खबर लहरिया Blog उच्च शिक्षा और समान अधिकार पाने में पुरुषों के मुकाबले महिलाएं पीछे- रिपोर्ट्स

उच्च शिक्षा और समान अधिकार पाने में पुरुषों के मुकाबले महिलाएं पीछे- रिपोर्ट्स

हाल ही में कुछ ऐसी रिपोर्ट्स सामने आयी हैं जो यह साफ़ दर्शाती हैं कि अगर हमें विश्व के बाकी विकसित देशों से बराबरी करनी है, तो हमें अपने देश में महिलाओं के विकास को और तेज़ी से बढ़ावा देना होगा। 

 

जहाँ एक तरफ हम अच्छी तरह से जानते हैं कि देश के विकास के लिए लैंगिक समानता कितनी ज़रूरी है, लेकिन आज भी हम महिलाओं और इस देश की बेटियों को उनका हक़ दिला पाने में असफल हैं। देश के विकसित शहरों में रह रहीं कुछ महिलाएं कहीं न कहीं उच्च शिक्षा प्राप्त करके आज अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने में सक्षम हैं, परन्तु देश की 70 प्रतिशत महिलाएं जो ग्रामीण क्षेत्रों में रहती हैं, वो आज भी शिक्षा से लेकर समान अधिकारों से वंचित हैं। हाल ही में कुछ ऐसी रिपोर्ट्स सामने आयी हैं जो यह साफ़ दर्शाती हैं कि अगर हमें विश्व के बाकी विकसित देशों से बराबरी करनी है, तो हमें अपने देश में महिलाओं के विकास को और तेज़ी से बढ़ावा देना होगा।

भारत लैंगिक समानता के लक्ष्यों को पूरा करने में असफल-

पिछले हफ्ते सामने आई नीति आयोग की नवीनतम सतत विकास लक्ष्य-भारत सूचकांक रिपोर्ट (Sustainable Development Goals-India Index report) के अनुसार, भारत लैंगिक समानता के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अभी भी संघर्ष कर रहा है। इस रिपोर्ट के अनुसार, देश सतत विकास लक्ष्यों के अंतर्गत आने वाले लैंगिक समानता और शून्य भुखमरी के लक्ष्य से अभी काफी पीछे है। और आने वाले समय में इन दोनों ही लक्ष्यों पर काम करने की सख्त आवश्यकता है। बता दें कि पिछले साल आयी इस रिपोर्ट में भी कुछ ऐसे ही आंकड़े सामने आये थे और तब यह उम्मीद लगाई जा रही थी कि अगले साल तक इस दर में कुछ सुधार होगा, परन्तु ऐसा नहीं हुआ।

नीति आयोग की इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत में श्रम और मज़दूरी के काम में तीन में से एक महिलायें पायी जाती हैं। इसके साथ ही प्रबंधकीय कार्यछेत्र में 100 में से केवल 19 महिलाएं ही नौकरी पा पाती हैं।

‘द प्रिंट’ की एक रिपोर्ट के अनुसार इस इंडेक्स रिपोर्ट में यह भी निकल कर सामने आया है कि भारत लिंक अनुपात में भी अभी अपने लक्ष्य से बहुत पीछे है। देश में जन्म के समय प्रति 1000 बेटों पर मात्र 899 बेटियां ही जीवित रह पाती हैं, जबकि 2021 में इस दर को 950 बेटियों तक पहुँच जाना चाहिए था। इसके साथ ही कार्यक्षेत्र में भी महिलाओं को पुरुषों की तुलना में सिर्फ तीन-चौथाई ही औसत वेतन मिल पाता है।

उच्च शिक्षा पाने में छात्राओं के नामांकन सबसे कम-

शिक्षा के क्षेत्र में भी आज के समय में बेटियां पीछे हैं, ज़्यादातर लड़कियां किशोरावस्था के बाद स्कूली शिक्षा पाकर ही सीमित हो गयीं और उच्च शिक्षा नहीं पा पायीं। 10 जून को अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वे के नतीजे भी जारी हो गए हैं जिसमें यह सामने आया है कि राष्ट्रीय महत्व के शैक्षिक संस्थानों में छात्राओं की हिस्सेदारी सबसे कम है। इसके साथ ही इस सर्वे में यह भी सामने आया है कि शैक्षणिक पाठ्यक्रमों के मुकाबले व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में छात्राओं के नामांकन की संख्या काफी कम है। शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार 2015-16 से 2019-20 के बीच उच्च शिक्षा में छात्राओं के दाखिले में कुल मिलाकर 18 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, परन्तु यह दर भी काफी कम माना जा रहा है। इन नतीजों के आने बाद देश के कई मीडिया पोर्टल्स और नेताओं ने छात्राओं की शिक्षा को लेकर चिंता जताई है। जहाँ एक तरफ ग्रामीण से लेकर शहरी छात्र आज उच्च शिक्षा के लिए व्यावयसिक कोर्स में नामांकन पाने की होड़ में हैं, ताकि आगे चलकर रोज़गार पाने में उन्हें परेशानी न हो, वहीँ देश की बेटियां उच्च शिक्षा प्राप्त करने में ही असक्षम हैं।

नीति आयोग द्वारा जारी की गयी रिपोर्ट और अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वे से यह साफ़ ज़ाहिर होता है कि सरकार की लाखों कोशिशों के बावजूद हमारे देश में आज भी महिलाओं को शिक्षा और समान अवसर प्राप्त कर पाने में कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। अगर हमारा समाज चाहे तो बेटियां भी पूरे विश्व में देश का नाम रौशन कर सकती हैं, लेकिन दुख की बात तो यह है कि हमारे अंदर पनप रही पितृसत्ता से भरी सोच महिलाओं को आगे बढ़ने का मौका ही नहीं देती।

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