फायरमैन यानी जलाई मज़दूर, पारंपरिक और आधुनिक दोनों तरह के ईंट-भट्ठों में अपनी भूमिका निभाते हैं।
वह ईंट को जलाने व पकाने से लेकर उसके पूर्ण रूप को तैयार करने में मददगार होते हैं, जब तक ईंट एक दम ‘लाल’ न हो जाए। ईंट पकाने की यह प्रक्रिया बिलकुल भी आसान नहीं है। यह काम आपसे दिन के कई घंटों के अलावा आपको आग से खेलने, धुएं में रहने आदि चीज़ों की मांग करता है जोकि खतरनाक भी है। देखा जाए तो इन जलाई मज़दूरों की मांग तो अधिक है लेकिन जिस माहौल में इनसे काम करवाया जाता है, वह माहौल और साथ ही इन मज़दूरों की आय प्रश्नीय है। फायरमैन समुदाय की अधिकतर आबादी के पास मौलिक अधिकारों तक की पहुँच नहीं है, जिसमें गरिमा, स्वास्थ्य व सुरक्षा आदि चीज़ें शामिल हैं।
ऐसे में यह सवाल सामने आता है कि क्या कौशल प्रशिक्षण सैंकड़ों फायरमैनों को उनके अधिकारों को सुरक्षित करने की दिशा में एक कदम हो सकता है? कई इंटरव्यू और शोध विश्लेषणों के ज़रिये, हम इस बारे में कुछ समझ हासिल कर पाएं हैं जो हम आपके साथ साझा कर रहे हैं।
क्या ईंट-भट्ठा मज़दूरों के लिए है कौशल परीक्षण ज़रूरी?
यूपी के प्रतापगढ़ के एक ईंट-भट्ठा मज़दूर राम सजीवन बताते हैं, “चाहें हम मौजूदा प्रणाली के साथ काम करें या नई प्रणाली आ जाए, हमें हमेशा प्रशिक्षण की ज़रुरत रहेगी।”
आगे कहा,“कई गरीब लोग इस काम से अपनी आय प्राप्त करते हैं और प्रशिक्षण उन्हें बेहतर काम करने में मदद कर सकता है।”
सजीवन, प्रतापगढ़ और बरेली के कई ईंट-भट्ठों श्रमिकों में से एक हैं जो आय व रोज़गार के लिए ईंट-भट्ठों में जाते हैं। यह पैटर्न/स्वरूप अंतरपीढ़ी (intergenerational) है – कई जलाई मज़दूर अपने परिवारों द्वारा अपनाये गए रास्तों का पालन करते हैं।
साल 2000 में ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान (TERI) और अन्य संगठनों ने साथ मिलकर पूर्वी उत्तर प्रदेश में ईंट-भट्ठा फायरमैन के कौशल को बढ़ाने के लिए मिलीजुली पहल की थी। प्रतिभागियों को पेशेवर तरीके से फायरमैन बनने का प्रशिक्षण देने के साथ-साथ उन्हें प्रमाण-पत्र भी दिए गए थे।
इस प्रशिक्षण का परिणाम काफी बेहतर आया। इनकी आय में बढ़ोतरी देखने को मिली। इससे भी ज़्यादा बड़ी बात यह थी कि इन खास श्रमिकों की तरफ लोगों का नज़रिया बदल गया।
प्रशिक्षण ने श्रमिकों के जीवन में वह गरिमा और इज़्ज़त देने का काम किया जिसका वह अधिकार रखते हैं। प्रशिक्षण से सशक्त होने पर फायरमैन पहले से ज़्यादा आत्मविश्वासी बन सकते हैं और इसके बाद वह शायद बेहतर और उपयुक्त वातावरण व सुविधाओं की मांग कर सकते हैं, जैसे – जूते, दस्ताने और मास्क।
मदन लाल, इलाहबाद के एक फायरमैन है। वह अपने विचारों को आवाज़ देते हुए कौशल प्रशिक्षण के अन्य लाभों के बारे बताते हैं, जो उनसे जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहा, “अगर हम गलती करते हैं तो अकसर हमें डांट पड़ती है।”
