मुमताज़ के ईंट भट्टे में मुंशी का काम करने आ गए। पर यहाँ पर तो कुछ और ही होना था, ठेकेदार ने उन्हें ईंट बनाने का काम दे दिया। विकास बताते हैं कि एक दिन जब वो अपने घर पर नहीं थे, उसी समय ठेकेदार उनके घर पर आ धमका
और उनकी चार महीने की गर्भवती पत्नी के साथ बलात्कार करने की कोशिश की । पत्नी के शोर मचाने पर ठेकेदार उसपर हमला करके वहां से फरार हो गया।
शारीरिक और मानसिक शोषण का शिकार हुआ परिवार-
इस हादसे से गुस्साए विकास ने जब काम छोड़ कर घर जाने की बात कही, तो ठेकेदार ने उसके साथ मारपीट भी करी और ईंट भट्टे के मालिक ने उनके पैसे भी नहीं दिए। इसी बीच विकास की पत्नी की काफी तबियत भी खराब रहने लगी और काफी मिन्नतों के बाद उन्हें ईंट भट्टे से सिर्फ 500 रूपए की मदद मिली। कुछ महीने बाद ऑपरेशन से विकास की पत्नी ने बच्चे को भी जन्म दिया, लेकिन अस्पताल के खर्च उठाने के चलते विकास और उनका परिवार कर्ज़े में डूब गया।
अब विकास को अपने सिर से क़र्ज़ का बोझ मिटाने के लिए विकास को दोगुना काम करना पड़ रहा था, इसके साथ ही उन्हें अपने मालिक की मारपीट एवं अत्याचार को भी सहना पड़ता था। लेकिन उसी गाँव का एक संजय नाम व्यक्ति इस कठिन समय में विकास और उनके परिवार के लिए वरदान के रूप में आ खड़ा हुआ। वह विकास और उसके परिवार को अपने गाँव ले आया और एक दूसरे काम में उन्हें रोज़गार दिलवाया।
दलित आदिवासी मंच ने बुरे वक़्त में दिया साथ-
विकास के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक होने ही लगी थी कि कोरोना महामारी के कारण वर्ष 2020 में देशभर में लॉकडाउन लग गया। और उनके घर में फिर से खाने के लाले पड़ गए। ऐसे में विकास की हालत के बारे में दलित आदिवासी मंच को पता चल गया। इस संस्था ने 10 हज़ार रूपए इकट्ठा कर विकास को भेजे और 10 सितंबर 2020 को विकास एवं उनके परिवार को उनके गाँव पिथारा वापस लाया गया।
इसके बाद संस्था की पहल पर पुलिस अधीक्षक के पास आवदेन भी दिया गया और भट्टा दलाल के ऊपर कार्यवाही की शुरूआत की गई और दलाल को सलाखों के पीछे पहुंचाया गया।
विकास को तो इंसाफ मिल गया लेकिन मानव तस्करी में फंसे हर मज़दूर और परिवारों की कहानी का सुखद अंत नहीं होता। छत्तीसगढ़ में करीब 40 प्रतिशत से अधिक लोग कमज़ोर तबके में आते हैं, जैसे कि भूमिहीन, गरीब, पिछड़े, आदिवासी जिनको इस प्रकार के अन्याय एवं अत्याचार का सामना करना पड़ता है।
छत्तीसगढ़ में पलायन के कारण-
इस राज्य में पलायन के कई कारण हैं, गरीब परिवारों के घर में अगर कोई बीमार पड़ता है, किसी की शादी होती है तो लोगों को ज़मींदार या फिर साहूकारी से ब्याज़ से पैसे लेने पड़ते हैं, जिनको चुकाने के लिए अलग-अलग राज्यों में मज़दूरी करने के लिए लोग जाते हैं। राज्य के ज़्यादातर लोग पुणे की गन्ना फैक्ट्री, उत्तर प्रदेश, झारखंड, में ईंट भट्टे, सूरत, महाराष्ट्र में कपड़ा मिल और बड़े-बड़े शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर में बिल्डिंग बनाने के लिए जाते हैं। छत्तीसगढ़ के ज़्यादातर पुरूष पलायन करते समय अपने पूरे परिवार को अपने साथ में लेकर जाते हैं।
आँकड़ों के अनुसार, छत्तीसगढ़ में जो लोग पलायन करते हैं उनमें से प्रति वर्ष 50 प्रतिशत लोग मालिक के पैसे न चुकाने के चलते बंधुआ मज़दूर की तरह जीवन यापन करते हैं। उनके साथ मारपीट, दैहिक शोषण होता रहता है। मज़दूरों को एक मालिक से दूसरे मालिक के पास बेच दिया जाता है। ईंट भट्टे या कंपनियों में तो महिलाओं के साथ छेड़खानी व बलात्कार एक आम सी बात हो गई है। आर्थिक तौर पर मजबूर ये लोग अपने साथ हो रहे शोषण की रिपोर्ट दर्ज कराने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाते।
मानव तस्करी (रोकथाम, संरक्षण और पुनर्वास) बिल, 2018 आखिर है क्या?
