दोस्तों आज हम बात करने वाले है फिल्म गुलाबो सीताबो की वैसे तो ये फिल्म पहले सिनेमाघरों में रिलीज़ होने वाली थी. लेकिन ऑनलाइन चैनल की बढ़ती लोकप्रियता के कारण इसे 12 जून को आमज़ॉन प्राइम पर पब्लिस हुआ. आपको बता दें कि शूजित सरकार और जूही चतुर्वेदी जब भी एक साथ फिल्म लेकर आते हैं तो कहानी में कुछ नयापन जरूर होता है. फिर ‘गुलाबो सिताबो में जिस अंदाज में कहानी को कहा गया है, वह अपने आप में काफी काबिले तारीफ और एकदम नयापन समेटे हुए है. फिल्म की कहानी काफी सटीक और नई, डायरेक्शन एकदम सधा हुआ और एक्टिंग अव्वल दर्जे की है. इस तरह अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना की जुगलबंदी में फारूक जफर का दखल दिल जीत लेने वाला है. फिल्म देखकर यही बात जेहन में आती है कि बंदरों की लड़ाई में बिल्ली फायदा ले गई.
ये कहानी है लखनऊ में फ़ातिमा महल नाम की हवेली में रहने वाले 78 साल के बुजुर्ग मिर्ज़ा चुन्नन नवाब की. हवेली उनकी बेगम के नाम है. फत्तो बी. जो उनसे 17 साल बड़ी हैं. ये हवेली जर्जर हालत में. ईंटे भुरभुरा रही हैं. रेलिंग टूट चुकी हैं. तीन-चार परिवार यहां किराए पर रहते हैं. बहुत कम किराया देते हैं. इनमें सबसे कम किराया देता है बांके. जो अपनी तीन बहनों और मां के साथ रहता है. आटा चक्की चलाता है. बांके सिर्फ 30 रुपये महीना किराया देता है. तीन महीने से तो दिया भी नहीं है.बांकेसे जब भी किराया माँगा जाता तो उसका एक ही बहाना रहता है- मैं गरीब हूं।
दूसरी तरफ मिर्ज़ा ज़रा लालची इंसान हैं. पैसे की किल्लत है तो कंजूसी आ ही जाती है. वो बांके से बार बार कहते हैं कि वो किराया बढ़ा दे या घर खाली कर दे. बांके कहता है – “जित्ता दे रहे हैं उत्ता ही ले लो वरना ये भी नहीं देंगे और मकान भी खाली नहीं करेंगे”.
दोनों की नोकझोंक चलती रहती है, और वहीं मिर्जा इस हवेकी को बेचने का फैसला लेता है. लेकिन हवेली मिर्जा की बेगम फातिमा उर्फ फत्तो (फारूक जफर) की है. मिर्जा हवेली को अपने नाम करने की कोशिश करता है. उधर, पुरातत्व विभाग वालों की नजर भी मिर्जा की हवेली पर पड़ती है तो वहीं मिर्जा बिल्डर को अपनी हवेली भी बेच देता है. लेकिन फातिमा उर्फ फत्तो कुछ ऐसा घाव मिर्जा को देती है, जो फिल्म की पूरी टोन ही बदलकर रख देता है. इस तरह आयुष्मान और मिर्जा सिर्फ लकीर पीटते रह जाते हैं, और सांप निकल जाता है.
मिर्जा के रूप में अमिताभ बच्चन की ऐक्टिंग फिल्म की सर्वश्रेष्ठ बात है। कहीं कहीं तो आप पहचान ही नहीं पाएंगे कि ये बिग बी है. उनके चलने का ढंग, बोलने का लहजा, आंखों का एक्सप्रेशन, सब कुछ बेहतरीन है। आयुष्मान खुराना भी अच्छे रहे हैं, हालांकि उनका किरदार थोड़ा और रोचक होता, तो बात ज्यादा बन सकती थी। विजय राज बेहतरीन अभिनेता हैं, उनका अपना एक अंदाज है। और, वह अंदाज यहां भी बरकरार है। बृजेंद्र काला की अभिनय शैली भी अपनी तरह की अलग शैली है और वह भी अपने अंदाज से प्रभावित करते हैं। बेगम की भूमिका में कलाकार फारुख जफर खूब जंचती हैं। स्क्रीन पर उनकी मौजूदगी सुकून देने वाली है। हालंकि उन्हें फिल्म में बहुत काम समय दिया गया जो थोड़ा खटकता है. बाकी के सहयोगी कलाकार ने भी अपनी भूमिकाओं के साथ पूरा न्याय किया है। कुछ कमियों के बावजूद यह एकदम अलग मिजाज की फिल्म है। कुछ अलग हट के देखना हो, तो फिल्म देख सकते हैं।
तो हमारी तरफ से इस फिल्म को मिलते हैं 5 मे से 3.5 स्टार तो आपको ये फिल्म कैसी लगी हमें कमेंट कर जरूर बताएं अगर आपको ये वीडियो पसंद आई हो तो ये वीडियो लाइक करें और दोस्तों के साथ शेयर करें अगर आपने हमारा चैनल सब्स्क्राइव नहीं किया है तो अभी करें तो आज के लिए सिर्फ इतना ही मिलते है अगले एपिसोड में तब तक के लिए |