आगे कहा, “उचित प्रशिक्षण उन्हें आगे बढ़ने और अपने काम को और बेहतर करने में मदद करेगा। लेकिन हम अपने मालिक से हमें उचित प्रशिक्षण देने के लिए कहने हेतु आशाहीन महसूस करते हैं।”
प्रशिक्षण ने गोपालगंज के मास्टर फायरमैन महेश को मास्टर फायरमैन का दर्जा देने में मदद की। पर्यावरण एवं प्रौद्योकगीकी उत्थान समिति के प्रशिक्षण से पहले, वे केवल एक जलाई मज़दूर थे। “पेपस (PEPUS’s) से प्रशिक्षण मिलने के बाद मैंने एक ईंट भट्ठा कार्यकर्ता को इसके बारे में बताया और वह बहुत खुश हुए। उन्होंने मेरी सराहना की और मुझे एक जानकार व्यक्ति और विशेषज्ञ के रूप में पहचाना।”
राम सजीवन बताते हैं, “प्रशिक्षित फायरमैन का वेतन भी अच्छा ख़ासा होता हैं।” वह प्रशिक्षित श्रमिकों का हवाला देते हुए कहते हैं कि वह महीने के 25 हज़ार रूपये तक कमा लेते हैं। उनके यहां पर्यावरण एवं प्रौद्योकगीकी उत्थान समिति संगठन, जोकि ईंट-भट्ठा श्रमिकों के लिए एक सामाजिक कल्याण संगठन है, वह नियमित तौर पर फायरमैन के लिए प्रशिक्षण कार्यशालाओं की आयोजना करता रहा है। इसमें संबंधित प्रशिक्षण के वीडियो टीवी पर दिखाए जाते हैं और सेशन में लोगों के संदेह को स्पष्ट किया जाता है।
ये भी पढ़ें – ईंट-भट्ठों में शुरू हो रहा ज़िग-ज़ैग तकनीक का इस्तेमाल
‘कौशल प्रशिक्षण’ में क्या-क्या है शामिल ?
डॉ. समीर मैथेल जोकि पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर है, लगभग पिछले दो दशकों से ईंट भट्ठा उद्योग के अलग-अलग हितधारकों के लिए डिज़ाइन किये गए कई कौशल-प्रशिक्षण कार्यक्रमों में शामिल रहे हैं।
मैथेल के पास निम्न-कार्बन के विकास और प्रसार के अनुवभ के साथ-साथ निर्माण क्षेत्र में स्थिरता समाधान,
छोटे उद्यमों और शहरी समुदायों में काम करने का लगभग तीन दशकों अनुभव है।
मैथेल कहते हैं,”भट्ठों में काम करने वाले श्रमिकों में, ईंट लादने वाले और जलाई करने वाले मज़दूरों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए क्योंकि उनके कौशल को बढ़ाने से वायु प्रदूषण को कम करने में मदद मिलेगी।” वह आगे इस बात पर ज़ोर देते हैं कि भट्ठा सुपरवाइज़रों यानी मुनीम को भी प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहिए।
मैथेल फायरमैन को ईंट जलाने के पीछे की वैज्ञानिक प्रक्रिया को एक सरल भाषा में समझाने की कोशिश करते हैं। वे कहते हैं, “क्लासरूम में प्रशिक्षण के लिए एनीमेशन फिल्म और फोटोग्राफ्स जैसी चीज़ों का इस्तेमाल श्रमिकों को जोड़कर रखने का काम करते हैं।”
एक बुनियादी कौशल-प्रशिक्षण प्रक्रिया में दो प्राथमिक स्तर होते हैं – क्लासरूम प्रशिक्षण और भट्ठा स्थल पर प्रैक्टिकल (व्यावहारिक) प्रशिक्षण। कौशल प्रशिक्षण के अंतर्गत, जलाई में इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री की मात्रा और अनुपात का ज्ञान शामिल है, और उस तापमान को नियंत्रित करना जहां से प्रज्वलन (आग का जलना) शुरू होना चाहिए, यह भी शामिल है। मैथेल से हुई बातचीत में हमें यह समझ आया कि प्रशिक्षण के बाद, श्रमिक प्रक्रिया की विस्तृत समझ के साथ सामने आये।
जैसा की हमने पहले भी इस बारे में बताया था कि फायरमैन का व्यवसाय अंतर-पीढ़ीगत है। अकसर श्रमिकों ने अपने माता-पिता को देखकर और समझकर जलाने और पकाने की मूल बातों को सीखा है। कौशल को अस्पष्ट रूप से आगे बढ़ाया गया जिसकी वजह से उनके काम का कोई ढांचा नहीं है। एक फायरमैन चुटकी लेते हुए कहते हैं, “मैंने यूट्यूब वीडियोज़ देखे हैं लेकिन जब हमें प्रैक्टिकल प्रशिक्षण मिला तो उस समय हमने कौशल के बारे में सीखा।”
ज़िग-ज़ैग जैसी नई ईंट भट्ठा प्रणालियों के आने से, मास्टर फायरमैन महेश प्रशिक्षण के बढ़ते महत्व पर ज़ोर देते हुए कहते हैं,”मुझे डर है क्योंकि मेरे पास ज़िग-ज़ैग तकनीक का अनुभव नहीं है। अगर हम कुछ नहीं जानते हैं तो हम सिर्फ भट्ठे को नुकसान पहुंचाएंगे। इसलिए हमें उचित प्रशिक्षण की ज़रुरत है।”
वहीं समीर के अनुसार, क्लासरूम प्रशिक्षण का पूरा कार्य श्रमिकों को उनके बारे में खुशी का एहसास कराता है। यह उन्हें ज़रूरी और सम्मानित महसूस कराने का काम करता है।
श्रमिकों को प्रमाण पत्र प्रदान करना
मैथेल लगातार 30 से 50 घंटे के मूल कौशल-प्रशिक्षण कार्यक्रम की आवश्यकता पर ज़ोर देते हैं जहां उन्हें सुरक्षा, तकनीक और उनके अधिकारों की मूल बातों के बारे में सिखाया जाता है। उनके अनुसार ऐसा कौशल प्रशिक्षण, मज़दूरों के मार्किट वैल्यू यानी बाज़ारी मूल्य को बढ़ाने का काम करता है।
वह कहते हैं,“इससे कम से कम उन्हें प्रमाण पत्र मिल जाएगा। अधिकांश श्रमिक काम के लिए नए मौसम में उसी भट्ठे में जाना पसंद नहीं करते हैं। यह प्रमाण पत्र उन्हें उनके संभावित नियोक्ताओं के साथ बेहतर वेतन की बातचीत में मदद करेगा।”
पेपस के मैनेजर हरे राम ने कई सालों तक मालिक व कर्मचारी के बीच के संबंधों को देखा है और उनका मानना है कि ईंट भट्ठा मालिकों से मास्टर फायरमैन की बेहतर पहचान और सम्मान है।
वह कहते हैं,“मास्टर फायरमैन ही एकमात्र कर्मचारी है जिसे ईंट भट्ठा मालिक चाय द देते हैं। अन्य मजदूरों के साथ, रिश्ता सख्ती से मालिक और मज़दूर का होता है।”
इस तरह के व्यवहार की वजह है की मास्टर फायरमैन लगभग 8 से 10 ईंट भट्ठों को संभालते हैं और वह फायरिंग तकनीक में भी माहिर होते हैं। मास्टर फायरमैन सभी अन्य फायरमैन और ईंट पकाने के संचालन के प्रबंधक हैं। वे भट्ठे के दिशा-निर्देश और कार्य-पद्धति के बारे में भी जानते हैं। उन पर पारंपरिक और आधुनिक तरीकों को एक साथ जोड़ने के लिए भरोसा किया जा सकता है।
महेश कहीं न कहीं इस विवरण से सहमत हैं। उन्होंने हाई स्कूल तक पढ़ाई की और फिर ईंट भट्ठों में काम करना शुरू कर दिया। साल 2010 में उन्होंने पेपस से मास्टर फायरमैन के लिए मूल चीज़ों पर प्रशिक्षण लिया जिसमें फायरिंग, बेकिंग और आग को नियंत्रित करने की जानकारी शामिल है।
उन्होंने प्रमाण पत्र हासिल किया और देखा कि क्या इससे उन्हें कुछ फर्क पड़ा। वह टिपण्णी करते हुए कहते हैं, “लोगों को मेरे कौशल पर भरोसा है और वे मुझे मेरे काम के प्रति सम्मान के साथ देखते हैं। जो जानकारी हमें मिली है वह भी बहुत उपयोगी और ज़रूरी है।”
प्रमाण पत्र से मान्यता, सम्मान और गरिमा हासिल करने में ज़रूर से मदद मिली है लेकिन महेश को लगता है कि इन सब चीज़ों के बावजूद भी अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। महेश उन महीनों को मुद्दे के तौर पर उठाते हैं जिन महीनों में काम नहीं होता। वे कहते हैं, “हम अधिकतम पांच से छह महीने काम करते हैं, बारिश के साथ नवंबर से जून तक। बाकी के महीनों में हमारे पास कोई काम नहीं होता।”
महेश को हर महीने लगभग 15,000 रुपये मिलते हैं, जिससे वह अपनी पत्नी और चार बच्चों की देखभाल करते हैं। इसी वजह से काम के महीनों में बचाये गए पैसे उन महीनों को निकालने में चले जाते हैं जिनमें कोई काम नहीं होता।
यासा देवी जोकि महेश की पत्नी हैं, वह अपने चार बच्चों की देखभाल करती हैं जिनमें से दो विश्वविद्यालय में पढ़ रहे हैं। कम वेतन और छह महीनों तक काम न होने की वजह से उन्हें विश्वविद्यालय की फीस भरने के लिए कर्ज़ लेना पड़ा। स्नातक की डिग्री होने के बावजूद भी उन्हें मज़बूरन अपने परिवार और छोटे से खेत की देखभाल करनी पड़ती है। मास्टर फायरमैन का वेतन “महंगाई में हमारे भरण-पोषण के लिए काफी नहीं है,” वह कहती हैं।
हरे राम, श्रमिकों की वित्तीय समस्याओं को समझते हैं और मास्टर फायरमैन के परिवारों पर पेपस के ध्यान को उजागर करते हैं क्योंकि जब वह पलायन करते हैं तो उनके परिवार पीछे छूट जाते हैं। उदाहरण के लिए पेपस ने कौशल प्रशिक्षण और स्वयं सहायता समूहों के गठन की शुरुआत की है।
उत्तर प्रदेश ईंट निर्माता समिति के अध्यक्ष रतन कुमार श्रीवास्तव जी “1000 प्रतिशत” सहमत हैं कि फायरमैन के लिए कौशल प्रशिक्षण ज़रूरी है। “फायरमैन का काम सबसे ज़्यादा ज़रूरी होता है क्योंकि वह मुख्य उत्पाद के लिए ज़िम्मेदार होते हैं,” उन्होंने कहा। वह अपनी बात को जोड़ते हुए कहते हैं, “लेकिन अभी तक किसी भी सरकारी कौशल विकास योजना में ईंट भट्ठा फायरमैन के लिए प्रशिक्षण शामिल नहीं है।”
इसके साथ ही उन्होंने मालिकों व श्रमिकों को मिलने वाले लाभों के ऊपर भी रौशनी डाली। टीम में कुशल फायरमैन होने से मालिक को फायदा होता है जो गुणवत्तापूर्ण उत्पाद और कम पर्यवेक्षण सुनिश्चित करेंगे।
श्रीवास्तव जी का मानना है कि एक कुशल फायरमैन को पता होगा कि अपने भट्ठे में कितनी कुशलता के साथ आग जलानी है। ज़िग-ज़ैग भट्ठों में ऊर्जा की खपत कम होती है, जिससे भट्ठा मालिक की उत्पादन लागत घट जाती है। यह कटौती फायरमैन के वेतन या प्रशिक्षण और कौशल विकास में निवेश की वृद्धि के रास्ते को बढ़ा सकती है।
