कोरोना महामारी का बुरा असर पूरी दुनिया ने देखा, लेकिन इसने सबसे ज्यादा प्रभावित गरीब और हाशिए पर पड़े लोगों को किया. वो लोग जिनके लिए सामान्य परिस्थितियों में भी स्वास्थ्य सुविधाएं हासिल करना किसी संघर्ष से कम नहीं होता. एक तो स्वास्थ्य सुविधाएं जुटाना वैसे ही मुश्किल, उसपर सोशल मीडिया पर आने वाली अफवाहों ने मुश्किलें और बढ़ा दी थीं. क्योंकि इन अफवाहों के जाल में फंसकर लोग वैक्सीन लेने से हिचकिचाने लगे थे.
ये भी देखें – कोरोना संक्रमण से बचने के लिए किस मास्क को चुनें? यहां है जवाब | Fact Check
वैक्सीन से जुड़ी अफवाहों से निपटना बड़ी चुनौती
अफवाहें ग्रामीणों में वैक्सीन को लेकर तो डर पैदा कर ही रही थीं. साथ ही कोरोना के कुछ ऐसे ‘शर्तिया इलाजों’ का भी दावा किया जा रहा था जिनका कोई वैज्ञानिक आधार ही नहीं है. मसलन नाक में सरसों का तेल डालने से कोरोना ठीक होगा, गोमूत्र से कोरोना ठीक होगा, कपूर सूंघने से ऑक्सीजन लेवल बढ़ेगा. क्विंट की वेबकूफ टीम लगातार इन तमाम दावों पर रिसर्च कर, वैज्ञानिकों से बात कर इनका सच पता लगाती रही.
क्विंट और वीडियो वॉलेंटियर्स की टीम ने मिलकर सुदूर क्षेत्र में रह रहे लोगों तक वैक्सीन और कोरोना को लेकर फैल रही अफवाहों का सच बताया. हमारी फैक्ट चेक स्टोरीज का सार हमने ग्रामीणों तक उन्हीं की भाषा में पहुंचाया, जिससे वो अफवाहों से मुक्त हों और बेहिचक वैक्सीन लगवाएं. हमारी फैक्ट चेक स्टोरीज का असर कई जगहों पर होता दिखा भी.
25 लाख लोगों तक पहुंचाया सच
क्विंट की फैक्ट चेक स्टोरीज को वीडियो वॉलेंटियर्स की टीम ने जमीनी स्तर तक पहुंचाने का काम किया. हमारा फैक्ट चेक कंटेंट अनुमानित 25 लाख लोगों तक अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और आयोजित किए गए कैंपेन के जरिए पहुंचा. स्थानीय अखबारों में भी हमने उन अफवाहों का सच दिखाता कंटेंट छपवाया, जिन्हें सच मानकर लोग वैक्सीन लेने में हिचक रहे थे.
ये भी देखें – क्या होता है कोविड री-इंफेक्शन और क्या है इसका इलाज? | Fact Check
यह लेख खबर लहरिया और द क्विंट की पार्टनरशिप का हिस्सा है।
यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें