लोक सभा ने पिछले सप्ताह ही बिल पास कर दिया था।
राज्य सभा ने पिछले सप्ताह वीरवार को बिल पास कर दिया। विपक्ष के सभी सदस्य विधेयक के विरोध में सदन से बाहर चले गए। सूचना का अधिकार अधिनियम में सुधार का यह कानून लोक सभा में पहले ही पारित हो चुका है। अब यह अनुमति लेने के लिए राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद को भेजा जाएगा।
कानून में सुधार के बाद सरकार के पास हक़ रहेगा कि वह RTI के अधिकार के अंतर्गत आने वाले सभी कर्मचारियों की तनख्वाह, कार्य अवधि तथा अन्य ज़रूरी स्थितियां और मद निर्धारित करे सकें। केन्द्र ने कहा कि वह पारदर्शिता के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। मंगलवार को संयुक्त प्रगतशील गठबंधन की चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने कहा कि जब लोकसभा में यह सुधार बिल पास हुआ उस समय RTI विधेयक ‘मौत की कगार पर’ पहुंच गया।
अधिकतर विपक्षी दल चाहते थे कि बिल की जांच करने के लिए उसे चयन समिति के पास भेजा जाना चाहिए। हालांकि 117 वोट इसके पक्ष में आए जबकि 75 सांसदों ने इसके विपक्ष में वोट ड़ाला।
सांसद सीएम रमेश जो अभी तेलगुदेशम पार्टी छोड़ कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए हैं उन्हें अन्य सदस्यों से स्लिप पर हस्ताक्षर करवाता देख कर विपक्ष नाराज़ हुआ। सभी सांसद विरोध प्रर्दशन के लिए सांसद बीच में बने स्थान में एकत्रित हो गए।
विपक्ष के अनुसार PTI ने बताया है कि विधेयक को जांच के लिए भेजने से सरकार की धमकी के कारण मना कर दिया गया।
विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा, ‘सदन ने देखा है कि किस तरह ‘303 सीटें जीती गईं।’ लोकसभा चुनावों में बीजेपी द्वारा जीती गईं सीटों की संख्या पर बोलते हुए उन्होंने कहा। उन्होंने यह भी कहा कि बीजेपी और उसके अन्य समर्थक दलों के पास पूरा समर्थन नहीं है।
इसके बाद विपक्ष सदन से उठ कर बाहर चला गया।
बाद में ट्वीट के जरिए तृणमूल कांग्रेस सदस्य डेरेक ओ’ब्रायन ने कहा कि सूचना का अधिकार अब ‘धमकी का अधिकार’ बन गया है। उन्होंने पूछा, ‘क्या बीजेपी ने इसी नीति से 303 सीटें प्राप्त की हैं?’
सीएम रमेश ने वोटिंग को प्रभावित करने के आरोप पर ANI से कहा: ‘उनके (विपक्ष) पास संख्या नहीं है। उन्हें पता है कि वे हार जाएंगे इसीलिए वे मुझ पर आरोप लगा रहे हैं।’
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