पेशेवर फायरमैन को बढ़ी हुई आय से फायदा होगा, भविष्य निधि जैसी सरकारी आय योजनाओं तक उनकी पहुंच होगी और इसके साथ-साथ उनके काम की मानयता भी बढ़ेगी।
ये भी पढ़ें – बुंदेलखंड : ईंट-भट्टे में काम करने वाले मज़दूरों की मुश्किलें और परिस्थितियों की झलक
नई तकनीक व जागरूकता – श्रमिकों का स्वास्थ्य व सुरक्षा सुनिश्चित करने का तरीका
पारंपरिक ईंट भट्टों (फिक्स्ड चिमनी बुल्स ट्रेंच किल्न) में, श्रमिकों को शारीरिक रूप से फ़्लू डक्ट में घुसना व वहां 20 से 25 मिनट तक रुकना पड़ता है और वहां रहकर आग को बढ़ाने के लिए दीवार बनानी पड़ती है। पारंपरिक भट्ठों में ईंट पकाने की प्रक्रिया का यह विशेष कदम काफी खतरनाक है। हालांकि, ज़िग-ज़ैग भट्ठों में श्रमिकों को शंट (एक औद्योगिक सामग्री/ खाली ट्यूब) के होने की वजह से शारीरिक तौर पर फ्लू डक्ट में नहीं जाना पड़ता।
फायरमैन हेतु काम के लिए सुरक्षित पर्यावरण के संदर्भ में पारंपरिक चिमिनियों से ज़िग-ज़ैग भट्ठों में परिवर्तन एक बड़ी छलांग है, लेकिन श्रमिकों के स्वास्थ्य और सुरक्षा जैसे मौलिक अधिकारों तक पहुंच के लिए और भी ज़्यादा काम करने की ज़रूरत है। दशकों से ईंट भट्ठों में काम करने वाले श्रमिकों का कहना है कि उनका स्वास्थ्य कभी सही नहीं रहा। इसके साथ ही, गर्मी और आग ने उनके कामकाजी जीवन को भी कम कर दिया है और अधिकतर श्रमिक सिर्फ 40 से 50 साल की उम्र तक ही काम कर पाते हैं। गर्मियां उनकी यह समस्या और भी बढ़ा देती है। उचित उपकरण का इस्तेमाल श्रमिकों के कल्याण को सुनिश्चित करता है, और यही सुविधाएँ इन मज़दूरों को वे सम्मान प्रदान करती है जो उनका मौलिक अधिकार है।
महेश ने कहा, दस्ताने,मास्क,जूते और अन्य ज़रूरी प्रावधानों में कमी ने उनके स्वास्थ्य पर असर डाला है, खासकर गर्मी में। वह कहते हैं, लकड़ी की चप्पल जो उन्हें मिलती है वह जल्दी खराब हो जाती है। जिस समय तक नई चप्पलें आती हैं तब तक उनके पैर पूरी तरह से क्षतिग्रस्त और जल चुके होते हैं।
श्रीवास्तव जी, स्वास्थ्य की समस्या को लेकर एक अन्य नजरिया जोड़ते हैं। वह फायरमैन को दस्ताने,मास्क और जूते उपलब्ध कराते हैं लेकिन वह उनका शायद से ही इस्तेमाल करते हैं। “वे मास्क की बजाय अपना गमछा इस्तेमाल करना ज़्यादा पसंद करते हैं,” वह कहते हैं। श्रमिकों को काम के लिए विशिष्ट मास्क की ज़रूरत होती है। एक फायरमैन को उसकी नौकरी और स्थान के अनुसार अलग मास्क की आवश्यकता होगी। उचित कौशल प्रशिक्षण और पर्याप्त प्रावधानों के साथ, फायरमैनों को खुद को पर्याप्त रूप से ढकने की ज़रुरत को सिखाया जा सकता है ताकि वे इन सुविधाओं का उपयोग कर सकें।