मानव तस्करी पर ये बिल सभी प्रकार की तस्करी, और तस्करी पीड़ितों के बचाव, संरक्षण और पुनर्वास की जांच के लिए एक कानून बनाता है।यह बिल जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर जांच और पुनर्वास प्राधिकरणों की स्थापना प्रदान करता है। पीड़ितों को बचाने और तस्करी के मामलों की जांच के लिए एंटी-तस्करी
इकाइयों की स्थापना की जाएगी। पुनर्वास समितियां बचाए गए पीड़ितों को देखभाल और पुनर्वास प्रदान करेंगी।
यह बिल तस्करी से जुड़े कुछ उद्देश्यों को तस्करी के ‘बढ़ते’ रूपों के रूप में वर्गीकृत करता है। इनमें मजबूर श्रमिकों, बच्चों को जन्म देने, भिक्षा, या प्रारंभिक यौन परिपक्वता को प्रेरित करने जैसी तस्करी को शामिल किया गया है। बढ़ी हुई तस्करी एक उच्च सजा की मांग करती है।
बिल से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे और विश्लेषण
– ये बिल, एक मालिक या किसी भी नियमित व्यक्ति को दंड देते है, अगर उसके द्वारा जानबूझकर तस्करी करने की अनुमति दी जाती है। बिल के तहत, मालिक या उस व्यक्ति को तब तक अपराधी माना जाता है, जब तक कि वे उसे खुद से साबित न कर सके। यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन कर सकता है।
– यह बिल केवल पीड़ितों को प्रतिरक्षा प्रदान करता है, अगर वह दस साल से अधिक की कारावास के साथ दंडनीय अपराध करता है और कम अपराधों के लिए नहीं।
– यह बिल उन व्यक्तियों को दंड प्रदान करता है जो ऐसी सामग्री या किसी चीज़ को वितरित या प्रकाशित करते हैं जो आगे जाकर तस्करी का कारण बन सकते हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि अगर कार्य को तस्करी के परिणामस्वरूप होने की संभावना है तो यह कैसे निर्धारित किया जाएगा।
– भिक्षा जैसे कुछ गंभीर अपराधों की सजा गुलामी जैसे कुछ अन्य अपराधों की सजा से अधिक मानी जाएगी।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो के अनुसार, 2016 में भारतीय दंड संहिता, 1860 के तहत भारत में मानव तस्करी के कुल 8,132 मामलों की सूचना मिली थी। यह पिछले वर्ष की रिपोर्ट के मामलों की संख्या से 15% अधिक है। उसी वर्ष (2016) में, 23,117 तस्करी पीड़ितों को बचाया गया था। इनमें से, सबसे अधिक संख्या में लोग मजबूर श्रम (45.5%) जैसी तस्करी का शिकार बने, इसके बाद वेश्यावृत्ति (21.5%) को रखा गया है।
इसे खबर लहरिया के लिए छत्तीसगढ़ से राजिम द्वारा रिपोर्ट किया गया है।
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