फायरमैन समुदाय के बारे में एक तथ्य जिसके बारे में सबको पता है, वह यह है कि उनके काम की वजह से उनके फेफड़े सबसे ज़्यादा प्रभावित होते हैं। महेश को लगता है कि जिस तरह का ईंधन इस्तेमाल किया जाता है, वह भी इसके लिए ज़िम्मेदार है। वे टिप्पणी करते हुए कहते हैं, “कृषि-अपशिष्ट हमारे स्वास्थ्य के लिए खराब है, जबकि लकड़ी की ईंटें हमारे स्वास्थ्य के लिए लाख गुना बेहतर हैं,।”
कुशल ईंधन प्रदान करने के अलावा, ईंट भट्ठा मालिकों को यह सुनिश्चित करने के लिए मजदूरों की नियमित स्वास्थ्य जांच करवानी चाहिए कि उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखा जा रहा है या नहीं।
मिलकर कोशिश करने की है ज़रूरत
पारंपरिक और आधुनिक भट्ठों में मजदूरों और मास्टर फायरमैन के अनुभवों से, हमने उनके और उनके काम के लिए गरिमा और सम्मान प्राप्त करने के लिए प्रशिक्षण और प्रमाणीकरण की आवश्यकता को सीखा है। वर्तमान में, ईंट भट्ठा मालिकों के ईंट भट्ठे में अलग-अलग स्तरों के श्रमिकों के साथ अलग-अलग रिश्ते हैं। इसलिए कर्मचारी-नियोक्ता संबंधों के विभिन्न स्तरों पर चर्चा और एकीकरण सत्रों को आयोजित करने की आवश्यकता है।
तकनीकों में बदलाव और स्वतंत्र संगठनों के ज़मीनी स्तर के काम ने ईंट भट्ठा फायरमैन के जीवन की गुणवत्ता में सुधार के साथ-साथ उनके काम को भी पहचान प्रदान की है।
हालांकि,अर्थपूर्ण बदलाव के लिए ईंट भट्ठा मालिकों, सरकारी संस्थानों और सामाजिक संगठनों को मिलकर कोशिश करने की ज़रूरत है। यह मानने के बावजूद कि प्रशिक्षण और प्रमाणन से उन्हें कुछ सम्मान और गरिमा मिली है, महेश अभी भी कहते हैं, “ईंट भट्ठों पर काम मजबूरी से होता है, और यह परेशानी भरा है। लेकिन, और क्या करें?”
वहीं मदन कुमार कहते हैं, “कौशल प्रशिक्षण के लिए हमें सरकार के सहयोग की जरूरत है।”
यह कहानी बुनियाद के अंतर्गत आने वाली मीडिया श्रंखला का हिस्सा है, जहाँ हम उत्तर प्रदेश के ईंट भट्ठा उद्योग में, न्यायोचित बदलाव से जुड़े सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण से सम्बंधित कहानियों को लेकर आएंगे।
बुनियाद अभियान का केन्द्रीय विषय भारत के सबसे प्राचीनतम उद्योग “ईंट भट्ठा उद्योग” में नवीनतम, स्वच्छ एवं पर्यावरण अनुकूल तकनीकी को प्रोत्साहित करना है। साथ ही इस उद्योग में परस्पर रूप से सम्मिलित सभी मानव संसाधनों का न्यायपूर्ण कल्याण सुनिश्चित करना है। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य ईंट भट्ठा मालिकों, मजदूरों, संगठनों, तकनीकी विशेषज्ञों एवं सरकार के नीति निर्माताओं के साथ मिल कर उद्योग के लिए ऐसी स्वच्छ तकनीक की तलाश करना है, जो पर्यावरण प्रदूषण को कम कर सके और उद्योग से जुड़े सभी लोगों और समुदायों को लाभ दे सके। इस अभियान में क्लाइमेट एजेंडा, 100% उत्तर प्रदेश नेटवर्क और चम्बल मीडिया जुड़े हैं।
लेखिका – निमिषा अग्रवाल, ट्रांसलेशन – संध्या
‘यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’